सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भीमा कोरेगांव मामले में अभियुक्त वरवर राव को मिली अंतरिम सुरक्षा को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है। अदालत ने कहा कि वह राव की स्थायी चिकित्सा जमानत की मांग वाली याचिका पर 19 जुलाई को सुनवाई करेगा।
83 साल के राव ने मुंबई हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने उन्हें स्थाई तौर पर चिकित्सा जमानत दिए जाने की अपील को खारिज कर दिया था। राव वर्तमान में मेडिकल ग्राउंड पर जमानत पर हैं और उन्हें मंगलवार को आत्मसमर्पण करना था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अपील की कि वह इस मामले में बुधवार या गुरुवार को सुनवाई करें। लेकिन जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि 19 जुलाई को इस मामले में पहले नंबर पर सुनवाई की जाएगी।
राव के वकील की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की उम्र 83 साल है और वह 2 साल से अधिक वक्त तक जेल में रहे हैं। याचिका में कहा गया था कि तेलुगु कवि राव को आगे भी जेल में रखा जाना या कैद कर देने से उनकी मौत का खतरा पैदा हो जाएगा क्योंकि उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी है और सेहत भी लगातार गिरती जा रही है।
क्या है मामला?
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के यलगार परिषद में आयोजित कार्यक्रम में कथित रूप से दिए गए भड़काऊ भाषण का है। पुणे पुलिस ने दावा किया था कि भाषण दिए जाने के अगले दिन भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक के आसपास के इलाकों में हिंसा भड़क गई थी। पुलिस ने यह भी दावा किया था कि इस कार्यक्रम का आयोजन ऐसे लोगों ने किया था जिनके कथित तौर पर माओवादियों से संबंध हैं। बाद में इस मामले की जांच एनआईए ने अपने हाथ में ले ली थी।
इस मामले में सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनोन गोन्जाल्विस के भी नाम आए थे।
वरवर राव को 28 अगस्त, 2018 को उनके हैदराबाद में स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया था। उनके खिलाफ पुणे पुलिस की ओर से 8 जनवरी 2018 को आईपीसी की कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था।
शीर्ष अदालत के आदेश के बाद पहले उन्हें हाउस अरेस्ट किया गया था जबकि बाद में नवी मुंबई की तलोजा जेल में रखा गया था।
22 फरवरी, 2021 को राव को मुंबई हाई कोर्ट ने मेडिकल ग्राउंड के आधार पर जमानत दे दी थी और 6 मार्च, 2021 को उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था। लेकिन राव ने अपनी याचिका में कहा है कि जमानत दिए जाने के बाद उनकी सेहत और खराब हुई है और उन्हें हर्निया हो गया है जिसके लिए उन्हें सर्जरी करानी पड़ी थी। इसके अलावा उनकी दोनों आंखों में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया जाना है और उन्हें न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी हैं।
स्टेन स्वामी की मौत का हवाला
याचिका में कहा था कि इस मामले में जांच 10 साल से कम नहीं चलेगी और इस मामले के एक अभियुक्त स्टेन स्वामी की मौत हो चुकी है। स्टेन स्वामी भी कई तरह की शारीरिक दिक्कतों से जूझ रहे थे।
भीमा कोरेगांव हिंसा
भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई। हिंसा भड़काने के आरोप में पहले तो बड़ी संख्या में दलितों को गिरफ़्तार किया गया और बाद में सामाजिक कार्यकर्ताओं को।
भीमा कोरेगांव में विजय स्तंभ के सामने दलित अपना सम्मान प्रकट करते हैं। माना जाता है कि दलित इसे छुआछूत के ख़िलाफ़ अपनी जीत के रूप में मनाते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह युद्ध महारों के लिए अपनी अस्मिता की लड़ाई था।
1818 में हुए भीमा कोरेगांव युद्ध में शामिल ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़ी टुकड़ी में ज़्यादातर महार समुदाय के लोग थे, जिन्हें अछूत माना जाता था। यह विजय स्तंभ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था।