क्या आपको भी लगता है कि गर्मियाँ आने से कोरोना वायरस ख़त्म या कम हो जाएगा? या आपको एक मंत्री के उस बयान पर भरोसा है जिसमें वह कहते हैं '15 मिनट धूप सेंकिए और कोरोना वायरस को दूर भगाइए'? यदि आप ऐसा समझते हैं तो ज़रा ठहर जाइए। अमेरिका के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट कुछ और ही कहती है। उन्होंने कहा है कि ऐसा मानने के पीछे कोई आधार नहीं है और कोई भी तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते हैं। इस रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया गया है कि कोरोना के फैलने से रुकने के लिए गर्म मौसम पर भरोसा नहीं किया जाए।
दरअसल, भारत सहित कई देशों में कुछ लोगों ने ऐसा मान लिया है कि गर्म मौसम आने पर कोरोना वायरस कमज़ोर पड़ जाएगा और इसको नियंत्रित करना आसान हो जाएगा। इसमें कई बड़े-बड़े नेता भी शामिल रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी ऐसा ही मानते रहे थे।
जब कोरोना वायरस को ट्रंप हल्के में ले रहे थे उसी दौरान उन्होंने 16 मार्च को कहा था कि गर्मी के मौसम में यह वायरस धीरे-धीरे ‘ख़त्म’ हो जाएगा। ट्रंप किसी वैज्ञानिक तथ्य या किसी शोध में प्रमाणित तथ्य के आधार पर यह नहीं कह रहे थे। दरअसल, वह शायद अुनमान भर लगा रहे थे जिसमें फ्लू लाने वाले कुछ वायरस गर्मी के मौसम में कमज़ोर पड़ जाते हैं। हालाँकि अधिकतर वायरस के साथ ऐसा नहीं देखा गया है और ऐसा ही कोरोना वायरस के साथ भी है।
कुछ ऐही ही रिपोर्ट ह्वाईट हाउस यानी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यालय को भेजी गयी है। यह एक सरकारी रिपोर्ट है और इसको तैयार किया है नेशनल अकेडमीज ऑफ़ साइंसेज, इंजीरियरिंग एंड मेडिसीन ने। रिपोर्ट में कहा गया है,
‘उम्मीदें ज़्यादा न रखें। कई शोध रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद एक पैनल ने निष्कर्ष निकाला है कि अध्ययन और अलग-अलग साक्ष्य यह मानने के लिए कोई आधार नहीं देते हैं कि गर्मी का मौसम कोरोना वायरस के प्रसार को रोकेगा। सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य उपायों के कारण महामारी कम हो सकती है, लेकिन अब तक के सबूत सूरज और नमी पर विश्वास करने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं।’
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्टैनफ़ोर्ड में इस विषय पर अध्ययन करने वाले डॉ. डेविड रेमैन ने कहा है कि यदि कोई कोरोना मरीज छींकता है या उसकी नाक बहती है तो इसमें इतने वायरस होते हैं कि नज़दीक के व्यक्ति में इसके फैलने का ख़तरा उतना ही रहता है। इसमें तापमान या नमी कितनी है कोई मायने नहीं रखता है।
हालाँकि सरकार को सलाह देने वाली नेशनल एकेडमीज और स्वतंत्र एजेंसियों ने कुछ लेबोरेट्री के कुछ अध्ययनों का ज़िक्र किया है जिसमें यह पता चलता है कि उच्च तापमान और नमी कोरोना वायरस को वातावरण में ज़्यादा समय तक सक्रिय नहीं रहने देते हैं। हालाँकि इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि इस अध्ययन की कुछ सीमाएँ हैं और इसे निर्णायक नहीं माना जा सकता है।
रिपोर्ट में एमआईटी के कुछ वैज्ञानिकों के हवाले से यह भी कहा गया है कि जहाँ ठंडा वातावरण है वहाँ ज़्यादा तेज़ी से मामले बढ़ रहे हैं और गर्म मौसम वाली जगहों पर उतनी तेज़ी से नहीं। लेकिन वैज्ञानिकों का ही कहना है कि यह सिर्फ़ शुरुआती रिपोर्ट है, इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं और इस कारण वे कोई निर्णायक स्थिति में नहीं हैं।
ह्वाइट हाउस को भेजी गई इस रिपोर्ट में ख़ास कर एक चेतावनी वाला नोट लिखा गया है। इसमें कहा गया है- ‘यह देखते हुए कि वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया और ईरान जैसे देशों में गर्मी के मौसम में भी तेज़ी से वायरस फैल रहा है, यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि आर्द्रता और तापमान में वृद्धि से इसमें कमी आ जाएगी।’
बता दें कि इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने 250 से भी ज़्यादा सालों में दुनिया भर में आने वाली अलग-अलग फ्लू महामारी के इतिहास का भी अध्ययन किया है। इसमें कहा गया है कि इतने साल में 10 ऐसी फ्लू वाली महामारी आई है। दो की शुरुआत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में जाड़े में हुई, तीन की बसंत ऋतु में, दो की गर्मियों में और तीन की पतझड़ के मौसम में।’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ये वायरस क़रीब छह महीने बाद दुबारा से तेज़ी से फैलने लगे थे। यानी इससे उन पर ख़ास असर नहीं पड़ा कि कब और किस मौसम में ये वायरस पहली बार तेज़ी से फैले थे।
यानी कुल मिलाकर स्थिति यह है कि भले की कहीं छोटे स्तर पर शुरुआती शोध में बात आ भी गई हो लेकिन इस मामले में निर्णायक स्थिति में नहीं पहुँचा जा सका है। यानी यह सिद्ध नहीं हो पाया है कि गर्मियों में यह वायरस कमज़ोर पड़ जाएगा या इसका असर कितना होगा। सभी वैज्ञानिक और डॉक्टर इसी बात को दोहराते हैं। यही बात डॉक्टरों की उस रिपोर्ट में ट्रंप प्रशासन को भी बताई गई है कि गर्मी पर निर्भर न रहें, कुछ अलग ठोस उपाय करें।