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बीजेपी के पास बहुमत होते हुए भी क्या मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगेगा?
क्या बीजेपी मणिपुर में योग्य मुख्यमंत्री नहीं ढूंढ पा रही है? 60 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 37 विधायक और सहयोगी दलों के 11 विधायक होने के बावजूद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की चर्चा क्यों चली रही है? क्या मणिपुर में सीएम पद के लिए बीजेपी में इसलिए सहमति नहीं बन पा रही है क्योंकि पार्टी में अंदर ही अंदर असंतोष है?
कहा जा रहा है कि पार्टी में इसी असंतोष की वजह से मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को रविवार शाम को राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपना पड़ा। सहयोगी कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने के बावजूद बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या है, लेकिन ऐसी संभावना थी कि राज्य में नेतृत्व में बदलाव की मांग करने वाले विधायक फ्लोर टेस्ट की स्थिति में पार्टी व्हिप की अवहेलना कर सकते थे। कहा जा रहा है कि पार्टी में अपने ख़िलाफ़ बने माहौल को देखते हुए संभावित संकट को टालने के लिए मुख्यमंत्री ने केंद्रीय नेतृत्व से विचार-विमर्श करने के बाद पद छोड़ा है।
पिछले कुछ दिनों से ऐसी ख़बरें आ रही थीं कि बीरेन सिंह पर अपने ही कुछ विधायकों से भारी दबाव है। दबाव की ऐसी ख़बरों के बीच विधायक कई बार दिल्ली का दौरा कर चुके हैं। बीजेपी के पास बहुमत का आँकड़ा होते हुए भी बीरेन सिंह के स्थान पर नए चेहरे को चुनना उसके लिए परेशानी का सबब बन गया है।
माना जा रहा है कि इस पर आम सहमति बनाने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को समय लग सकता है। इंफाल में राजभवन से जारी बयान के अनुसार, राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने एन बीरेन सिंह से वैकल्पिक व्यवस्था होने तक पद पर बने रहने को कहा है।
इस्तीफा देते समय बीरेन सिंह ने सिफारिश की थी कि विधानसभा को निलंबित रखा जाए ताकि विधायकों के लिए उनके स्थान पर नए चेहरे को चुनने पर आम सहमति बनाने के लिए समय मिल सके। चूँकि अभी तक कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे पार्टी विधायकों का बहुमत प्राप्त हो, इसलिए केंद्र को राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ सकता है।
बीरेन सिंह के इस्तीफा देने के कुछ घंटों बाद, राज्यपाल भल्ला ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें विधानसभा को बुलाने के पिछले आदेश को अमान्य घोषित किया गया। विधानसभा को सोमवार को बुलाया जाना था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
राज्य में बीजेपी के एक नेता ने कहा, 'सीएम ने विधानसभा को निलंबित करने की सिफारिश की है। केंद्र द्वारा इस पर कोई निर्णय लिए जाने तक बीरेन सिंह कार्यवाहक के रूप में काम करते रहेंगे।'
राज्यपाल भल्ला कुछ दिनों के भीतर केंद्र को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, राष्ट्रपति शासन की घोषणा दो महीने के भीतर संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो राष्ट्रपति शासन समाप्त हो जाएगा।
द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि केंद्र संसद में जाने से पहले और समय लेना चाह रहा है। हालांकि बजट सत्र का पहला भाग 13 फरवरी तक तय है, लेकिन दो दिन पहले ही इसके स्थगित होने की संभावना है क्योंकि बुधवार को रविदास जयंती के कारण छुट्टी है। बजट सत्र 10 मार्च को फिर से शुरू होगा और 4 अप्रैल को ख़त्म होगा। यदि राष्ट्रपति शासन संसद के अवकाश के बाद लगाया जाता है तो मामला अगली बैठक में ही सामने आ सकता है।
हालाँकि ऐसी अटकलें थीं कि मणिपुर के स्पीकर थोकचोम सत्यब्रत सिंह और शहरी विकास मंत्री युमनाम खेमचंद मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन बीजेपी के सूत्रों ने कहा कि गहन विचार-विमर्श के बाद ही निर्णय लिया जाएगा।
राष्ट्रपति शासन शुरू में चार से पांच महीने के लिए लगाया जा सकता है और सीएम के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार मिलने तक इसे बढ़ाया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन को हर बार छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
बीजेपी के एक विधायक ने कहा कि राष्ट्रपति शासन को विस्तार देने से बीजेपी की छवि खराब होगी। विधायक ने कहा, 'विधानसभा में हमारे 60 में से 37 विधायक हैं। हमारे सहयोगी एनपीएफ और एनपीपी के पास कुल 11 विधायक हैं। हमारे पास पूर्ण बहुमत है। सरकार को राज्य भाजपा को चलाना है। इस लिहाज से न तो कोई राजनीतिक संकट है और न ही कानून-व्यवस्था की स्थिति पिछले कई महीनों से बदतर है।'
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)