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पंजाबः केजरीवाल के 'दिल्ली मॉडल' पर सवाल, कल विधायकों की बैठक
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को दिल्ली में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और राज्य के विधायकों के साथ महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। बैठक दिल्ली के चुनाव नतीजों और पंजाब में आप के गढ़ पर इसके संभावित प्रभावों पर केंद्रित होगी। यह बैठक आप से सत्ता छीनने के फौरन बाद हो रही है। केजरीवाल खुद अपनी सीट पर चुनाव हार चुके हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार ने 'ब्रांड केजरीवाल' के साथ-साथ आम आदमी पार्टी की 11 साल की राजनीति के 'दिल्ली मॉडल' को भी पूरी तरह से नकार दिया है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने 'दिल्ली मॉडल' के दम पर प्रचार करके और उसे मौका देने का वादा करके विधानसभा चुनाव जीता था। अब पंजाब में भी 'दिल्ली मॉडल' पर सवाल उठना लाजिमी है। हालांकि, पंजाब में पहले से ही इस बात पर चर्चा चल रही है कि आम आदमी पार्टी देश के सभी आयामों में समृद्ध पंजाब का अपना मॉडल क्यों नहीं दे पाई।
भगवंत मान की सरकार 16 मार्च को तीन साल पूरे करने जा रही है और फरवरी 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। दिल्ली में हार के बाद क्या पंजाब में कोई नया मॉडल बनेगा या इसी मॉडल के सहारे सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी? आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब में अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की चुनौती और भी गंभीर हो गई है। अब अगली परीक्षा पंजाब में सरकार बनाए रखने के साथ-साथ एक नया अध्याय लिखने की होगी।
भगवंत मान और उनकी सरकार के लगभग सभी मंत्रियों ने दिल्ली चुनाव में जोरदार प्रचार किया था। भगवंत मान ने पंजाबियों के वर्चस्व वाली दिल्ली की सभी विधानसभा सीटों पर चुनावी रैलियां करने के साथ-साथ रोड शो भी किए, लेकिन आम आदमी पार्टी को अधिकतर सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
इस संकेत से आम आदमी पार्टी को गहरा झटका लगा है। आम आदमी पार्टी को लगा यह झटका मुख्य विपक्षी दलों के लिए एक राजनीतिक अवसर बनकर उभरा है। विपक्षी दल पंजाब में अगले विधानसभा चुनाव तक आम आदमी पार्टी को हर मोर्चे पर घेरने का मौका नहीं छोड़ेंगे।
आम आदमी पार्टी अपने कार्यकाल के अब तक के तीन वर्षों में पंजाब के महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं कर पाई है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के सबसे बड़े मुद्दे पर पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने पंजाब चुनाव में जल्द न्याय दिलाने का वादा किया था, लेकिन अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकला है। इस पर पार्टी के विधायकों ने भी सवाल उठाए हैं।
भगवंत सरकार पंजाब में नशे को खत्म करने का कोई ठोस समाधान नहीं निकाल पाई है। सरकार राज्य में रेत-बजरी माफिया को पूरी तरह से रोकने में भी लगभग विफल रही है तथा रेत-बजरी का कारोबार और खनन कार्य पहले की तरह ही जोरों पर चल रहा है। सरकार महिलाओं को 1000 रुपये प्रतिमाह देने की योजना को अभी तक लागू नहीं कर पाई है। राज्य में आर्थिक आय बढ़ाने के दिखाए गए सपने लगातार बढ़ते कर्ज के बोझ में धूमिल होते जा रहे हैं।
पंजाब को फिर से औद्योगिकीकरण में अग्रणी बनाने की नीति के सार्थक परिणाम कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। बड़े तामझाम के साथ शुरू किया गया भ्रष्टाचार विरोधी अभियान धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया है। नए रोजगार पैदा होने की उम्मीदें भी धूमिल हो रही हैं। पंजाब से विदेशों में पलायन कर रहे युवाओं को राज्य में ही रोजगार मुहैया कराने के बड़े-बड़े वादे भी काम नहीं आए हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार के पंजाब पर पड़ने वाले प्रभाव पर राजनीतिक विश्लेषकों और पंजाब के कई बुद्धिजीवियों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पूर्व डीन डॉ. जमशेद अली खान का कहना है कि 'आम आदमी पार्टी की हार मुख्य रूप से पार्टी द्वारा अपनाए गए 'दोहरे मापदंड' के कारण हुई है।' पार्टी अब पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार से पंजाब इकाई पर पार्टी की केंद्रीय कमान की पकड़ कमजोर हो सकती है। डॉ. खान ने इस संभावना से इंकार नहीं किया कि मुख्यमंत्री भगवंत मान अपनी कुर्सी बचाने के लिए पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की तरह भाजपा से समझौता कर सकते हैं। बाद में अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाई थी।
पंजाब में स्थानीयता की भावना बहुत मजबूत है और राजनीतिक परिपक्वता में किसी भी तरह से कम नहीं है। पंजाब हमेशा से किसी भी बाहरी नेतृत्व को स्वीकार करने के खिलाफ रहा है। डॉ. जमशेद अली खान का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय का भी अब आम आदमी पार्टी से मोहभंग हो चुका है। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की कई मुद्दों पर चुप्पी और मौन रहना भाजपा के समर्थन को उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है, चाहे वह दिल्ली में शाहीन बाग आंदोलन हो, अनुच्छेद 370 को हटाना हो, दिल्ली दंगों का मुद्दा हो या वक्फ बोर्ड बिल में संशोधन का मामला हो।
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग के प्रोफेसर जगरूप सिंह सेखों का कहना है कि केवल एक व्यक्ति द्वारा केंद्रित और नियंत्रित राजनीति लंबे समय तक नहीं चलती है। आंदोलन से निकली पार्टी में कभी कोई संगठनात्मक ढांचा नहीं बनाया गया। एक व्यक्ति की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पार्टी को मिले अपार समर्थन और जनता के विश्वास के साथ न्याय नहीं कर पाई। पंजाब हमेशा से अपनी संवैधानिक मांगों को लेकर संघर्ष करता रहा है। आम आदमी पार्टी पंजाब को कोई स्थायी समाधान देती नहीं दिख रही है।
पंजाब केजरीवाल सरकार से बेअदबी मामले में न्याय की उम्मीद कर रहा है। अब यह सवाल बहुत अहम हो गया है कि क्या आप अपने अंदरूनी झगड़ों को सुलझाकर मुख्यमंत्री भगवंत मान या नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अमन अरोड़ा के लिए पंजाब केंद्रित मॉडल विकसित करेगी या फिर पार्टी राजनीति के रास्ते पर चलेगी।