टेस्ट वर्ल्ड कप नहीं जीता तो कोहली की कप्तानी पर उठेंगे सवाल!

07:40 am Jun 03, 2021 | विमल कुमार - सत्य हिन्दी

इंग्लैंड के अहम दौरे के लिए टीम इंडिया रवाना हो चुकी है और भले ही कप्तान विराट कोहली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये ज़रूर कहा हो कि यह मुक़ाबला उनके लिए फाइनल फ्रंटियर नहीं है लेकिन हकीकत तो यही है कि अगर कोहली न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप ट्रॉफी नहीं जीत पाते हैं और उसके बाद इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 5 मैचों की सीरीज़ में जीत हासिल नहीं करते हैं तो उनकी कप्तानी को लेकर कड़े सवाल उठेंगे। और उठने भी चाहिए।

ड्रीम टीम ले जा रहे हैं कोहली

आख़िर जो टेस्ट टीम लेकर कोहली जा रहें है उसमें सिर्फ़ हार्दिक पंड्या जैसे ऑलराउंडर का नहीं होना ही इकलौती खलने वाली बात आपको दिखेगी। वर्ना आप बतायें कि क्या किसी भारतीय कप्तान को इतनी विविधता वाला तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण पहले कभी मिला था? इशांत शर्मा, मोहम्मद शमी, उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह और मो. सिराज के तौर पर टीम इंडिया के पास पहली बार अनुभव, चालाकी, रफ्तार, अनोखेपन और युवा जोश का ऐसा पंजा हासिल हुआ है जिससे इंग्लैंड में 15 साल बाद टेस्ट सीरीज़ में जीत की उम्मीद जगी है। यह अलग बात है कि भारत ने पिछले 5 सालों में सिर्फ एक बार इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज़ जीती है और मौजूदा इंग्लैंड टीम ने पिछले सात सालों में अपने घर में कोई भी सीरीज़ गंवायी नहीं है।

लेकिन, उससे पहले न्यूज़ीलैंड से एक हाई-प्रोफाइल फाइनल में निपटना है। वो न्यूज़ीलैंड जिससे पिछली सीरीज़ में बुरी तरह से पिटे थे। लेकिन, भारत के विरोधी चाहे कितने मज़बूत क्यों ना हों उन्हें मौजूदा टीम इंडिया के आक्रमण से डर लगेगा। भारतीय गेंदबाज़ों के पास क़रीब-क़रीब 1400 विकेट का टेस्ट अनुभव है।

इंग्लैंड में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करनेवाले वेंकेटेश प्रसाद ने हाल ही में मुझे एक दिलचस्प बात बतायी- 

“देखिये, आपको यह बात तो सबसे पहले समझनी होगी कि क्रिकेट में कोई एक तरीका नहीं होता है गेंदबाज़ी का। कई बार ऐसा होता है कि बल्लेबाज एक खास गेंदबाज के ख़िलाफ़ जोखिम लेना नहीं चाहते हैं। मैं आपको खुद का उदाहरण दूंगा। मेरे साथ अक्सर दूसरे छोर पर जवागल श्रीनाथ गेंदबाजी कर रहे होते थे, जिनके ख़िलाफ़ कोई चांस लेने की कोशिश नहीं करता था, लेकिन उन्हें लगता था कि प्रसाद को आराम से धुनाई कर दूँगा और इस सोच की वजह से मेरा फायदा हो जाता था। एक जोड़ीदार के तौर पर आपको टीम के लिये काम करना पड़ता है। इस टीम को सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि जब बुमराह अच्छी गेंद डालकर दबाव बना रहे होते हैं तो विरोधी दूसरे गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं।” 

टीम इंडिया के पूर्व गेंदबाज़ी कोच प्रसाद को लगता है कि मौजूद आक्रमण दौरे पर टीम इंडिया की सबसे बड़ी ताकत है।

भारतीय बल्लेबाज़ी का सबसे कठिन दौरा 

लेकिन, क्या यही बात दावे के साथ भारतीय बल्लेबाज़ी के बारे में कही जा सकती है? शायद नहीं। वजह? रोहित शर्मा के लिए टेस्ट ओपनर के तौर पर यह सबसे कठिन दौरा होने वाला है और यही हाल युवा ओपनर शुभमन गिल के साथ है। अगर दोनों ने अपनी तकनीक और टेंपरामेंट से स्विंग गेंदबाज़ों का तरीक़े से सामना कर लिया तो मध्य-क्रम को जूझना नहीं पड़ेगा।

दरअसल, मध्य-क्रम के दो अहम बल्लेबाज़ों के लिए इंग्लैंड की ज़मीन अग्नि-पथ से कम नहीं है।

टीम के मिस्टर भरोसेमंद चेतेश्वर पुजारा ने लगातार 2 ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर अपनी छाप छोड़ी। 2018 में (521 रन) जो सीरीज़ में सबसे ज़्यादा रन थे।  2021 में भी उनके 271 रन थे। जो ऋषभ पंत के कुल रनों से 3 रन कम थे। लेकिन, इंग्लैंड में पुजारा के नाम सिर्फ़ एक शतक है और औसत भी तीस से कम का। वैसे पुजारा के नाम 85 टेस्ट में 18 टेस्ट शतक हैं।

विदेशी ज़मीं पर अक्सर अच्छा खेल दिखाने वाले अंजिक्या रहाणे ने 73 मैचों में 12 शतक लगाये हैं। औसत के मामले में पुजारा 47 के पास हैं तो रहाणे 41 के आस-पास। लेकिन, पुजारा की ही तरह रहाणे भी इंग्लैंड में तीस से कम रन का औसत रखते हैं। और तो और रहाणे के लिए साल 2021 ख़ास तौर पर बहुत अच्छा नहीं रहा है। इस साल 10 पारियों में रहाणे ने 200 रन भी नहीं बनाये हैं। रहाणे का पहला इंग्लैंड का दौरा 2014 में ख़ासा कामयाब रहा था। तब उन्होंने लॉर्ड्स में एक मैच जिताने वाली अद्भुत पारी खेली थी। इसके बाद 2018 के इंग्लैंड दौरे पर दस पारियों में वो सिर्फ़ दो अर्धशतक ही बना पाये थे। ऐसे में हर हाल में रहाणे के लिए इंग्लैंड में कामयाब होने का दबाव होगा।

एक बात और ध्यान देने वाली है कि मौजूदा पीढ़ी के तीन महान खिलाड़ियों में से दो विराट कोहली और रविचंद्रन अश्विन 2011 में वर्ल्ड कप जीतनेवाली वन-डे टीम का हिस्सा रह चुके हैं जबकि एक और दिग्गज रोहित शर्मा 2007 में टी20 वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम में शामिल थे। पुजारा और रहाणे ही दो ऐसे बल्लेबाज़ हैं जिन्हें आने वाले वक़्त में महान खिलाड़ी का दर्जा मिल सकता है लेकिन आईसीसी के किसी वर्ल्ड कप फ़ाइनल में खेलने का यह उनके लिये शायद आखिरी मौक़ा हो।