केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को आख़िरकार जमानत मिल गई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कप्पन को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी द्वारा उनके खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम मामले में भी बेल दे दी। इस आदेश के साथ ही अब कप्पन के जल्द ही जेल से रिहा होने की संभावना है। सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अन्य सभी मामले में उन्हें जमानत दे दी थी, लेकिन ईडी के एक केस के चलते उन्हें जेल में ही रहना पड़ा था।
कप्पन ने लखनऊ की एक अदालत द्वारा जमानत नामंजूर किए जाने के बाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अब जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की सिंगल जज बेंच ने उन्हें जमानत दे दी।
इस महीने की शुरुआत में लखनऊ की एक अदालत ने पीएमएलए मामले में कप्पन और छह अन्य के खिलाफ आरोप तय किए थे। ईडी ने पिछले साल फरवरी में आरोपियों के खिलाफ अभियोजन शिकायत दायर की थी। अन्य आरोपी केए रऊफ शेरिफ, अतीकुर रहमान, मसूद अहमद, मोहम्मद आलम, अब्दुल रज्जाक और अशरफ खादिर हैं।
पुलिस ने दावा किया है कि आरोपी प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई और उसकी छात्र शाखा कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया यानी सीएफआई के सदस्य हैं।
कप्पन को अक्टूबर 2020 में एक दलित महिला की हत्या के बाद हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था। हाथरस में एक दलित युवती से चार सवर्णों ने कथित तौर पर गैंग रेप किया था और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी थी। इस पर विवाद तब और बढ़ गया था जब प्रशासन ने कथित रूप से अभिभावकों की सहमति के बिना ही लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया था। इसको लेकर प्रशासन की काफ़ी आलोचना हुई थी।
हाथरस घटना के बीच पुलिस ने कहा था कि उसने चार लोगों को मथुरा में पीएफ़आई के साथ कथित जुड़ाव के आरोप में गिरफ्तार किया और चारों की पहचान केरल के मालप्पुरम के सिद्दीक कप्पन, यूपी के मुज़फ़्फ़रनगर के अतीक-उर-रहमान, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के आलम के तौर पर हुई।
हाथरस की उस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस मामले में यूपी सरकार की किरकिरी हुई थी। इसके बाद यूपी सरकार ने कार्रवाई की और कहा कि सरकार को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी। इसी साज़िश में शामिल होने का आरोप कप्पन पर भी लगा।
पुलिस ने कहा था कि कप्पन हाथरस में कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि आरोपियों के पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबंध थे। पत्रकार ने कहा है कि वह निर्दोष है और उन्हें फँसाया जा रहा है।
कप्पन की गिरफ़्तारी के क़रीब एक साल बाद इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। यूपी एसटीएफ़ की चार्जशीट में कहा गया था कि सिद्दीक कप्पन ने मुसलिमों को पीड़ित बताया, मुसलिमों को भड़काया, वामपंथियों व माओवादियों से सहानुभूति जताई।
2021 में सितंबर के आख़िर में दाखिल 5000 पन्ने की चार्जशीट में कप्पन द्वारा मलयालम मीडिया में लिखे गए उन 36 लेखों का हवाला दिया गया जो कोरोना संकट के बीच निजामुद्दीन मरकज, सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन, उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा, अयोध्या में राम मंदिर और राजद्रोह केस में जेल में बंद शरजील इमाम के आरोप-पत्र को लेकर लिखे गए थे। इस मामले में कप्पन की अब तक कई बार जमानत अर्जी खारिज हो चुकी है।