शिवसेना आज अचानक भारतीय जनता पार्टी को बुरी क्यों लगने लगी अचानक बीजेपी को यह क्यों लगने लगा कि शिवसेना की गतिविधियाँ स्टेट टेररिज़्म है और वह देश तथा मुंबई के सबसे बड़े दुश्मन दाऊद को लेकर नरम है मुंबई किसकी है इस सवाल पर आज भारतीय जनता पार्टी क्यों अपनी राय बदल रही है क़रीब तीस साल का राजनीतिक सफर साथ तय करने के बाद क्यों आज भारतीय जनता पार्टी को अपना यह सबसे पुराना साथी ‘विलेन’ नज़र आ रहा है
यह पहली बार नहीं हुआ है जब शिवसेना या शिव सैनिकों ने ‘मुंबई किसकी’ के मुद्दे पर इस तरह की आक्रामक प्रतिक्रिया दी या शिवसेना प्रमुख के बारे में किसी व्यक्ति द्वारा की गयी टिप्पणियों पर अपना यह रूप दिखाया। देवेंद्र फडणवीस से पहले महाराष्ट्र में शिवसेना की पताका प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे जैसे नेता लेकर चलते थे। उस पीढ़ी के कुछ एक नेता आज भी हैं लेकिन वे अब बीजेपी में ही हाशिये पर हैं।
उस दौर में न तो ट्विटर था और न ही कोई अन्य सोशल मीडिया। शिवसेना के संस्थापक और प्रमुख बाला साहब ठाकरे का दौर था। वह सार्वजनिक सभाओं में मंच से अण्णा हजारे, पुष्पा भावे, अॅलेक पदमसी, बी. जी. देशमुख, हिन्दू मुसलमान, पाकिस्तान और फ़िल्मी जगत या क़ारोबारी जगत के उनसे भिन्न विचार रखने वाले लोगों के ख़िलाफ़ जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते थे, वैसी भाषा का इस्तेमाल आज के शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे तो बिलकुल ही नहीं करते। और न ही उद्धव ठाकरे उस तरह से शिव सैनिकों को आदेश देते हैं। लेकिन उस दौर में बीजेपी के नेता बाला साहब के उन वाक्यों को उनकी ‘स्टाइल’ कहकर सराहते थे।
बीजेपी नेता उस दौर में बाला साहब के उन बयानों को लेकर बहुत ख़ुश हुआ करते थे। उदार विचारधारा के समर्थकों, वामपंथी विचारकों या नेताओं को उस दौर में बाला साहब ‘लाल माकड’ (लाल मुँह का बन्दर) बोला करते थे। तब बीजेपी नेता यह सोचते थे कि उनके विरोधियों को बाला साहब अच्छा जवाब दे रहे हैं। लेकिन आज शिवसेना उन्हें सरकार प्रायोजित आतंकी समूह लग रही है।
आज भारतीय जनता पार्टी के नेता आदित्य ठाकरे के बॉलीवुड में संबंधों को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं लेकिन शिवसेना के बॉलीवुड या बाला साहब ठाकरे से संबंध कोई आज की कहानी नहीं है।
जिस समय कांग्रेस या देश व राज्य की किसी भी पार्टी ने बॉलीवुड को मनोरंजन की दुनिया से आगे नहीं आँका था, उस समय बाला साहब ने मुंबई पर अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए बॉलीवुड में चित्रपट सेना का गठन किया था। तब मुंबई में स्मगलिंग का युग था और उस क़ारोबार में कमाया गया पैसा फ़िल्मों में लगाया जाता था। आज की तरह मुंबई में तब रियल एस्टेट क़ारोबार ऊँचाई पर नहीं था। दिलीप कुमार, सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन सबने मातोश्री की सीढ़ियाँ चढ़ीं और बाला साहब के साथ अपनी दोस्ती की बातें कहीं। इस दौरान बाला साहब ने उन फ़िल्मों के प्रदर्शन पर सवाल भी खड़े किये जो उन्हें नहीं जमीं और संतुष्ट होने पर ही प्रदर्शन की अनुमति भी दी। उस समय उनके रुख में न तो भारतीय जनता पार्टी और न ही किसी फ़िल्मी कलाकार को ‘डेथ ऑफ़ डेम्रोक्रेसी’ नज़र आयी
जब फडणवीस जाते थे उद्धव ठाकरे के घर
पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलने के विरोध में क्रिकेट पिच को खोद देने वाली और मुंबई में बीसीसीआई कार्यालय में घुस कर तोड़ फोड़ करने वाली शिवसेना के ख़िलाफ़ बीजेपी ने कभी कुछ नहीं बोला। न उसके महाराष्ट्र के नेतृत्व ने और न ही दिल्ली के नेताओं ने। मुंबई और महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश और बिहार लोगों के ख़िलाफ़ अनेकों बार मारपीट हुई, जिनकी आवाज़ राष्ट्रीय स्तर तक उठी लेकिन बीजेपी तटस्थ जैसी भूमिका में ही रही। एक साल पहले तक बीजेपी और प्रदेश में उसके मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, शिवसेना के साथ गलबहियाँ डाले घूमते रहे। ‘मातोश्री’ में उद्धव ठाकरे की धर्म पत्नी के हाथों के बने वडे और नाश्ते का स्वाद भी देवेंद्र फडणवीस ने बड़े चाव से मीडिया के समक्ष बयान किया था।
यह अपनत्व उस दौर में भी दिखाया जा रहा था जब शिवसेना महाराष्ट्र और केंद्र की सरकार में अपने रोल में असहज पा रही थी और लगातार दोनों सरकारों की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े कर रही थी। पंढरपुर की एक सभा में तो उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर राहुल गाँधी द्वारा बोले जाने वाले नारे, ‘चौकीदार चोर है’ को मंच से बोला था। उसके बाद अमित शाह मातोश्री आये और और दोनों दलों ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा। महाराष्ट्र में अपनी चुनावी सभाओं में मोदी ने उद्धव ठाकरे को ‘माझा लहान भाऊ’ (मेरे छोटे भाई) कहकर संबोधित किया। लेकिन जैसे ही शिवसेना ने मुख्यमंत्री कुर्सी पर हक जताया, सारी मित्रता टूट गयी!
जब से महाराष्ट्र में महाविकास आघाडी की यह सरकार बनी है ऐसा कोई भी महीना नहीं बीता होगा जब इस सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन की माँग न उठी हो! आये दिन देवेंद्र फडणवीस और उनके सहयोगी नेता राजभवन में राज्यपाल से मुलाक़ातें करते रहे हैं। पहले भारतीय जनता पार्टी के नेता राष्ट्रपति शासन की माँग उठाते थे, लेकिन आजकल यह माँग कोई भी उठा रहा है और ट्रोल आर्मी या गोदी मीडिया उसको ऐसे तरजीह दे रहा है जैसे किसी प्रदेश में चुनी हुई सरकार गिराना सबसे सहज काम हो!
आज शिवसेना को ‘गुंडा’ और मुंबई को पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर बताने वाले बयान के पीछे पूरी बीजेपी खड़ी नज़र आ रही है। और बयान देने वाले को सुरक्षा कवच प्रदान कर दिया गया!
एक पूर्व नौ सेना अधिकारी के साथ शिव सैनिकों की मारपीट को जायज नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पीड़ित अधिकारी से फ़ोन पर बात करते हैं और उसके बाद ट्विटर पर प्रतिक्रिया पोस्ट कर बताते हैं कि ‘यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा’। बतौर रक्षा मंत्री उनका यह किया जाना ग़लत नहीं कहा जा सकता है। लेकिन, क्या ऐसा ही कुछ उन्होंने उस समय भी किया था जब मुंबई में फेरीवाले, पानी पूरी, टैक्सी चलाने वालों पर हमले होते थे ये हमले उत्तर प्रदेश के लोगों पर भी हुए हैं और उस दौर में भी राजनाथ बीजेपी के बड़े नेता, राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रहे।
देवेंद्र फडणवीस कहते हैं, कंगना रनौत के बंगले का अनाधिकृत निर्माण कार्य तोड़ दिया, लेकिन दाऊद इब्राहिम का नहीं जहाँ तक जानकारी है अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की संपत्तियाँ स्मगलर ऐंड फॉरेन ऐक्सचेंज मैनीपुलेटर्स (संपत्तियों को जब्त करना) ऐक्ट के तहत 1998 में जब्त की गई थी। उस समय महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार में थी। क़ानूनी लड़ाई के बाद नवंबर 2017 में उसकी दक्षिण मुंबई में स्थित तीन संपत्तियों को 11.58 करोड़ रुपये में नीलाम कर दिया गया था। उस समय स्वयं फडणवीस मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इस कार्रवाई के विरोध में दाऊद की बहन हसीना पारकर और माँ अमीना (जिनकी मौत हो चुकी है) ने कोर्ट में गुहार लगाई थी।
ट्रिब्यूनल के साथ-साथ दिल्ली उच्च न्यायालय में वे यह मामला हार गई थीं। इस पर उन्होंने उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई लेकिन उसने भी उनकी याचिका 2018 में खारिज कर दी। सूत्रों के अनुसार दाऊद की मुंबई में कुछ और सम्पत्तियाँ भी बतायी जाती हैं लेकिन किसी भी सरकार ने उन सम्पत्तियों को अधिकारिक तौर पर आज तक चिन्हित नहीं किया है! उलटे फडणवीस सरकार में उनके मंत्री एकनाथ खडसे पर दाऊद की पत्नी से फ़ोन पर बात करने का आरोप लगा।
आज खडसे और फडणवीस के बीच आरोप और सफ़ाई का खेल चल रहा है। इस सारे घटनाक्रम के बीच प्रदेश में कोरोना का संक्रमण रोज़ नए इतिहास रच रहा है। देश के साथ साथ प्रदेश की अर्थव्यवस्था भी पटरी से उतर रही है। बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोगों के घर और फ़सलें तबाह हो चुकी हैं। लेकिन राजनीति 'सुशांत सिंह राजपूत ने आत्म हत्या की या उसकी हत्या की गयी', रिया चक्रवर्ती और कंगना रनौत के इर्द गिर्द घूम रही है। सोशल मीडिया ही नहीं, गोदी मीडिया के पैसे से खरीदे गए ट्रोल का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले इस मामले की सीबीआई जाँच कराने की माँग होती रही, लेकिन अब यह माँग सरकार को बर्खास्त करने पर पहुँच गयी है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या उद्धव ठाकरे की सरकार, उनसे तीस साल संबंध रखने वाली भारतीय जनता पार्टी को पच नहीं रही है या ग़ैर भाजपाई पार्टियों के गठबंधन का यह फ़ॉर्मूला सफल न हो जाए इस बात की परेशानी है लेकिन इस पूरी लड़ाई में जनता बेहाल हो रही है।