एनसीपी नेता शरद पवार ने जज लोया की मौत के मामले में ऐसे संकेत दिए हैं जिससे गृहमंत्री अमित शाह की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पवार ने कहा है कि यदि माँग होती है और इसकी ज़रूरत पड़ती है तो सीबीआई जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत के मामले की जाँच कराई जानी चाहिए। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे जज लोया की मौत पर कई लोगों ने सवाल उठाए थे। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में अमित शाह भी अभियुक्त थे, लेकिन कोर्ट ने उनको बरी कर दिया है। हालाँकि इसके बाद भी जब तब लोया की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में होने के आरोप लगाए जाते रहे हैं।
लोया से जुड़े ऐसे ही संदेह वाले सवाल पर शरद पवार का बयान आया है। पवार एक स्थानीय मराठी न्यूज़ चैनल 'एबीपी माझा' को इंटरव्यू दे रहे थे। पवार की पार्टी एनसीपी महाराष्ट्र में शिवसेना और कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार में शामिल है। गठबंधन सरकार में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन इसमें शरद पवार की हैसियत भी काफ़ी बड़ी है। सरकार बनाने में पवार की भूमिका को भी शिवसेना और कांग्रेस ने माना है।
बहरहाल, जज लोया की मौत का मामला तब सुर्खियों में आया जब नवंबर 2017 में 'द कैरेवन' द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद इस पर सवाल उठाए गए थे कि लोया की मौत स्वाभाविक थी या नहीं। उस रिपोर्ट में लोया के परिवार ने कहा था कि उनकी मौत की परिस्थितियाँ संदिग्ध थीं और सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में अनुकूल निर्णय देने के लिए उन पर दबाव था। बता दें कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में दिसबंर 2018 में मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 22 अभियुक्तों को बरी कर दिया है। अहमदाबाद में साल 2005 में सोहराबुद्दीन शेख का राजस्थान और गुजरात पुलिस के ज्वाइंट ऑपरेशन में एनकाउंटर कर दिया गया था।
कार्यक्रम में जब लोया पर इसी संदर्भ में सवाल किया गया तो पवार ने कहा, ‘मुझे पता नहीं है, मैंने अख़बारों के कुछ लेखों में पढ़ा कि महाराष्ट्र के लोगों के बीच (जस्टिस लोया की मौत की) गहरी छानबीन करने के लिए चर्चा चल रही है।’ उन्होंने कहा कि उन्हें इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा, ‘अगर माँग है (जाँच के लिए) तो किसी को इसके बारे में सोचना चाहिए - वे किस आधार पर यह माँग कर रहे हैं, इसमें सच्चाई क्या है, इसकी जाँच होनी चाहिए। यदि इसमें कुछ है तो शायद फिर से जाँच की जानी चाहिए। यदि नहीं तो किसी पर भी बेबुनियाद आरोप लगाना सही नहीं है।’
पवार का यह बयान काफ़ी अहम है। क्योंकि महाराष्ट्र में जिस तरह से सत्ता के लिए ज़ोर आज़माइश चली है उसने विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच कड़वाहट को बढ़ाया ही है। यह कड़वाहट चुनाव प्रचार के दौरान और उससे पहले भी दिखी थी।
महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले में शरद पवार का नाम आने के बाद ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने नोटिस दिया था। ईडी ने इसी साल सितंबर महीने में कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग मामले में शरद पवार, उनके भतीजे अजीत पवार सहित 70 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है। तब एनसीपी ने बीजेपी पर विपक्षी नेताओं को परेशान करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का सहारा लेने का आरोप लगाया था। इस नोटिस के बाद शरद पवार बिना बुलाए ही सवालों का जवाब देने के लिए ईडी कार्यालय में चले गए थे। बाद में ईडी ने कहा था कि उन्होंने सिर्फ़ नोटिस दिया था न कि पूछताछ के लिए बुलाया था।
बाद में बीजेपी के साथ शरद पवार की एनसीपी की तल्खी घटी नहीं, बल्कि सरकार गठन की प्रक्रिया के दौरान बढ़ी ही। इसी बीच लोया मामले में फिर से जाँच को लेकर दिया गया शरद पवार का यह बयान काफ़ी मायने रखता है। हालाँकि लोया मामले में अदालत ने साफ़ निर्णय दे दिया है कि उनकी मौत प्राकृतिक थी।
बता दें कि जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने लोया की मौत की जाँच के लिए दायर एक समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत बॉम्बे वकीलों एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें लोया की मौत की स्वतंत्र जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल के फ़ैसले की समीक्षा करने की माँग की गई थी।
अप्रैल 2018 के अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक अधिकारियों पर विश्वास नहीं करने का कोई कारण नहीं था जो लोया के साथ उनकी मृत्यु के समय मौजूद थे। इसने याचिकाकर्ताओं पर ‘न्यायपालिका का अपमान करने’ की कोशिश करने का आरोप लगाया और उनकी याचिकाओं को ‘निंदनीय और आपराधिक अवमानना’ तक क़रार दिया था।
अब ऐसे में सवाल है कि शरद पवार क्या सच में लोया केस की फिर से जाँच कराने के पक्षधर हैं