तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी को गिरफ्तार करने और हिरासत में रखने के तौर-तरीक़ों पर उनकी पत्नी ने गंभीर सवाल उठाए हैं। सेंथिल बालाजी की पत्नी ने मद्रास हाई कोर्ट से कहा है, 'पीएमएलए ईडी को गिरफ्तारी के लिए सीआरपीएफ की सहायता लेने का अधिकार नहीं देता है, इसकी उपस्थिति ही हिरासत प्रक्रिया को बाधित करती है।' इसके साथ ही उन्होंने कई और नियमों का हवाला देकर नियमों का उल्लंघन किए जाने का आरोप लगाया है।
ईडी ने कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में क़रीब हफ्ते भर पहले 18 घंटे की लंबी तलाशी और पूछताछ के बाद सेंथिल बालाजी को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंत्री से घंटों पूछताछ हुई। चेन्नई में बालाजी का सरकारी निवास, फोर्ट सेंट जॉर्ज में राज्य सचिवालय में उनका सरकारी कमरा और चेन्नई में उनके भाई अशोक के घर में भी ईडी के अधिकारी घुसे थे। तब इस तौर-तरीकों को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने भी आलोचना की थी।
वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के समर्थन में उनकी पत्नी ने एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया। लाइल लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इसमें उनकी पत्नी मेगाला ने कहा है कि धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए प्रवर्तन निदेशालय को सीआरपीएफ़ की सहायता मांगने का अधिकार नहीं देता है और न ही यह सीआरपीएफ के लिए निर्धारित कर्तव्यों के अंतर्गत आता है।
रिपोर्ट के अनुसार मेगाला ने तर्क दिया है कि भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सीआरपीएफ का इस्तेमाल केवल नागरिकों की सहायता के लिए किया जा सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि सीआरपीएफ राज्य पुलिस के बदले शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती। उन्होंने दलील दी है कि चूंकि सीआरपीएफ सहायता के लिए राज्य पुलिस से कोई अनुरोध नहीं किया गया था, इसलिए सीआरपीएफ की उपस्थिति ही पूरी हिरासत प्रक्रिया को ग़लत कर देती है।
रिपोर्ट के अनुसार सेंथिल की पत्नी ने हलफनामे में यह भी कहा कि सीआरपीएफ़ की उपस्थिति हिरासत की अवधि की शुरुआत का संकेत होगी और हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उसकी हिरासत के 24 घंटे के भीतर अदालत के सामने पेश नहीं किया गया था। उन्होंने कहा है कि यह पीएमएलए अधिनियम की धारा 19 का उल्लंघन था।
सेंथिल बालाजी की पत्नी ने यह भी तर्क दिया कि ईडी खुद पुलिस नहीं है और इस कारण बालाजी की हिरासत की मांग नहीं कर सकती है।
हाई कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि प्रधान सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित न्यायिक हिरासत का आदेश अवैध था क्योंकि न्यायाधीश इस तथ्य पर विचार करने में विफल रहे कि सीआरपीसी की धारा 50 एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) का पालन नहीं किया गया। उन्होंने दावा किया कि गिरफ्तारी करते समय मौलिक और वैधानिक दोनों अधिकारों का उल्लंघन किया गया।
उन्होंने कहा है कि इस आधार पर हिरासत देने का आदेश कि बालाजी जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे, तथ्यात्मक रूप से गलत है। अपने अतिरिक्त हलफनामे में मेगाला ने यह भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष के अन्नामलाई ने हमेशा बालाजी के प्रति द्वेष रखा है क्योंकि वह उन्हें अपने राजनीतिक क्षेत्र के लिए खतरा मानते थे और केंद्रीय एजेंसियों से कार्रवाई की धमकी दे चुके थे।
बता दें कि मामला राज्य के परिवहन विभाग में नौकरी के लिए घोटाले से जुड़ा है, जो कथित तौर पर 2011-16 में एआईएडीएमके शासन में परिवहन मंत्री के रूप में बालाजी के कार्यकाल के दौरान हुआ था। मामला मार्च 2021 में विधानसभा चुनाव से पहले दर्ज किया गया था।
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर, 2022 को मद्रास हाईकोर्ट द्वारा बालाजी और अन्य को मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम मामले में भेजे गए ईडी समन को खारिज करने के पिछले फैसले को रद्द करते हुए जांच का रास्ता साफ कर दिया था।