काश! उग्र भीड़ की हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करने वाले रंगकर्मियों, बुद्धिजीवियों और सिनेजगत की हस्तियों के ख़िलाफ़ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में दर्ज प्राथमिकी को राजनीतिक रंग देने से पहले वस्तुस्थिति की जानकारी ले ली गयी होती। यह प्राथमिकी अदालत के आदेश पर दर्ज हुई है और अब इसे क़ानूनी प्रक्रिया के माध्यम से ही निरस्त कराना होगा।
नामचीन व्यक्तियों के ख़िलाफ़ तरह-तरह के मुद्दों पर अदालत में शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्ति वहाँ के स्थानीय अधिवक्ता सुधीर कुमार ओझा हैं।
अदालतों में दायर होने वाली इस तरह की शिकायतों की लंबी फ़ेहरिस्त है। ओझा द्वारा अदालत में दायर शिकायतों में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से लेकर अरविन्द केजरीवाल और कांग्रेस के मुकुल वासनिक तथा फ़िल्म जगत की कई हस्तियाँ शामिल हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ तो संयुक्त राष्ट्र की महासभा में उनके भाषण के आधार पर उनके ख़िलाफ़ भारत के साथ युद्ध छेड़ने के आरोप में मुक़दमा चलाने का अनुरोध किया गया है।
फ़िल्म ‘स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर’ में जनता की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आरोप में शाहरुख़ ख़ान, गौरी ख़ान और करण जौहर तथा अन्य के ख़िलाफ़ नवंबर, 2012 में ओझा की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसको लेकर मुज़फ़्फ़रपुर की अदालत में लंबित कार्यवाही पर पटना उच्च न्यायालय ने जनवरी 2013 में रोक लगायी थी।
ओझा की शिकायत का 2011 में मुज़फ़्फ़रपुर की अदालत ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, महासचिव राहुल गाँधी, मुकुल वासनिक और कुछ अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ संज्ञान लिया था। हालाँकि एक साल बाद अदालत ने सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ मामला ख़त्म करके सिर्फ़ वासनिक को सम्मन जारी किया था। पटना उच्च न्यायालय ने क़रीब आठ साल बाद इस साल जनवरी में वासनिक के ख़िलाफ़ दर्ज मामला निरस्त किया।
ऐसा नहीं है कि इस तरह की शिकायतें सिर्फ़ मुज़फ़्फ़रपुर में ही दायर होती हैं लेकिन शायद सुधीर कुमार ओझा द्वारा दायर की जा रही शिकायतों की संख्या बहुत अधिक है और इस वजह से वह अक्सर चर्चा में आ जाते हैं।
इतनी शिकायतों को देखकर सहसा यह विचार मन में आता है कि ये शिकायतें कहीं प्रचार पाने के लिए तो नहीं दायर की जाती हैं या फिर वास्तव में इनका उद्देश्य आरोपियों को किसी न किसी तरह से सज़ा दिलाना है यह विचार आने का कारण भी है क्योंकि इस तरह से दर्ज प्राथमिकी से निजात पाने के लिए इन हस्तियों को निचली अदालत या फिर उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है।
जनहित याचिका के नाम पर राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण विषयों की आड़ में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में भी अनेक याचिकायें दायर होती रही हैं। कभी-कभी तो न्यायालय ऐसी याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना भी लगाते हैं लेकिन इसके बावजूद यह सिलसिला जारी है। शीर्ष अदालत ने अनर्गल मुद्दों को लेकर जनहित याचिका दायर करने वालों पर 25 हजार रुपए से लेकर 25 लाख रुपए तक का जुर्माना भी किया है। इनमें वकील भी शामिल हैं।इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री को पत्र लिखने को लेकर वकील की शिकायत पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा संबंधित व्यक्तियों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करने का पुलिस को आदेश देना चिंता का विषय है।
रंगकर्मी मणिरत्नम, इतिहासकार रामचन्द्र गुहा, अभिनेत्री अपर्णा सेन, अनुराग कश्यप, शुभ्रा मुद्गल जैसे प्रबुद्ध लोगों द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर चिंता व्यक्त करने के मामले में शिकायत दर्ज कराना, कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला करने के समान ही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इन हस्तियों ने मुसलमानों, दलितों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए इन्हें रोकने का अनुरोध किया था।
शिकायतकर्ता का आरोप है कि इस पत्र से इन नामचीन हस्तियों ने देश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाई है और प्रधानमंत्री के शानदार कामों को कमतर करने के साथ ही अलगाववादी प्रवृत्ति का समर्थन किया है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुलिस को प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश दिया। पुलिस ने राजद्रोह, धार्मिक भावनाओं को आहत करने और शांति भंग करने के प्रयास सहित भारतीय दंड संहिता के विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कर ली।
एक बात समझ में नहीं आयी कि अगर अदालत के आदेश पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है तो इसमें सरकार और राजनीति कहाँ से आ गयी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी द्वारा इस घटना पर बयान देने से अनायास ही रफ़ाल मामले में उनकी बयानबाज़ी की याद ताज़ा कर दी।
हाँ, अब इस प्राथमिकी को निरस्त कराने के लिये पूरी क़ानूनी कवायद करनी पड़ेगी, जैसा कि भीमा-कोरेगाँव मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के मामले में देखने में आ रहा है। हालाँकि, गौतम नवलखा का मामला इन हस्तियों से एकदम अलग है।
400 से अधिक शिकायतें दर्ज कराईं
प्राप्त जानकारी के अनुसार सुधीर कुमार ओझा इस तरह की 400 से भी अधिक शिकायतें अदालत में दायर कर चुके हैं और इनमें से अधिकांश में उन्हें नामचीन हस्तियों के ख़िलाफ़ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश प्राप्त करने में सफलता भी मिली है।
रामचंद्र गुहा के मामले में अदालत के आदेश की ख़बर सुर्खियों में आते ही सबसे पहले शिकायतकर्ता के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता हुई और अपेक्षा के अनुरूप अनुमान सही निकला। अधिवक्ता सुधीर ओझा अब तक सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, दबंग स्टार सलमान ख़ान से लेकर ‘धक-धक गर्ल’ माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय और ‘एक्सीडेन्टल प्राइम मिनिस्टर’ फ़िल्म के निर्देशक के ख़िलाफ़ अदालत में शिकायत दायर कर चुके हैं। इसके अलावा वह शाहरुख़ ख़ान, गौरी ख़ान, कैटरिना कैफ़, ऋतिक रोशन, अन्ना हजारे, रवीना टण्डन, बिपाशा बसु और विद्या बालन सहित कई हस्तियों के ख़िलाफ़ शिकायतें कर चुके हैं।
इन शिकायतों में कभी यातायात अवरुद्ध होना, कभी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचना, सांप्रदायिक सद्भाव को ठेस पहुँचाना, अश्लीलता दिखाना और कभी पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को ग़लत तरीक़े से पेश करने को आधार बनाया गया।
हालाँकि, सुधीर कुमार ओझा अक्सर ही नामचीन व्यक्तियों को अदालत में घसीटने की वजह से सुर्खियों में रहते हैं लेकिन विचारणीय मुद्दा यह है कि इनमें से कितनी शिकायतों में ठोस कार्रवाई हो पायी और इन शिकायतों पर कार्यवाही में अदालत का कितना समय लगा।