सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच ने नियमों का उल्लंघन कर कमाई कीः रिपोर्ट

09:10 am Aug 17, 2024 | सत्य ब्यूरो

सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच ने अपने सात साल के कार्यकाल के दौरान एक कंसल्टेंसी फर्म से आमदनी अर्जित करना जारी रखा, जो सेबी अधिकारियों के लिए नियमों का उल्लंघन है। यह जानकारी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में दी गई है। रायटर्स ने इस मामले से जुड़े दस्तावेजों को देखा है। हिंडनबर्ग ने भी हाल ही में सेबी प्रमुख पर अडानी समूह को लेकर हितों के टकराव के आरोप लगाए थे। रॉयटर्स की रिपोर्ट उससे अलग है। 

अमेरिकन शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह से जुड़ी सेबी की जांच में इसकी प्रमुख बुच के हितों के टकराव का आरोप लगाया है। गौतम अडानी के नेतृत्व वाले समूह के खिलाफ पिछले साल जनवरी में लगाए गए आरोपों से प्रमुख अडानी एंटरप्राइजेज और अन्य समूह फर्मों के शेयर की कीमतों में बड़ी गिरावट आई, जो बाद में ठीक हो गई। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) इस मामले में अडानी समूह के खिलाफ वित्तीय गड़बड़ियों की जांच कर रहा है जो अभी तक पूरी नहीं हुई है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के बाद सेबी प्रमुख पर आरोपों की गंभीरता बढ़ गई है। 

हालांकि बुच ने 11 अगस्त को एक बयान में अडानी समूह को लेकर हितों के टकराव के आरोपों से इनकार किया और इसे "चरित्रहनन" की कोशिश बताया। लेकिन वो आरोपों को अपने वाजिब तर्कों के जरिए सही नहीं ठहरा पाईं। हिंडनबर्ग ने अपनी दूसरी रिपोर्ट में, बुच और उनके पति द्वारा संचालित दो कंसलटेंसी फर्मों - सिंगापुर स्थित एगोरा पार्टनर्स और भारत स्थित एगोरा एडवाइजरी के मामले का पर्दाफाश किया है।

माधबी पुरी बुच 2017 में सेबी में आईं। मार्च 2022 में उन्हें सेबी प्रमुख बना दिया गया। सार्वजनिक दस्तावेजों के अनुसार, उन सात वर्षों में, एगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड, जिसमें बुच की 99% शेयरहोल्डिंग है, ने 37.1 मिलियन रुपये ($442,025) की आमदनी कमाई। रॉयटर्स ने कंपनी रजिस्ट्रार के दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद यह बात कही। कंपनी रजिस्ट्रार भारत सरकार का अधिकारी है, जिसके पास ये सूचनाएं आधिकारिक तौर पर भेजी जाती हैं।


बुच की कंसलटेसी फर्म में शेयरहोल्डिंग और कमाई 2008 की सेबी नीति का उल्लंघन है जो अधिकारियों को लाभ का पद रखने, अन्य प्रोफेशनल गतिविधियों से वेतन या प्रोफेशनल फीस प्राप्त करने से रोकती है। बुच ने अपने बयान में खुद कहा कि उनकी कंसलटेंसी फर्मों की जानकारी सेबी को दी गयी थी और उनके पति ने 2019 में यूनिलीवर से रिटायर होने के बाद अपने कंसलटेंसी कारोबार के लिए इन फर्मों का इस्तेमाल किया था। यानी बुच ने माना कि उनकी कंसलटेंसी फर्म थी। जिसमें उनके पति भी शामिल थे। यहां तक कि उनका दावा है कि इन फर्मों के बारे में सेबी को जानकारी दी गई थी। हिंडनबर्ग ने भी तो यही बात अपनी रिपोर्ट में कही और यह भी बताया कि इन्हीं फर्मों के जरिए अडानी समूह में निवेश किया गया। आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेबी-अडानी-बुच की कंसलटेंसी फर्म का गठजोड़ क्या रहा होगा।

रॉयटर्स ने सेबी प्रमुख बुच और सेबी प्रवक्ता से ताजा गंभीर खुलासे पर टिप्पणी मांगी, लेकिन फिलहाल उनका जवाब रॉयटर्स को नहीं मिला है।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में जो तथ्य सेबी प्रमुख बुच और अडानी समूह को लेकर बताए और अब जो तथ्य रॉयटर्स की रिपोर्ट बता रही है, उनकी कड़ियां कहीं न कहीं जुड़ती हैं। अगर दोनों रिपोर्ट को मिलाकर देखा जाए तो पता चलता है कि सेबी की जांच अडानी समूह के मामले में कैसे निष्पक्ष हो सकती है। हिंडनबर्ग ने सिंगापुर कंपनी के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि बुच ने मार्च 2022 में एगोरा पार्टनर्स में अपने सभी शेयर अपने पति को ट्रांसफर कर दिए। हालांकि, मार्च 2024 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए कंपनी के रिकॉर्ड के अनुसार, बुच के पास अभी भी भारतीय कंसलटेंसी फर्म में शेयर हैं। यानी सेबी प्रमुख के पद पर रहते हुए भी बुच शेयरों के जरिए कमाई तो कर ही रही हैं।  

भारत सरकार के पूर्व शीर्ष नौकरशाह और बुच के कार्यकाल के दौरान सेबी बोर्ड के सदस्य सुभाष चंद्र गर्ग ने फर्म में बुच की इक्विटी और इसके लगातार कारोबार करने को आचरण का "बहुत गंभीर" उल्लंघन बताया। गर्ग ने कहा, "बोर्ड में शामिल होने के बाद उनके लिए कंपनी का मालिकाना हक जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। अगर वो उन फर्मों का खुलासा कर देतीं तो उसके बाद भी उन्हें अनुमति नहीं दी जा सकती थी।"

  • सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा- "यह सेबी में उनकी (बुच) स्थिति को पूरी तरह से गैरकानूनी बनाता है।" यानी सेबी प्रमुख रहते हुए भी माधबी पुरी बुच का कंसलटेंसी फर्म के शेयर रखना और उनसे कमाई करना खुद सेबी नियमों का उल्लंघन है। 

बुच ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या उन्हें भारतीय कंसलटेंसी फर्म में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने की छूट दी गई थी। इस बारे में उनसे पूछे गए एक खास सवाल का भी जवाब नहीं दिया गया। हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद बुच ने सफाई पेश करते हुए सभी आरोपों को गलत बता दिया लेकिन यह स्वीकार किया कि उनके पति के बचपन के दोस्त ने अडानी कंपनियों में निवेश किया था। लेकिन बुच ने यह बात छिपा ली कि सेबी ने क्या उन्हें शेयर रखने की अनुमति दी थी। सेबी ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि उसके नियम स्पष्ट हैं।

  • गर्ग और सेबी बोर्ड के एक सदस्य के अनुसार, बुच ने या किसी अन्य अधिकारी ने अपने व्यावसायिक हितों के बारे में बोर्ड को कोई खुलासा नहीं किया।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद भारत के सभी विपक्षी नेताओं ने बुच के इस्तीफे की मांग की। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रवक्ता ने विपक्ष के हमले को निराधार बताया। उल्टा नेता विपक्ष राहुल गांधी पर आरोप लगाया गया कि वे भारत की आर्थिक मजबूती को बर्बाद करना चाहते हैं। यानी सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और अडानी समूह पर विपक्ष और राहुल के हमले भारत की आर्थिक मजबूती पर हमला है, भाजपा यह कहना चाहती है।

सेबी के एक सदस्य ने रॉयटर्स को बताया कि "बुच को सालाना डिसक्लोजर में यह सारा खुलासा करना चाहिए था, लेकिन बोर्ड के सदस्यों के इस खुलासे को जानकारी या जांच के लिए बोर्ड के सामने नहीं रखा गया।" बोर्ड के सदस्य ने अपनी पहचान बताने से इनकार कर दिया। सेबी के सदस्य सुभाष चंद्र गर्ग ने भी कहा- गर्ग ने कहा, "निश्चित रूप से, किसी भी सदस्य के खुलासे पर चर्चा नहीं की गई। यदि खुलासे केवल तत्कालीन अध्यक्ष अजय त्यागी के सामने किए गए थे, तो मुझे इसकी जानकारी नहीं है।"

रॉयटर्स ने अजय त्यागी से इस बारे में जानकारी मांगी। उन्हें संदेश भेजे गए, कई कॉल की गई लेकिन त्यागी ने कोई जवाब नहीं दिया कि क्या उन्हें या उनसे बुच ने वो खुलासे किए थे।

इस सारे प्रकरण में मोदी सरकार के वित्त मंत्रालय की चुप्पी अजीबोगरीब है। इतना बड़ा मामला सामने आने के बावजूद वित्त मंत्रालय या सरकार के किसी प्रवक्ता की टिप्पणी सामने नहीं आई है। हिंडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट को अडानी समूह ने भी खारिज कर दिया है। लेकिन अडानी समूह ने सेबी प्रमुख से संबंधों पर कुछ नहीं कहा। देश की प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस लगातार मांग कर रही है कि इस सारे मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित हो। सुप्रीम कोर्ट ने सेबी से तीन महीने में सारे मामले की जांच के लिए कहा था लेकिन वो तीन महीने कब को बीत चुके हैं। एक वकील ने इस संबंध में नई याचिका दायर करना चाही तो सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने उनकी याचिका को ही लिस्ट करने से मना कर दिया।