सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ईडी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देने को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि झारखंड हाईकोर्ट का आदेश काफी सोच-विचार कर दिया गया था और उसने किसी भी बयान को ग़लत तरीक़े से नहीं लिया था।
ईडी ने झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि हाईकोर्ट का आदेश अवैध था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का फ़ैसला बहुत ही तर्कसंगत था। हाईकोर्ट के फ़ैसले में प्रथम दृष्टया यह पाया गया कि सोरेन धन शोधन के दोषी नहीं हैं।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 50 के तहत ईडी द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयानों पर हाईकोर्ट द्वारा अविश्वास जताए जाने पर आपत्ति जताई। जवाब में जस्टिस गवई ने कहा, 'हमारी राय में यह एक बहुत ही तर्कसंगत आदेश है।'
एएसजी के इस तर्क के जवाब में कि उच्च न्यायालय को धारा 50 के कथनों की पूरी तरह से अवहेलना नहीं करनी चाहिए थी, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उन्हें अवहेलना करने के लिए वैध कारण दिए गए हैं। जब एएसजी ने आगे तर्क देने की कोशिश की तो जस्टिस गवई ने चेतावनी दी, 'हम आगे कुछ भी नहीं सुनना चाहते हैं। अगर हम आगे कुछ भी सुनते हैं, तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। वरिष्ठतम न्यायाधीश ने बहुत ही तर्कसंगत निर्णय दिया है।'
एएसजी के इस दावे पर कि ईडी के मामले की पुष्टि करने वाले दस्तावेज मौजूद हैं, न्यायमूर्ति गवई ने कहा, 'इसके विपरीत, यह स्पष्ट निष्कर्ष है कि भानु प्रताप से जब्त किए गए सभी सामग्रियों में आवेदक (सोरेन) को फंसाने वाला कुछ भी नहीं है।'
अदालत ने कहा, 'हम विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। हम साफ़ करते हैं कि एकल न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियां जमानत पर विचार करने से संबंधित हैं और इससे ट्रायल जज पर ट्रायल या किसी अन्य कार्यवाही में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।' सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गवई ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा एक सार्वजनिक समारोह में ट्रायल जजों द्वारा जमानत देने में अनिच्छा के बारे में दिए गए बयान का भी उल्लेख किया।
सुप्रीम कोर्ट ईडी की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी जेएमएम प्रमुख को दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि अगर उन्हें जमानत पर रिहा किया गया, तो वे इसी तरह का अपराध कर सकते हैं। सोरेन के वकील ने उनकी जमानत के लिए जोरदार तर्क दिया था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें केंद्रीय एजेंसी द्वारा एक आपराधिक मामले में झूठा फँसाया गया था।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति रोंगन मुखोपाध्याय की एकल पीठ ने जमानत देते हुए कहा कि यह मानने के कारण मौजूद हैं कि सोरेन पीएमएलए अपराध के दोषी नहीं हैं, जिसका उन पर आरोप लगाया गया है।
पीठ ने यह भी कहा कि ईडी का दावा कि उसकी समय पर की गई कार्रवाई ने रिकॉर्ड में जालसाजी और हेरफेर करके भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोका है, एक अस्पष्ट बयान लगता है।
यह मामला रांची के बार्गेन इलाक़े में 8.86 एकड़ भूमि के कथित अवैध कब्जे से जुड़ा है। ईडी के अनुसार, यह अवैध रूप से भूमि अधिग्रहण करने में शामिल एक सिंडिकेट की पीएमएलए जाँच में अपराध की आय से जुड़ा था। इस मामले में ईडी ने सोरेन, रांची के पूर्व डिप्टी कमिश्नर और आईएएस अधिकारी छवि रंजन, भानु प्रताप प्रसाद और अन्य समेत 25 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया था।
मामले में 31 जनवरी को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने से कुछ समय पहले सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। रिहाई के बाद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम नेता चंपई सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और हेमंत सोरेन ने विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया। विश्वास मत जीतने के बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने 4 जुलाई को झारखंड के सीएम के रूप में शपथ ली।