+
नोटबंदी आर्थिक आतंकवाद थी, मौतों के लिए ज़िम्मेदार कौन: राउत

नोटबंदी आर्थिक आतंकवाद थी, मौतों के लिए ज़िम्मेदार कौन: राउत

सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फ़ैसले को वैध ठहराया है। लेकिन विपक्षी दल क्यों नोटबंदी के फ़ैसले की आलोचना करते हैं? जानिए, संजय राउत नोटबंदी को लेकर क्या टिप्पणी की।

नोटबंदी के फ़ैसले को शिवसेना सांसद संजय राउत ने आर्थिक आतंकवाद बताया है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के दौरान लोगों को अपनी जान तक गँवानी पड़ी थी। राउत की यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटबंदी पर फ़ैसला सुनाए जाने के बाद आई है।

राउत न कहा, 'नोटबंदी के दौरान बैंक की कतार में हजारों लोग मारे गए, उनका ज़िम्मेदार कौन? यह एक तरह से आर्थिक आतंकवाद था जो देश में लाया गया। हम न्यायमूर्ति नागरत्ना से सहमत हैं जिन्होंने इसको अवैध करार दिया। लेकिन फिर भी हम न्यायालय को नमस्कार करते हैं।'

राउत ने जस्टिस नागरत्ना का ज़िक्र इसलिए किया कि उन्होंने नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से अलग राय रखी। दरअसल, नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ में से 4 ने सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया था। सिर्फ एकमात्र जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने तीखे सवाल करते हुए सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा था, 'आरबीआई ने नोटबंदी की सिफारिश में स्वतंत्र रूप से दिमाग नहीं लगाया, 24 घंटे में पूरी कवायद कर दी गई। मेरे विचार में 8 नवंबर 2016 की अधिसूचना के जरिए हुई नोटबंदी की घोषणा गैरकानूनी थी। लेकिन 2016 की स्थिति को अब बहाल नहीं किया जा सकता है। लेकिन जिस तरीके से इसे लागू किया गया वह कानून के अनुरूप नहीं था।'

बता दें कि 8 नवंबर 2016 को रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी, 'देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त क़दम उठाना ज़रूरी हो गया है। आज मध्य रात्रि यानी 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानी ये मुद्राएं क़ानूनन अमान्य होंगी। 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों के ज़रिये लेन-देन की व्यवस्था आज मध्य रात्रि से उपलब्ध नहीं होगी।'

नोटबंदी लागू होने से पहले ही घोषणा के तुरंत बाद देश में अफरा-तफरी मच गई थी। रात में ही बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गईं, सोने की दुकानों पर भीड़ लग गई थी।

बैंकों के बाहर लाइनें लगाकर नोटों को बदलवाने के लिए लोगों को हफ्तों तक परेशान होना पड़ा था। बाद में 500 के नए नोट और 2000 रुपए के नये नोट जारी किए गए थे। एक तरफ़ लोग अपने पुराने नोटों को जमा करने के लिए परेशान हो रहे थे वहीं दूसरी तरफ़ लोगों को हर रोज़ की ज़रूरत की चीजों के लिए पैसों की किल्लत हो गई थी। चाहे बैंक हों या फिर एटीएम लंबी-लंबी लाइनें लग रही थीं। ठिठुराती सर्द रात में भी लोग लाइनों में इंतज़ार कर रहे थे। पैसे के बिना इलाज नहीं होने, शादियाँ टूटने जैसी दिक्कतें आई थीं। लाइनों में लोगों के मरने की ख़बरें भी आई थीं। कुछ रिपोर्टों में बड़ी संख्या में मौत होने के दावे किये गये थे, लेकिन सरकार ऐसे दावों को खारिज करती रही। 

नोटबंदी के शुरुआती दिनों में जब इस फैसले की देश-दुनिया में व्यापक आलोचना हो रही थी और विशेषज्ञों द्वारा सवाल उठाते हुए इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए खराब फैसला बताया गया था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि उन्होंने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी का कदम उठाया है। उन्होंने लोगों से 50 दिन का समय मांगा था।

मोदी ने यह भाषण नोटबंदी लागू होने के पांच दिन बाद यानी 13 नवंबर 2016 को दिया था। उन्होंने कहा था, ''मैंने देश से सिर्फ 50 दिन मांगे हैं। मुझे 30 दिसंबर तक का वक्त दीजिए। उसके बाद अगर मेरी कोई गलती निकल जाए, कोई कमी रह जाए, मेरे इरादे गलत निकल जाएं तो देश जिस चौराहे पर खड़ा करके जो सजा देगा, उसे भुगतने के लिए मैं तैयार हूं।’’ प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान पर अब भी विपक्षी दल निशाना साधते रहे हैं।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें