यह किताब हिंसा को सही ठहराती है और उसे धर्म और समाज की रक्षा के नाम से जोड़ती है और एक तरह से मान कर चलती है कि कलियुग में कोई युद्ध चल रहा है। ‘क्षात्र धर्म साधना’ किताब में दुर्जन की परिभाषा दी गई है। यह कहा गया है कि धन और सेक्स की वजह से समाज का नाश हो रहा है, स्थापित मूल्य ख़त्म हो रहे हैं जिससे लोगों में सघन निराशा घर कर रही है। आज इस बात की आवश्यकता है कि समाज को बचाया जाए। किताब में यह साफ़ कहा गया है कि अब समाज में राक्षस नहीं होते बल्कि वे दुर्जन के रूप में मिलते हैं। ये दुर्जन कीड़े-मकोड़ों की तरह से समाज को नष्ट कर रहे हैं। अगर इन कीड़ों को नहीं मारा गया तो पूरा समाज ही ख़त्म हो जाएगा। इसलिए खुद को बचाने के लिए इन दुर्जनों को मारना ज़रूरी है। वे दुर्जनों की हत्या को पाप नहीं मानते।किताब मौजूदा हालात की तुलना फ़्रांसीसी क्रांति के समय से करती है। वह कहती है इस समय देश में वैसे ही हालात हैं। जैसे फ़्रांसीसी क्रांति के समय दुर्जनों का कत्ल किया गया, वैसे ही आज यह ज़रूरी है। जो दुर्जनों के सहमतिकार हैं, वे भी दुर्जन है और उन्हें भी नहीं बख़्शना चाहिये। धर्मयुद्ध में यह जायज़ है। तत्व और धर्म की स्थापना के लिए यह करना पड़ता है।
किताब में कहा गया है कि हमारा धर्मयुद्ध 65% भाग आध्यात्मिक और 30% भाग मनोवैज्ञानिक लड़ाई से जीता जाएगा लेकिन 5% हिस्सा शारीरिक विधि से जीतना होगा।
किताब बेहिचक कहती है कि 100 में से 5 लोगों को शारीरिक हिंसा करने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह भी कहा गया है कि धर्म की स्थापना के लिए हिंसा, हिंसा नहीं होती बल्कि वह अहिंसा होती है।