एक न्यायिक आयोग ने मंगलवार 21 जनवरी को संभल का दौरा किया। इसका गठन यूपी सरकार ने किया था। आयोग 24 नवंबर 2024 को शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान दंगों से प्रभावित क्षेत्रों को देखने और गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए आया था। आयोग ने शाही जामा मस्जिद क्षेत्र सहित इन स्थानों का फिर से दौरा किया, जहां हिंसा हुई थी। आयोग के सदस्यों के नेतृत्व में टीम ने एक घंटे से अधिक समय तक व्यापक निरीक्षण किया। इसके बाद, वे संभल में चंदौसी रोड पर पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस चले गए, जहां शाम 4 बजे तक सार्वजनिक बयान दर्ज किये गये।
आयोग में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज देवेंद्र अरोड़ा, पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन और उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रमुख सचिव अमित मोहन प्रसाद शामिल हैं। इसका गठन घटनाओं की जांच करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। पत्रकारों से बात करते हुए, आयोग के सदस्य अरविंद कुमार जैन ने कहा, "हमने यह तय करने के लिए यहां शिविर लगाया कि जो लोग अपनी चिंताओं को साझा करना चाहते हैं और जानकारी देना चाहते हैं, वे यहां आकर बयान दर्ज करा सकते हैं। उन्हें लखनऊ की यात्रा नहीं करनी पड़ेगी। यह उनकी सुविधा के लिए है। जांच का मकसद दंगों के कारणों को उजागर करना और प्रभावित लोगों से प्रासंगिक सबूत जमा करना है।
संभल के मोहाल नखासा की शमा परवीन सहित स्थानीय लोगों ने आयोग को अपना बयान दर्ज कराने का दावा किया है। शमा ने कहा “मेरे पति मोहम्मद नदीम को पुलिस ने 24 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि वह बीमार थीं और घटना के समय घर पर ही थीं!” सूत्रों के मुताबिक तमाम पीड़ितों ने आयोग के सदस्यों को बताया कि यह एकतरफा हिंसा थी। जिसमें पुलिस शामिल थी। क्या आयोग हमें इंसाफ दिला पाएगा।
क्या हुआ था संभल में
संभल हिंसा 24 नवंबर 2024 को हुई थी। संभल में वहां की शाही मस्जिद के सर्वे को लेकर बवाल हुआ था। हिंसक झड़प तब हुई जब एक सर्वे टीम मस्जिद का सर्वे करने पहुँची। एक शिकायत पर अदालत के आदेश के बाद टीम सर्वे करने पहुँची थी। वकील विष्णु शंकर जैन ने अपनी अर्जी में कोर्ट में दावा किया था कि मस्जिद के स्थान पर कभी हरिहर मंदिर नामक मंदिर हुआ करता था और मुगल सम्राट बाबर ने 1529 में इसे आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था। जिस स्थानीय कोर्ट में यह अर्जी लगाई गई, उसने सर्वे का आदेश कर दिया। सर्वे टीम उसी दिन शाही मस्जिद जा पहुंची।लेकिन उसके साथ एक भीड़ भी थी, जिसने उत्तेजक नारेबाजी की और नमाज पढ़ रहे लोगों को भगा दिया। फिर दोनों ओर से पथराव हुआ। पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें 4 मुस्लिम युवक मारे गये।इरफान को किसने मारा
एक तरफ तो न्यायिक आयोग संभल में मौके पर थी। दूसरी तरफ इरफान नामक फल विक्रेता को पुलिस एक शिकायत पर पकड़ कर ले गई। लेकिन पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गई थी। इरफ़ान की पत्नी रेशमा ने आरोप लगाया कि इरफान के स्वास्थ्य के बारे में पुलिस से गुहार लगाने के बावजूद उन्हें दवाएँ लेने की अनुमति नहीं दी गई। इरफान दिल के मरीज थे और मुरादाबाद में उनकी नाक की हड्डी की सर्जरी हुई थी। आरोप है कि पुलिस ने दवा भी नहीं लेने दी, बल्कि गिरफ्तार कर थाने ले आई। हालांकि पुलिस आरोपों से इनकार कर रही है।पुलिस हिरासत में इरफान की मौत के बाद स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। परिवार का आरोप है कि हिरासत में प्रताड़ना के कारण इरफान की मौत हुई है। इस मामले में तमाम विपक्षी नेताओं ने भी संभल पुलिस पर आरोप लगाये हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को एक्स पर लिखा- भाजपा सरकार के तहत उत्तर प्रदेश के अंदर ‘हिरासत में मौत’ का सिलसिला थम नहीं रहा है। हालिया मामले में संभल में पूछताछ के नाम पर घर से ले गये व्यक्ति की हिरासत में मौत होने से जनाक्रोश भड़क उठा। अन्याय करनेवाली भाजपा सरकार अब अपने अंतिम दौर में है।
भीम आर्मी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा- इरफान की संदिग्ध मौत ने कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। परिजनों द्वारा लगाए गए पुलिस टॉर्चर के आरोपों ने न केवल प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि योगी सरकार की कार्यशैली पर भी करारा प्रहार किया है। प्रदेश में पुलिस बर्बरता की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं, कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने के नाम पर ऐसी घटनाएं प्रदेश की जनता के विश्वास को ठेस पहुंचा रही हैं। क्या यह यूपी सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह पुलिस तंत्र में जवाबदेही तय करे और मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे? यह घटना योगी सरकार की विफलता को उजागर करती है, जहां कानून के रक्षक ही कानून के भक्षक बनते जा रहे हैं। इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई करना न केवल जरूरी है, बल्कि यह सरकार की विश्वसनीयता की परीक्षा भी है।
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने एक्स पर लिखा- संभल में संविधान और मानवाधिकारों को नहीं मानती पुलिस, लगातार पुलिसिया उत्पीड़न की कहानियॉं सामने आ रही हैं।
संभल में आये दिन उकसावे वाली कार्रवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने देश में बुलडोजर न्याय पर रोक लगा दी थी। उसने कहा था कि धार्मिक स्थलों और लोगों के घरों पर बेवजह बुलडोजर चलाना सहन नहीं किया जाएगा। लेकिन संभल ही नहीं यूपी में कई स्थानों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को अंगूठा दिखाते हुए तोड़फोड़ की गई। संभल में कई लोगों के मकानों और दुकानों को अवैध बताकर बुलडोजर से गिराने की धमकी दी गई। संभल में शाही मस्जिद के कुएं के सामने पूजा की कोशिश हुई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया। संभल में मुस्लिमों पर बिजली चोरी की 400 एफआईआर दर्ज की गई। इसके अलावा तमाम मस्जिदों और दरगाहों पर बिजली चोरी का आरोप लगाया गया।