सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (20 जनवरी) को कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ रांची में चल रहे आपराधिक मानहानि के मामले की कार्यवाही पर रोक लगा दी। राहुल ने कथित तौर पर कहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री "हत्या-अभियुक्त" हैं। राहुल पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अमित शाह को झूठा और सत्ता के नशे में बताया था। दूसरी तरफ राहुल के खिलाफ असम में उनके भारतीय राज्य वाले बयान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। कांग्रेस ने कहा कि राहुल डरने वाले नहीं हैं। कांग्रेस ने राहुल के इंडियन स्टेट वाले बयान का बचाव भी किया।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली राहुल गांधी की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें बीजेपी कार्यकर्ता नवीन झा द्वारा उनके खिलाफ दायर मानहानि मामले को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
राहुल गांधी को भले ही सुप्रीम कोर्ट से सोमवार को फिलहाल राहत मिल गई, लेकिन उधर गुवाहाटी में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। देशभर में राहुल के खिलाफ आये दिन एफआईआर कराई जा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि वो राहुल को अदालतों में फंसाकर रखना चाहता है लेकिन वो डरने वाले नहीं है।
असम पुलिस ने शनिवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए मामला दर्ज किया है। राहुल को उस कथित बयान के लिए निशाना बनाया जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस न केवल भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से बल्कि भारतीय राज्य (इंडियन स्टेट) से भी लड़ रही है। राहुल गांधी पर गुवाहाटी में धारा 152 के तहत देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों और भारतीय न्याय संहिता की धारा 197 (1) के तहत राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल दावे करने का मामला दर्ज किया गया है। ये दोनों संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध हैं।
इस रिपोर्ट को आगे बढ़ने से पहले यह बताना और समझना जरूरी है कि इंडियन स्टेट और इंडियन रिपब्लिक में क्या फर्क है। राहुल ने जिनसे लड़ने की बात कही है, उसका अर्थ है भारत की वो संवैधानिक संस्थाएं जिन पर बीजेपी-आरएसएस ने कब्जा कर लिया है। जिसमें चुनाव आयोग से लेकर ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स जैसी जांच एजेंसियां हैं, जिनका दुरुपयोग किया जा रहा है। राहुल ने कहीं से भी यह नहीं कहा था कि कांग्रेस भारतीय गणतंत्र से लड़ रही है। लेकिन देश के गोदी मीडिया चैनलों के एंकरों और बीजेपी-आरएसएस के नेताओं ने इसे तोड़मरोड़ कर पेश किया और कहा कि राहुल भारत के गणतंत्र पर हमला कर रहे हैं। दूसरी तरफ इन्हीं एंकरों ने मोहन भागवत के बयान पर कोई डिबेट नहीं की, जिसमें भागवत ने देश की आजादी की लड़ाई को कूड़ेदान में फेंकने की कोशिश की। आंबेडकर के संविधान को महत्वहीन कर दिया। विपक्ष के मुताबिक भागवत का बयान देशद्रोह है लेकिन कहीं कोई एफआईआर अभी तक कहीं दर्ज नहीं हुई है।
गुवाहाटी में मोनजीत चेतिया नामक व्यक्ति ने एफआईआर दर्ज कराई है। जिसमें दावा किया गया कि गांधी का बयान एक सामान्य राजनीतिक टिप्पणी नहीं थी, बल्कि "भारत की अखंडता और स्थिरता के लिए एक सीधी चुनौती है। जिसके लिए तत्काल कानूनी कार्रवाई की जरूरत है।" चेतिया ने दावा किया कि कांग्रेस नेता ने बड़े पैमाने पर आबादी के बीच "विध्वंसक गतिविधियों और विद्रोह" को उकसाया। उन्होंने अपनी शिकायत में आरोप लगाया, “यह राज्य के अधिकार को अवैध बनाने और इसे एक शत्रुतापूर्ण ताकत के रूप में चित्रित करने का एक प्रयास है, जिससे एक खतरनाक कहानी तैयार की जा सकती है जो अशांति और अलगाववादी भावनाओं को भड़का सकती है।”
राहुल गांधी ने 15 जनवरी को दिल्ली में कांग्रेस के नए मुख्यालय के उद्घाटन समारोह में कहा था कि उनकी पार्टी (कांग्रेस) ने कभी बीजेपी और आरएसएस के साथ लड़ाई नहीं की। उन्होंने कहा, 'अगर आप मानते हैं कि हम बीजेपी और आरएसएस नामक राजनीतिक संगठन के खिलाफ लड़ रहे हैं, तो उन्होंने हमारे देश की लगभग हर संस्था पर कब्जा कर लिया है। हम अब सिर्फ भाजपा और आरएसएस से नहीं, बल्कि भारतीय राज्य (इंडियन स्टेट) से भी लड़ रहे हैं।"
राहुल के बयान पर बीजेपी ने उनके खिलाफ जबरदस्त निन्दा अभियान छेड़ दिया। इसके बाद बीजेपी शासित असम में एफआईआर भी करा दी गई। कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे ने सोमवार को आरोप लगाया कि भाजपा राहुल गांधी से ''डरती'' है और ऐसे कदम उठा रही है। दुबे ने कहा, "भाजपा राहुल गांधी से इतनी डरी हुई है कि उसने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। हालांकि, कोई भी भाजपा शासित राज्य राहुल गांधी के संकल्प और उनके लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता को कम नहीं कर सकता है।"
राहुल की टिप्पणी का वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी, अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल, सचिन पायलट आदि ने बचाव किया। इन लोगों ने कहा कि चुनाव आयोग जैसे संगठनों की "विश्वसनीयता में गिरावट" हुई है। आप सभी जानते हैं कि केंद्र संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के लिए रणनीतिक तरीके से काम कर रहा है। हम चाहते हैं कि पारदर्शिता और जवाबदेही तय की जाए। हमें उन सवालों के जवाब मिलने चाहिए जो हम संसद के अंदर और बाहर पूछते हैं। सभी संवैधानिक संस्थाओं को ऐसा करना होगा।