आरएसएस ने कहा, वह जाति गणना के खिलाफ नहीं लेकिन इससे सौहार्द्र नहीं बिगड़े
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने एक पदाधिकारी द्वारा जाति गणना का विरोध किये जाने के कुछ दिन बाद गुरुवार को स्पष्टीकरण जारी कर कहा है कि वह जाति गणना के खिलाफ नहीं है। वह चाहता है कि जाति गणना होनी चाहिए लेकिन यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि इससे समाज में समरसता और एकात्मकता खंडित नहीं होनी चाहिए।
इस तरह की कवायद का इस्तेमाल समाज के समग्र विकास के लिए किया जाना चाहिए। आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट लिख कर कहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी भी प्रकार के भेदभाव एवं विषमता से मुक्त समरसता एवं सामाजिक न्याय पर आधारित हिंदू समाज के लक्ष्य समाज के लक्ष्य को लेकर सतत कार्यरत है।
यह सत्य है कि विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से समाज के अनेक घटक आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ गए। उनके विकास, उत्थान एवं सशक्तिकरण की दृष्टि से विभिन्न सरकारें समय-समय पर अनेक योजनाएं एवं प्रावधान करती है, जिनका संघ पूर्ण समर्थन करता है।
इसमें उन्होंने लिखा है कि पिछले कुछ समय से जाति आधारित जनगणना की चर्चा पुनः प्रारंभ हुई है। हमारा यह मत है कि इस उपयोग समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हो और यह करते समय सभी पक्ष यह सुनिश्चित करें कि किसी भी कारण से सामाजिक समरसता एवं एकात्मकता खंडित न हो।
आरएसएस पदाधिकारी ने कहा था यह समाज या राष्ट्र के हित में नहीं होगा
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विदर्भ क्षेत्र के लिए आरएसएस के सहसंघचालक श्रीधर गाडगे ने मंगलवार को कहा था कि जाति-आधारित जनगणना एक "निरर्थक अभ्यास" साबित होगी और केवल कुछ व्यक्तियों की मदद करेगी। उन्होंने कहा था कि “जाति आधारित जनगणना नहीं होनी चाहिए।आखिरकार, इससे क्या हासिल होगा? श्रीधर गाडगे ने नागपुर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि जाति जनगणना जाति-वार आबादी की मात्रा निर्धारित करेगी। लेकिन यह समाज या राष्ट्र के हित में नहीं होगा।
इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट कहती है कि गाडगे की टिप्पणी से एक विवाद खड़ा हो गया, जिसने 2015 में इसी तरह के एक प्रकरण की याद दिला दी, जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए गए एक बयान ने बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को बैकफुट पर ला दिया था।
आरएसएस से जुड़ी पत्रिका द ऑर्गेनाइजर को दिए एक साक्षात्कार में, भागवत ने तब आरक्षण की समीक्षा का सुझाव दिया था।
विवाद बढ़ने पर आरएसएस ने बाद में सफाई दी थी लेकिन इस बयान को राजद सुप्रीमो लालू यादव ने जोरशोर से उठाया था। उन्होंने आरएसएस और भाजपा पर कथित तौर पर आरक्षण को खत्म करने की साजिश रचने का आरोप लगाया था। इसके बाद, भाजपा को राजद-जद(यू) गठबंधन के खिलाफ चुनावों में भारी हार का सामना करना पड़ा था।
तब से आरएसएस को बार-बार यह कहने में परेशानी हो रही है कि वह आरक्षण के खिलाफ नहीं है। इस साल सितंबर में, नागपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए, मोहन भागवत ने कहा था कि जब तक जातिगत भेदभाव मौजूद है, आरक्षण रहेगा और लोगों को 2000 वर्षों से पीड़ित लोगों के लाभ के लिए 200 वर्षों तक कष्ट सहने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल फरवरी में भागवत के इसी तरह के बयान से एक और विवाद पैदा हो गया था। मुंबई में एक कार्यक्रम में संत रविदास के बारे में बात करते हुए भागवत ने कहा था कि महान संत ने पाया था कि सत्य ही भगवान है। “मैं (ईश्वर) सभी प्राणियों में हूं।
नाम या रंग कोई भी हो, सबकी योग्यता एक जैसी, सम्मान एक जैसा। सब मेरे अपने हैं. कोई भी श्रेष्ठ या निम्न नहीं है. शास्त्रों के आधार पर पंडित जो कहते हैं वह झूठ है। हम ऊंची और नीची जातियों की इस कल्पना में फंसकर अपने रास्ते से भटक गये हैं. इस भ्रम को दूर करना होगा।”
उनके इस बयान को विपक्ष ने तुरंत लपक लिया और आरोप लगाया कि यह आरएसएस द्वारा स्वीकारोक्ति है कि ब्राह्मणों ने सदियों से समाज पर जातिगत अत्याचार किए हैं।इसके बाद आरएसएस को फिर से स्पष्टीकरण देने के लिए मजबूर होना पड़ा था तब आरएसएस ने कहा था कि "पंडित" से भागवत का मतलब बुद्धिजीवियों से है, न कि ब्राह्मणों से है।