लोकसभा चुनाव के चार चरणों में कुल 543 में से 374 सीटों पर मतदान हो चुका है। बाक़ी बचे तीन चरणों में 169 सीटों पर मतदान होना है। केंद्र में मोदी सरकार की वापसी के लिहाज़ से ये 169 सीटें बेहद महत्वपूर्ण हैं। इनमें से एनडीए ने पिछले लोकसभा चुनाव में 127 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने अकेले दम पर 116 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अगर बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ 2014 का प्रदर्शन दोहराने में कामयाब हो जाती है तो केंद्र में मोदी सरकार की वापसी की संभावनाएँ बढ़ जाएँगी। इसे देखते हुए इन सीटों पर बीजेपी को जिताने के लिए संघ परिवार ने भी पूरी ताक़त झोंक दी है।
संघ परिवार के सूत्रों के मुताबिक़, संघ की रणनीति इन 169 सीटों पर बीजेपी के पक्ष में ज़्यादा से ज़्यादा मतदान कराकर अधिकतम सीटें उसकी झोली में डलवाने की है और इसके लिए संघ व्यापक रणनीति के साथ मैदान में उतर गया है। संघ ने इन सीटों को अपनी नाक का सवाल बना लिया है।
बीजेपी को हर हाल में पुराना प्रदर्शन दोहराने में मदद करने के लिए संघ ने पश्चिम बंगाल सहित पार्टी के प्रभाव वाले 9 राज्यों में 80 हज़ार से एक लाख वरिष्ठ और प्रशिक्षित स्वयंसेवकों को मैदान में उतारा है। इन्हें समाज के प्रभावशाली लोगों के घर-घर जाकर संपर्क करके बीजेपी के हक़ में मतदान करने को राज़ी करने की ज़िम्मेदारी दी गई है।
सूत्रों के मुताबिक़, संघ के इन कार्यकर्ताओं को ऐसे इलाक़ों में छोटी-छोटी बैठकें करके बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने का निर्देश दिया गया है, जहाँ ज़रा सी मेहनत से मतदाता बीजेपी के साथ आ सकते हैं।
संघ के इन कार्यकर्ताओं को मतदाताओं को यह समझाने के लिए कहा गया है कि पीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी को एक और मौक़ा देना क्यों ज़रूरी है? इसके लिए ये बीजेपी के कोर एजेंडे राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस, पाकिस्तान को घर में घुस कर मारने जैसे मुद्दों पर लोगों को भावनात्मक रूप से बीजेपी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
ये स्वयंसेवक मतदाताओं के सामने मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान आतंकवाद के जम्मू-कश्मीर तक सीमित होने, पाकिस्तान के वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ने और भारत की सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने की बात भी रख रहे हैं। वे भविष्य की चुनौतियाँ समझाते हुए बता रहे हैं कि बतौर पीएम मोदी को एक और कार्यकाल देने की ज़रूरत क्यों है। संघ प्रथम चार चरणों में सक्रिय रहा है, मगर अंतिम तीन चरण के लिए उसने ख़ास रणनीति तैयार की है।
आख़िरी तीन चरणों से पहले आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर के अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित होने के बाद संघ परिवार के लिए बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाना और भी आसान हो गया है।
दरअसल, आख़िरी तीन चरणों के नतीजे ही भावी सरकार की रूपरेखा तय करेंगे। इन चरणों में यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, बिहार और हिमाचल प्रदेश की 129 में से 91 फ़ीसदी से अधिक सीटें बीजेपी के पास थीं। पार्टी के सामने पश्चिम बंगाल की बाक़ी बची 24 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है। संघ पहली बार यहाँ बड़े स्तर पर सक्रिय हुआ है। बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में हिंदू हितों की खुल कर बात की है और अनुमानों के मुताबिक़, चुनाव में उसे इसका सीधा फायदा मिल रहा है।
आख़िरी तीन चरणों में जिन 169 सीटों पर मतदान होना है उनमें उत्तर प्रदेश की 41 में से 38, मध्य प्रदेश की 23 में से 22, बिहार की 21 में 19, हरियाणा की 10 में 7, झारखंड की 11 में 9, दिल्ली की सभी 7 और हिमाचल की सभी 4 सीटों पर बीजेपी जीती थी।इस बार उत्तर प्रदेश में बीजेपी को ज़बरदस्त नुक़सान का अंदेशा है। बिहार में वह नीतीश के साथ आने की वजह से पिछली बार जीती हुई सीटों से कम पर चुनाव लड़ने के बावजूद बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। यूपी मे होने वाले नुक़सान की भरपाई के लिए उसकी नज़र पश्चिम बंगाल पर है।
आख़िरी तीन चरणों में मतदान वाली पश्चिम बंगाल की सभी 24 सीटों पर पिछली बार टीएमसी ने जीत दर्ज की थी। संघ परिवार की कोशिश इनमें से कुछ सीटें झटकने की है और इसलिए वह यहाँ ख़ास तौर पर अभियान में जुटा है।
संघ परिवार के लगातार प्रचार से राज्य में साफ़ तौर पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है। इस लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा मतदान पश्चिम बंगाल में ही हो रहा है। इसे राज्य की ममता बनर्जी सरकार के प्रति ग़ुस्से के साथ सत्ता विरोधी लहर और राज्य में बीजेपी के पैर पसारने का प्रबल संकेत माना जा रहा है। इसलिए बीजेपी राज्य में दहाई का आंकड़ा पार करने की उम्मीद कर रही है। संघ परिवार ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा कर बीजेपी का यह सपना साकार करने में जुटा है।