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टिकटों के बाद अपने मकड़जाल में फंसे बीजेपी और गठबंधन, डैमेज कंट्रोल की कवायद

टिकटों के बाद अपने मकड़जाल में फंसे बीजेपी और गठबंधन, डैमेज कंट्रोल की कवायद

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टिकटों के बंटवारे के बाद सपा रालोद गठबंधन और बीजेपी के अंदर घमासान मच गया है। बगावत होने के कारण दोनों के लिए ही हालात मुश्किल बन गए हैं और चुनाव दिलचस्प हो गया है। 

उत्तर प्रदेश की 18वीं विधानसभा चुनावों के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 113 सीटों पर चुनावी गहमागहमी शुरू हो गई है। टिकट वितरण के साथ ही पहले चरण के मतदान के लिए 21 जनवरी पर्चे दाखिल करने का आखिरी दिन था। पहले चरण में 10 फरवरी को 58 सीटों पर मतदान होगा जबकि दूसरे चरण की 55 सीटों के लिए 14 फरवरी को मतदान होगा। इन 113 सीटों में से 110 सीटें ऐसी हैं, जहां किसान आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव है। 

इनमें भी 60 सीटें ऐसी हैं जहां के किसानों की आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह सीटें इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 2017 के चुनावों में यहां बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। इस बार हवा बदली हुई है। 

सपा गठबंधन बीजेपी के लिए गंभीर चुनौती बन कर ताल ठोक रहा है। पर दोनों के लिए बड़ी चुनौती अपने ही बागियों को साधना है। बागियों में टिकट के दावेदार भी हैं और प्रत्याशियों से नाराज़ अवाम भी।

बग़ावती सुर

सबसे ज्यादा बगावती सुर बीजेपी खेमे से सुनाई पड़ रहें हैं। पर सपा गठबंधन में भी कई सीटों पर भी विद्रोह की चिंगारियां साफ तौर पर देखी जा रही हैं। अभी कहना मुश्किल है कि मेरठ और सहारनपुर मंडल की ऐसी सीटों पर बगावत के सुर किस करवट बैठेंगे, जहां 10 फरवरी और 14 फरवरी को चुनाव होने हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में मेरठ मंडल की 28 सीटों में से 25 सीटों पर कमल खिला था जबकि शेष तीन सीटें विपक्ष के पास गईं थीं। पर इस बार मतदाता सांप्रदायिकता की कीचड़ से दूरी बनाए दिख रहा है लेकिन जातीय समीकरण प्रभावशाली होकर उभरते दिख रहे हैं। ऐसे में दलीय स्थिति तो परिणाम आने पर ही पता चलेगी लेकिन टिकट आवंटन को लेकर घमासान मचा हुआ है।

मेरठ की सात सीटों में मेरठ शहर की सीट सर्वाधिक चर्चाओं में हैं जहां बीजेपी ने पार्टी के युवा लेकिन विवादास्पद चेहरे कलम दत्त शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है। यह वही सीट है जहां से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे कद्दावर नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कई बार अपना परचम लहराया लेकिन 2017 में पार्टी की भीतरघात के चलते उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। यहां से समाजवादी पार्टी के रफीक अंसारी विजयी हुए थे। रफीक इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं और उनका कहीं विरोध नहीं है। पर कमलदत्त शर्मा का विरोध हिंदू संगठन ही कर रहे हैं और यह कहना ज्यादा उचित होगा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं में ही उन्हें टिकट दिए जाने का मुखर विरोध हो रहा है। इतना ही नहीं उनकी एक वीडियो भी वायरल हो रही है जिसमें वह एक महिला को थप्पड़ मारते हुए अनुचित भाषा बोल रहें हैं। वैसे वह बीजेपी का मेरठ में फायर ब्रांड चेहरा हैं लेकिन अपनों की बगावत और महिला विरोधी छवि के चलते रफीक की राह आसान ही हो रही है।

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सिवाल खास सीट 

इसी तरह सिवाल खास सीट पर बीजेपी ने पूर्व पंचायत अध्यक्ष और जिला कोपरेटिव बैंक के चेयरमैन मनिंदर सिंह को मैदान में उतारा है। कई अपराधी धाराओं में मनिंदर पर मुकदमें दर्ज हैं लेकिन उनका विरोध स्थानीय लोग इसलिए कर रहे हैं कि वे बाहरी प्रत्याशी हैं। इस विरोध के पीछे भी वही भाजपाई हैं जो स्वयं टिकट के दावेदार थे। मनिंदर को टिकट मिलने के बाद सभी टिकट के दावेदारों ने पार्टी के उच्चाधिकारियों से मनिंदर का टिकट वापस लिए जाने के साथ किसी भी स्थानीय व्यक्ति को प्रत्याशी बनाने की मांग भी की थी। पर उनका टिकट पार्टी ने यथावत रखा और अब नामांकन की आखिरी तिथि भी निकल चुकी है। 

इसी सीट पर सपा गठबंधन के प्रत्याशी को लेकर भी रार मची हुई है। यह सीट परंपरागत तौर पर रालोद की रही है और इसका एक बड़ा भाग बागपत संसदीय सीट में आता है जहां से रालोद के मुखिया जयंत चौधरी पिछली लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी थे। यहां मुस्लिम और जाट मतदाता मिलकर चुनाव की वैतरणी पार कराने में सक्षम हैं और यह समीकरण चौधरी चरणसिंह के समय से प्रभावी है। पर यहां संयोग से 2012 के विधानसभा चुनावों में सपा के गुलाम मोहम्मद ने विजय हासिल कर ली थी। तकनीकी तौर पर इस बार भी यहां रालोद का उम्मीदवार है लेकिन पार्टी का सिंबल है जबकि उम्मीदवार वस्तुतः समाजवादी पार्टी का सदस्य है।

जाट को टिकट देने की मांग 

ऐसे में रालोद के कार्यकर्ताओं और विभिन्न संगठनों का विद्रोह गुलाम मोहम्मद के खिलाफ है। यहां से जाट बिरादरी के व्यक्ति को टिकट दिए जाने की पुरजोर मांग हो रही है। जाट संगठनों का कहना है कि मेरठ की सातों सीटों पर रालोद का एक भी प्रत्याशी नहीं है क्योंकि मेरठ कैंट विधानसभा सीट से भी सपा प्रत्याशी रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में जाट मतदाता का रुझान क्या होगा यह पार्टी के अलंबरदारों पर निर्भर करता है कि वे अपने फॉलोअर्स को किस तरह डेमेज कंट्रोल करते हैं।

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बागपत के छपरौली में भी रालोद के टिकट को लेकर विद्रोह हुआ और आनन-फानन में पूर्वघोषित उम्मीदवार वीरपाल का टिकट बदलकर अजय कुमार को दिया गया। 

गौरतलब है कि इस सीट पर पूर्व चुनाव में विजयी हुए सहेंद्र पाल ने आरएलडी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। छपरौली आरएलडी की अजेय समझी जाने वाली सीटों में से एक है। इसी तरह बागपत सीट पर बीजेपी प्रत्याशी योगेंद्र धामा का भारी विरोध है। 

बुलंदशहर की सभी सात सीटों पर बीजेपी ने अपनी विजय पताका फहराई थी लेकिन इस बार किसान आंदोलन की वजह से मुकाबला कड़ा होगा लेकिन बीजेपी के विद्रोही कार्यकर्ता और नाराज जनता कई सीटों पर उन्हें चित्त कर सकती है।

बुलंदशहर की खुर्जा विधानसभा सीट पर मीनाक्षी सिंह को सिटिंग एमएलए का टिकट काटकर बीजेपी ने मैदान में उतारा है। इसी तरह इसी जिले की सिंदराबाद सीट से विमला सोलंकी का टिकट काटकर लक्ष्मी राव सिंह को टिकट दिया है। इसी क्रम में बुलंदशहर सीट पर पंचायत अध्यक्ष प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है जबकि यहां उषा सिंह की प्रबल दावेदारी थी। यहां की डिबाई सीट पर भी ऐसे ही पेंच फंसे हुए हैं। इसी तरह स्याना और बुलंदशहर की सीटों पर भी गठबंधन प्रत्याशी को लेकर जबरदस्त असंतोष है।

इसी तरह सहारनपुर में मुकेश चौधरी को बीजेपी ने टिकट दिया है जबकि यहां से विधायक चुने गए धर्मसिंह सैनी गठबंधन का दामन थाम कर समाजवादी हो गए हैं।

धर्मसिंह सैनी बैकवर्ड क्लास से आते हैं जिससे ओबीसी वोटों का असर बीजेपी पर पड़ना स्वाभाविक है। धर्मसिंह के साथ उनके समर्थक भी गठबंधन के साथ हो लिए हैं। यहां की हाई वोल्टेज सीट देवबंद में भी इस बार आरएलडी और एसपी में खींचतान चल रही है।

यूं तो टिकट मिलने या न मिलने वालों के बीच असंतोष सदा देखने को मिलता है लेकिन जहां सपा गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर कोहराम मचा है, वहीं बीजेपी भी इस गणित में 19 नहीं है। अगर तटस्थ होकर देखें तो बीजेपी 2017 की विजय गाथा को दोहराती नहीं दिखती लेकिन गठबंधन भी सेल्फ गोल करने में पीछे नहीं हैं।

वरना संभव था कि बीजेपी को यहां 2017 से एकदम विपरीत परिणाम मिलते। अब देखना होगा कि बीजेपी के किले में कितनी लंबी सेंध लगती है या विपक्ष के हाथ क्या लग पाता है। इंतजार कीजिए समझदार जनता के फैसले का।

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