भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट यानी जिस ब्याज दर पर वह बैंकों को पैसे देता है, उसमें कटौती करने का एलान किया है। केंद्रीय बैंक की मुद्रा नीति समिति ने 25 बेसिस अंकों की कटौती करते हुए रेपो रेट को 6 प्रतिश से घटा कर 5.75 प्रतिशत कर दिया। जुलाई 2010 के बाद से अब तक यह न्यूनतम रेपो रेट है। इससे बैंंकों को कम ब्याज पर पैसे मिलेंगे, वे यदि इससे प्रभावित होकर अपने ब्याज दरों में कटौती करें तो कॉरपोरेट जगत और आम जनता को सस्ते में कर्ज़ मिलेगा। इससे आम जनता की मासिक किस्त यानी ईएमआई कम हो सकती है।
इससे उद्योगों को बढ़ावा मिल सकता है और पूरी अर्थव्यवस्था को थोड़ा समर्थन मिल सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था जिस तरह बीते कुछ समय से बुरे हाल में है और लगातार फिसलती जा रही है, उसे देखते हुए यह एक बड़ा और सकारात्मक फ़ैसला है, जिसके दूरगामी अच्छे नतीजे हो सकते हैं।
तीसरी बार कटौती
रिज़र्व बैंक ने लगातार तीसरी बार ब्याज दर में कटौती की है। कॉरपोरेट जगत इसके लिए कहता रहा है, सरकार भी यही चाहती थी और वह एक तरह से केंद्रीय बैंक पर दबाव भी बनाती थी। रिज़र्व बैंक के इस फ़ैसले से उद्योग जगत ने राहत की सांस ली है। पूंजी बाजार में कोई ख़ास सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई है। इसके उलट इसका बाज़ार पर बुरा असर देखा गया। कई कंपनियों के शेयरों की कीमतें इस एलान के बाद गिरीं। इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानित वृद्धि दर में भी कटौती की है और इसे 7 प्रतिशत बताया है। पहले केंद्रीय बैंक ने जीडीपी वृद्धि दर के 7.2 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया था।केंद्रीय बैंक की मुद्रा नीति समिति ने एक बयान जारी कर कम होती खपत और गिरते निवेश पर चिंता जताई है। इसने यह भी कहा है कि इसके पहले ब्याज दर में दो बार कटौती करने के बावजूद महँगाई दर अनुमान से कम है।
गिरता निर्यात
ब्याज दर में कटौती ऐसे समय हुई है जब भारत का निर्यात तेज़ी से गिरा है। इसकी मुख्य वजह विदेशों में माँग की कमी है। अगला ख़तरा यह है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध तेज़ होने को है। रिज़र्व बैंक के एलान के सिर्फ़ एक दिन पहले अमेरिका ने भारत को जीएसपी यानी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफरेंसेज से बाहर कर दिया। इसका मतलब यह हुआ कि विकासशील देश होने की वजह से भारत के निर्यात पर कम शुल्क लगता था, वह सुविधा अब नहीं मिलेगी, अब भारत को अधिक आयात शुल्क अदा करना पड़ेगा। इससे भारतीय निर्यात अमेरिका में महँगे हो जाएँगे और वहाँ के प्रतिस्पर्द्धा में उन्हें दिक्क़त होगी।मुफ़्त एनईएफ़टी
रिज़र्व बैंक ने नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफ़र (एनईएफ़टी) और रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (आरटीजीएसएस) पर लगने वाला शुल्क हटाने का फ़ैसला भी किया है। केंद्रीय बैंक इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफ़र करने पर एक छोटी रकम चार्ज करता था, बैंक यह शुल्क उपभोक्ताओं से लेते थे। अब आरबीआई ने यह शुल्क नहीं लेने का फ़ैसला किया है, नतीजतन बैंक भी उपभोक्ताओं से यह पैसा नहीं लेंगे। यह डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के मक़सद से किया गया है।एटीएम से पैसे निकालने पर भी उपभोक्ताओं का कुछ पैसा कटता है। एक सीमा के बाद बैंक एटीएम वालों से यह पैसा वसूलता है। यह माँग हो रही है कि इसे ख़त्म कर दिया जाए, यानी एटीएम से पैसे निकालने पर कोई शुल्क न लगे। रिज़र्व बैंक ने इस पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया है। यह समिति तमाम बैंकों और दूसरे लोगों से बात कर इस मुद्दे पर अध्ययन करेगी और आरबीआई को अपनी रपट सौंपेगी।