राज्यसभा में दिल्ली सेवा विधेयक पर चर्चा शुरू होने पर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने विधेयक को पूरी तरह से अलोकतांत्रिक बताया है। उन्होंने कहा कि विधेयक मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों की सांकेतिक द्वैध व्यवस्था की भी पेशकश नहीं करता है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सिविल सेवाओं को 'तानाशाही वाली सिविल सेवाओं' में बदलता है।
सिंघवी ने मोदी सरकार को नियंत्रण-रहित सरकार बताया और इस कानून पर केंद्र का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों को चेतावनी दी। उन्होंने कहा, 'जब दिल्ली की विशेष संवैधानिक स्थिति बनाई गई थी, तो चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस या राजनीतिक स्पेक्ट्रम का कोई अन्य रंग, एनसीटी की स्थिति के लिए दो संविधान पीठ के फैसले को खारिज करने की कोशिश की? किसी भी सरकार ने एक ऐसा प्राधिकरण क्यों नहीं बनाया, जहाँ दिल्ली के सीएम अल्पमत में हो? किसी भी सरकार ने दो नौकरशाहों को एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को पद से हटाने का अधिकार क्यों नहीं दिया? किसी भी सरकार ने एलजी को सुपर सीएम क्यों नहीं बनाया?'
उन्होंने पूछा कि पिछली सरकार ने दिल्ली की सभी एजेंसियों को 'अपने प्रमुखों की नियुक्ति के लिए गृह मंत्रालय के अधीन क्यों नहीं बनाया?'
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने आगे कहा, 'यह सरकार, और यह विधेयक यह सब करता है! जो कुछ पहले नहीं किया गया। पहले किसी ने ऐसा क्यों नहीं किया? क्योंकि यह इस नियंत्रण चाहने वाली सरकार का स्वभाव है, जिसकी पहचान प्रतिशोध की भावना है, जिसका दृष्टिकोण किसी भी तरह सब कुछ को नियंत्रित करना ही है।'
'...वे मेरे लिए आए तो बोलने वाला कोई नहीं था'
सिंघवी ने दिल्ली सेवा विधेयक पर केंद्र को समर्थन देने की घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों को चेतावनी देने के लिए जर्मन धर्मशास्त्री मार्टिन नीमोलर की पंक्तियों को उद्धृत किया। उन्होंने कहा, 'हमें सामूहिक रूप से इसका विरोध करना चाहिए क्योंकि एक दिन यह संघवाद आपके दरवाजे पर दस्तक दे सकता है। सबका नंबर आएगा।' इसके बाद सिंघवी ने नीमोलर के हवाले से कहा, "पहले वे समाजवादियों के लिए आए, और मैं इसलिए नहीं बोला क्योंकि मैं समाजवादी नहीं था। फिर वे ट्रेड यूनियनवादियों के लिए आए, और मैं नहीं बोला क्योंकि मैं ट्रेड यूनियनवादी नहीं था। तब वे यहूदियों के लिये आये, और मैं कुछ न बोला, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था। फिर वे मेरे लिये आये, और मेरी ओर से बोलनेवाला कोई न रहा।"
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पास
मणिपुर हिंसा मुद्दे पर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच लोकसभा ने सोमवार को डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2023 पारित कर दिया। विधेयक वह प्रक्रिया बताता है कि कैसे निगम और सरकार स्वयं भारत के नागरिकों की जानकारी और व्यक्तिगत डेटा एकत्र और उपयोग कर सकते हैं। इसका उद्देश्य व्यक्तियों के डिजिटल डेटा का दुरुपयोग करने या उसकी सुरक्षा करने में विफल रहने पर संस्थाओं पर 250 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रस्ताव करते हुए भारतीय नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा करना है। हालाँकि इस विधेयक में गोपनीयता के प्रावधानों को लेकर काफ़ी ज़्यादा संदेह जताया गया है।