वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज लद्दाख जाएंगे। उनके साथ थल सेना प्रमुख जनरल एम. एम. नरवणे और उत्तरी कमान के कमांडर लेफ़्टीनेंट जनरल वाई. के. जोशी भी होंगे।
सेना की तैयारियाँ
राजनाथ सिंह स्थानीय कमांडरों और सीमा पर तैनात दूसरे सैनिकों से मिलेंगे। वे सीमा पर तैयारियों का जायजा लेंगे और निकट भविष्य की योजनाओं और ज़रूरतों पर भी बात करेंगे।राजनाथ सिंह का लद्दाख दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत और चीनी सेना में स्थानीय कमांडरों के स्तर पर बातचीत नाकाम हो चुकी है।
बातचीत नाकाम
भारतीय सेना के 16वें कोर के कमांडर लेफ़्टीनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीनी सेना के दक्षिण शिनजियांग सैनिक ज़िले के कमांडर मेजर जनरल लिउ लिन के बीच बातचीत बग़ैर किसी नतीजे के ख़त्म हो गई। लगभग 11 घंटों तक चली बातचीत में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई।इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सेना के एक अधिकारी ने कहा कि बातचीत पूरी गंभीरता के साथ हुई और ऐसा लगा कि दोनों ही पक्ष समस्या का समाधान चाहते हैं।
डिसइंगेजमेंट, डी-एस्केलेशन
कमांडरों के बीच डिसइनगेंजमेंट और डी-एस्केलेशन, दोनों पर बात हुई। डिसइनगेंजमेंट का मतलब हुआ कि कहां से कौन सेना पीछे हटे और वह इलाक़ा खाली कर दे। इस पर कोई प्रगति नहीं हुई। डी-एस्केलेशन का अर्थ हुआ कि कौन सेना अपने सैनिकों और साजो-सामान में कटौती करे और कुछ सैनिकों को वापस बुला ले।सैनिक सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि पैंगोंग त्सो इलाक़े पर चीन कोई बात करने को तैयार ही नहीं है। वहाँ चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय इलाक़े में 8 किलोमीटर अंदर आ चुकी है।
पैंगोंग, डेपसांग पर अड़ा चीन
सूत्रों ने यह भी कहा कि डेपसांग इलाक़े पर भी कोई बातचीत नहीं हुई। पैंगोंग और डेपसांग ये दोनों ऐसे इलाके हैं, जिन पर दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर मतभेद पहले भी रहे हैं और पहले भी तनाव रहे हैं।इस बातचीत का सकारात्मक पहलू यही रहा कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा के दूसरे इलाक़ों से चरणबद्ध तरीके से सैनिकों को वापस बुलाने और कुछ इलाक़ों को खाली करने पर राजी हो गए हैं। इनमें गलवान और हॉट स्प्रिंग के इलाक़े हैं।
सेना के अफ़सरों ने यह भी कहा कि बातचीत में प्रगति ज़मीनी सच्चाइयों के आधार पर ही तय की जानी चाहिए, जो पहले से बिल्कुल बदल चुकी है।
बातचीत में यह भी पाया गया कि दोनों पक्षों में अविश्वास बढ़ा हुआ है और कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है। यही वजह है कि 6 जून और 22 जून को जिन बिंदुओं पर सहमति बनी, वे भी लागू नहीं किए गए हैं।