दिल्ली में नगर निगम चुनाव तो टल गए और यह भी पता नहीं है कि अब चुनाव कब होंगे लेकिन राजेंद्र नगर विधानसभा सीट का चुनाव अगले कुछ महीनों में होना तय है। राजेंद्र नगर से आम आदमी पार्टी के तेजतर्रार विधायक राघव चड्ढा पंजाब चुनाव की जीत का इनाम पाकर राज्यसभा पहुंच चुके हैं और राजेंद्र नगर सीट दिल्ली की राजनीति में उबाल लाने का एक कारण बन रही है।
यों तो राजेंद्र नगर सीट की हार-जीत का दिल्ली की सत्ता पर कोई अंतर पड़ने वाला नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पास जैसा प्रचंड बहुमत है, उसे देखते हुए उसकी एकाध सीट पर हार-जीत कोई बड़ा फर्क नहीं डालेगी लेकिन इससे विपक्ष की सर्द पड़ी नब्ज में जरूर रक्त का संचार हो सकता है। यही वजह है कि खासतौर पर बीजेपी इस सीट पर नजरें गड़ाए बैठी है।
बीजेपी इस सीट को कितना महत्वपूर्ण मान रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 6 अप्रैल को बीजेपी ने अपना 42वां स्थापना दिवस मनाया तो उसने आखिरी लम्हों में राजेंद्र नगर इलाके को ही उस शोभा यात्रा के लिए चुना, जिसका नेतृत्व पार्टी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने करना था। यानी बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने और उन्हें एक्टिव करने के लिए एक तरह से चुनाव का बिगुल बजा दिया है।
बीजेपी इस सीट पर यों ही नजरें नहीं गड़ा रही बल्कि इसके पीछे एक बड़ा कारण भी है कि वह इस सीट पर लगातार जीतती रही है। 1993 में जब दिल्ली को विधानसभा मिली और पहला चुनाव हुआ तो हमेशा सादगी से और शांत रहने वाले पूरण चंद योगी बीजेपी उम्मीदवार के रूप में यहां से आसानी से जीत गए थे। यहां तक कि जब 1998 में दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने 53 सीटें जीतीं और बीजेपी का खाता सिर्फ 14 सीटों तक सीमित रह गया, तब भी पूरण चंद योगी यहां से आसानी से जीते थे। उन्होंने 2003 में भी यह सीट बरकरार रखी। यह बात और है कि वह कांग्रेस के राजकुमार कोहली से बहुत कम अंतर से जीते।
राजेंद्र नगर सीट पर उपचुनाव दूसरी बार हो रहा है। बीजेपी ने 2008 में भी योगी को ही अपना उम्मीदवार बनाया था जबकि कांग्रेस ने दैनिक हिन्दुस्तान के तब के चीफ रिपोर्टर रमाकांत गोस्वामी को मैदान में उतारा था। चुनाव प्रचार के दौरान ही योगी ने रहस्यमय ढंग से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जिसने भी यह सुना, हैरान रह गया क्योंकि इतने शांत स्वभाव के दिखाई देने वाले योगी के अंदर के तूफान को किसी ने नहीं समझा था।
बहरहाल, बीजेपी ने यहां हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी आशा योगी को उम्मीदवार बनाया। चूंकि आम चुनावों में शीला दीक्षित लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हो चुकी थीं तो कांग्रेस के लिए यह सीट जीतना आसान हो गया। कांग्रेस पहली बार और अब तक एकमात्र बार इस सीट पर विजय दर्ज कर सकी है। 2013 में फिर बीजेपी की वापसी हुई और सरदार आर.पी. सिंह काफी दिन के इंतजार के बाद विधायक बनने में सफल हुए, मगर उनकी विधायकी ज्यादा दिन तक कायम नहीं रह सकी। 2015 के शुरू में फिर से विधानसभा चुनाव हुए तो दिल्ली में ऐसी झाड़ू चली कि राजेंद्र नगर में भी कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में गए विजेंद्र गर्ग ने आर.पी. सिंह को हरा डाला। 2020 में भी आम आदमी पार्टी जीती लेकिन इस बार पार्टी ने विजेंद्र गर्ग का टिकट काटकर हाई प्रोफाइल नेता राघव चड्ढा को मैदान में उतारा। अब राघव चड्ढा राज्यसभा चले गए हैं तो फिर से मैदान खाली है।
इस हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी इस सीट पर सात में से चार बार जीती है। आम आदमी पार्टी ने दो बार कामयाबी पाई है और कांग्रेस ने सिर्फ एक बार। बीजेपी इस सीट को अपना गढ़ मानती है। यह सच है कि 2015 और 2020 में आप की झाड़ू ने कांग्रेस और बीजेपी के तमाम किलों को धराशायी कर दिया लेकिन बीजेपी फिर से इस किले को पाना चाहती है। वह इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंकना चाहती है। मार्च 2021 में दिल्ली में नगर निगम की पांच सीटों पर उपचुनाव हुए थे जिनमें से चार सीटों पर आम आदमी पार्टी ने जीत का परचम लहराकर बीजेपी को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। बीजेपी हार के उस अपमान का भी बदला लेना चाहती है। इसके अलावा पंजाब की जीत से आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंदियों पर हैं, उसे वो जमीन पर उतारना चाहती है।
बीजेपी को ऐसा भी लगता है कि अगर वह राजेंद्र नगर उपचुनाव जीत गई तो फिर दिल्ली में जीत का माहौल बन सकता है और वह नगर निगम चुनावों में भी ज्यादा विश्वास के साथ उतर सकती है। एक तरह से यह बीजेपी का टेस्ट भी होगा। वह राजेंद्र नगर उपचुनाव से जनता के मूड को भी भांपना चाहती है। अगर बीजेपी यह उपचुनाव जीत गई तो फिर निकट भविष्य में ही नगर निगम चुनावों की संभावना भी बन सकती है। आर.पी. सिंह के रूप में उनके पास एक जीता हुआ चेहरा भी है।
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के लिए भले ही राजेंद्र नगर की जीत दिल्ली की सत्ता के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो लेकिन बीजेपी की तरह ही उसके लिए भी यह जीत बड़े मायने रखती है। इस जीत से वह पंजाब की जीत का नशा दिल्ली पर भी सवार कर सकती है। वह विजेंद्र गर्ग को फिर से उतार सकती है जो दक्षिण दिल्ली नगर निगम में काफी एक्टिव रहे हैं। आम आदमी पार्टी को यह भी पता है कि 2017 के नगर निगम चुनावों से ठीक पहले जब वह राजौरी गार्डन उपचुनाव हार गई थी तो फिर दिल्ली में ऐसा माहौल बना था कि उसे नगर निगम चुनावों में भी जीत नहीं मिली थी।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके पास खोने को कुछ नहीं है लेकिन अगर वह पाना चाहे तो फिर वह किसी करिश्मे से कम नहीं होगा। लेकिन ऐसी इच्छाशक्ति कम से कम फिलहाल तो कांग्रेस में कहीं दिखाई नहीं देती। बहुत-से कांग्रेसी यह सोच रहे हैं कि अगर राजेंद्र नगर पर पूरी ताकत लगा दी जाए तो दिल्ली विधानसभा में 2015 के बाद पहली बार कांग्रेस का कोई नामलेवा आ सकता है। इसीलिए वे इस चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर लड़ना चाहते हैं। रमाकांत गोस्वामी को पार्टी ने न 2015 में टिकट दी और न ही 2020 में। ब्रह्म यादव को यहां से कई बार आजमाया जा चुका है और पिछली बार तो रॉकी तुसीद जैसे अनजान चेहरे को उतारा गया था जिसे 4 हजार वोट भी नहीं मिले। इसीलिए कई लोग मांग कर रहे हैं कि पार्टी इस बार अजय माकन जैसा बड़ा चेहरा यहां से उतारे।
अजय माकन 2004 से 2014 तक नई दिल्ली से सांसद रहे हैं और राजेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र उनके संसदीय क्षेत्र का हिस्सा रहा है। वह यहां से हमेशा जीतते भी रहे हैं। मगर, हाईकमान या खुद माकन वर्तमान माहौल में इतना बड़ा रिस्क लेंगे, ऐसा दिखाई नहीं देता। इसलिए इस सीट पर कांग्रेस की लड़ाई सिर्फ नाममात्र की ही दिखाई दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।