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राजस्थानः वरिष्ठ मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफा, भाजपा में उबाल

राजस्थानः वरिष्ठ मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का इस्तीफा, भाजपा में उबाल

भाजपा शासित राजस्थान में भजनलाल शर्मा कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने गुरुवार को इस्तीफा दे दिया। इसी के साथ राजस्थान भाजपा की अंदरुनी कलह सामने आ गई है। राजस्थान में जल्द ही उपचुनाव होने वाले हैं। उससे पहले राज्य में राजनीतिक उथलपुथल बढ़ गई है।

राजस्थान में भजनलाल शर्मा मंत्रिमंडल से इस्तीफा के बाद किरोड़ीलाल मीणा ने रामचरित मानस से एक मशहूर चौपाई कोट की है। उनका ट्वीट ऊपर है। जिसमें वो कह रहे हैं कि वचन निभाया है। मीणा ने अपने इस्तीफे की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि इस्तीफे के कारण ही वह मुख्यमंत्री भजन लाल की कैबिनेट बैठक में शामिल नहीं हुए क्योंकि उनके पास "कोई नैतिक अधिकार नहीं" था। मीणा के पास कृषि विभाग है। उनका इस्तीफा मंजूर होने की अभी कोई सूचना नहीं है। कहा जा रहा है कि मीणा ने इस्तीफा दस दिनों पहले दिया था लेकिन सार्वजनिक अब किया गया।

 

मीणा ने कहा, ''मेरे नाराज होने का कोई कारण नहीं है... मैं सीएम से भी मिला था और बहुत सम्मानपूर्वक उन्होंने मुझसे कहा था कि 'नहीं, आपका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जाएगा।' लेकिन मैंने सीएम से कहा कि चूंकि मैंने लोगों के बीच बात की थी और घोषणा की थी कि अगर हम यह सीट (दौसा) नहीं जीतेंगे तो मैं इस्तीफा दे दूंगा, इसलिए मुझे इस्तीफा देना पड़ा। यह स्वाभाविक है कि मैं सरकारी बंगले, सरकारी कार या कार्यालय में नहीं बैठ सकता।

दौसा लोकसभा सीट पर कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा ने बीजेपी के कन्हैया लाल मीणा को 2.3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। चुनाव प्रचार के दौरान किरोड़ीलाल मीणा ने कहा था कि अगर मेरे क्षेत्र दौसा से भाजपा हार गई तो मैं सरकार से इस्तीफा दे दूंगा। हालांकि लोकसभा के नतीजे तो 4 जून को ही आ गए थे लेकिन ठीक एक महीने बाद उन्होंने इस्तीफा दिया है। दरअसल, विपक्षी दल कांग्रेस के नेता किरोड़ीलाल मीणा का काफी मजाक उड़ा रहे थे और उनके वचन की याद दिला रहे थे।

उन्होंने पूर्वी राजस्थान के दौसा, भरतपुर, धौलपुर, करौली, अलवर, टोंक-सवाई माधोपुर और कोटा-बूंदी में चुनाव अभियान का संचालन किया था। इनमें से बीजेपी सिर्फ कोटा और अलवर लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही। वोटों की गिनती से एक दिन पहले 3 जून को किरोड़ीलाल मीणा ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें पूर्वी राजस्थान की सात सीटों की सूची दी थी, जिस पर उन्होंने कड़ी मेहनत की।

उन्होंने कहा, ''प्रधानमंत्री के दौसा आने से पहले मैंने कहा था कि अगर (दौसा) सीट नहीं जीती तो मैं मंत्री पद छोड़ दूंगा. बाद में पीएम ने मुझसे अलग से बात की और 7 सीटों की सूची दी। मैंने 11 सीटों पर मेहनत की, 7 पर ज्यादा मेहनत की। अगर पार्टी उन 7 में से एक भी सीट हारती है तो मैं मंत्री पद छोड़ दूंगा।'

भाजपा में कलह बढ़ी

किरोड़ीलाल मीणा के इस्तीफे का संबंध भाजपा की अंदरुनी कलह से है। भजनलाल शर्मा को भाजपा आलाकमान (मोदी-शाह) ने एक पर्ची के जरिए मुख्यमंत्री बनाया था। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर और पर्ची देकर जयपुर भेजा गया था। राजनाथ ने वो पर्ची पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को दिया। वसुंधरा राजे ने पर्ची से भजनलाल शर्मा का नाम पढ़ा। वसुंधरा के मुकाबले भजनलाल शर्मा रेस में नहीं थे। लेकिन हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर की तरह भजनलाल को भी राजस्थान में यह पद सौंपा गया। भाजपा के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इसे पसंद नहीं किया। राजस्थान भाजपा में अंदरुनी कलह के बीज उसी दिन पड़ गए थे। 

राजस्थान में ओबीसी आबादी काफी तादाद में है और उनकी मांग रही है कि राज्य का सीएम मीणा समुदाय से बनाया जाए। लेकिन उनकी यह मांग कभी पूरी नहीं हुई। किरोड़ीलाल मीणा अपने समुदाय से राजस्थान भाजपा में सबसे सीनियर नेता हैं। इसी तरह राजस्थान का गुर्जर समुदाय भी अपने नेता को सीएम देखना चाहता है। सचिन पायलट की राजस्थान की राजनीति में कामयाबी का राज भी गुर्जर समुदाय है।

भजनलाल शर्मा चूंकि आलाकमान के आदमी हैं, इसलिए लोकसभा चुनाव में राजस्थान में करारी हार के बावजूद उनसे इस्तीफा नहीं लिया गया। कहां तो 2019 में भाजपा ने 25 में से 24 सीटें राजस्थान में जीती थीं और कहां 2024 में वो 14 सीटों पर सिमट गई। 11 सीटें कांग्रेस और उसके गठबंधन दलों की आई हैं। राजस्थान भाजपा के नेताओं को उम्मीद थी कि पार्टी आलाकमान भजनलाल शर्मा को हटाकर किसी और को सीएम बनाएगा। किशोरीलाल मीणा का इस्तीफा दबाव की राजनीति के तहत दिया गया इस्तीफा बताया जा रहा है। क्योंकि मात्र दौसा लोकसभा क्षेत्र में हारने से मीणा ने इस्तीफा दिया। उस हिसाब से 11 सीटें हारने पर सीएम का इस्तीफा बनता ही था।

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में हुए थे। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को उम्मीद थी कि भाजपा उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और वो फिर से सीएम बनेंगी। लेकिन भाजपा आलाकमान ने उनके दोनों ही इरादों पर पानी फेर दिया। उसने किसी को भावी सीएम के रूप में पेश ही नहीं किया। वसुंधरा राजे के लोगों को टिकट भी कम दिए गए। पर्ची के जरिए भजनलाल शर्मा सीएम तो बन गए लेकिन वसुंधरा का राजनीतिक प्रभाव कायम रहा। लोकसभा चुनाव 2024 आया तो भाजपा आलाकमान को आटे-दाल का भाव मालूम पड़ गया। वसुंधरा ने न तो लोकसभा चुनाव में कोई दिलचस्पी दिखाई और न हीं कहीं प्रचार किया। राजस्थान में 2023 में कैसे भाजपा की सरकार बन गई, लोग हैरान हैं। क्योंकि 2024 में लोकसभा की 11 सीटें हारने का अर्थ यही है कि जनता ने एक साल के अंदर ही भाजपा को नापसंद किया। क्योंकि भाजपा राज्य सरकार के नाम पर भी चुनाव लड़ रही थी। कुल मिलाकर वसुंधरा की नाराजगी अभी तक भाजपा को परेशान किए हुए हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस में अगर अशोक गहलोत और सचिन पायलट मिलकर चले होते तो भाजपा की दाल चुनावों में नहीं गल पाती।

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