राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने गद्दारी की है और उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता। अशोक गहलोत ने यह बात एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में कही।
अशोक गहलोत ने कहा कि सचिन पायलट के द्वारा साल 2020 में की गई बगावत की वजह से ही कांग्रेस विधायकों को 34 दिन तक होटलों में रुकना पड़ा था। मुख्यमंत्री ने कहा कि पायलट की कोशिश सरकार गिराने की थी और इस काम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी शामिल थे।
बताना होगा कि तब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों को लेकर मानेसर के एक होटल में चले गए थे और कांग्रेस की अच्छी खासी फजीहत हुई थी। उस दौरान एक महीने से ज्यादा वक्त तक पायलट और गहलोत के खेमे आमने-सामने रहे थे।
मुख्यमंत्री गहलोत ने एनडीटीवी से कहा कि पायलट समर्थक विधायक जिस रिसॉर्ट में रुके थे, यह वही रिसॉर्ट था जहां पर मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से बगावत करने वाले कांग्रेस के विधायकों को रखा गया था। बता दें कि बगावत की वजह से ही कमलनाथ सरकार गिर गई थी और बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सरकार बनाई थी।
सितंबर में कांग्रेस विधायकों के विधायक दल की बैठक में न पहुंचने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में गहलोत ने कहा कि सचिन पायलट की बगावत की वजह से कांग्रेस के विधायक बेहद नाराज थे क्योंकि पायलट उस वक्त प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने कहा कि पार्टी का अध्यक्ष अपनी पार्टी की सरकार को गिराने के लिए विपक्ष के साथ मिल जाए ऐसा उदाहरण आपको हिंदुस्तान में दूसरा नहीं मिलेगा।
102 विधायकों में से बने मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री ने कहा कि 2020 में हुई बगावत के बाद राजस्थान में कांग्रेस के कई मंत्रियों ने कहा था कि यह गद्दारी है और हम गद्दार को स्वीकार नहीं करेंगे और जिन 102 विधायकों ने कांग्रेस हाईकमान का साथ दिया है, उनमें से किसी को भी मुख्यमंत्री बना दीजिए। उन्होंने कहा कि वह भी मानते हैं कि यह गद्दारी है। गहलोत ने कहा कि हाईकमान 102 विधायकों में से किसी को भी मुख्यमंत्री बना दे लेकिन जो शख्स गद्दारी कर चुका है, उसे हमारे विधायक कैसे स्वीकार करेंगे।
साल 2020 की बगावत के दौरान गहलोत ने पायलट को नकारा, निकम्मा कहा था। तब कांग्रेस हाईकमान ने जैसे-तैसे सचिन पायलट को मनाया था और उसके बाद भी दोनों गुटों के बीच हालात शीत युद्ध वाले ही रहे। कांग्रेस हाईकमान के कहने पर सचिन पायलट के समर्थक 5 विधायकों को गहलोत सरकार में नवंबर, 2021 में मंत्री बनाया गया था लेकिन पायलट के समर्थक लगातार उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग उठाते रहे।
गहलोत ने कहा, “पायलट के पास 10 विधायक भी नहीं हैं, उन्होंने पार्टी के साथ गद्दारी की, ऐसे शख्स को कैसे स्वीकार किया जा सकता है। 2020 में जो बगावत हुई थी वह पूरा खेल सचिन पायलट का ही था।”
एनडीटीवी के इस सवाल के जवाब में कि अगर कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहे तो, गहलोत ने कहा कि पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बना सकते। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस हाईकमान राजस्थान के साथ न्याय करेगा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता।
सितंबर का घटनाक्रम
इस साल सितंबर में कांग्रेस में ऐसा घटनाक्रम हुआ जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। बतौर पर्यवेक्षक विधायक दल की बैठक लेने जयपुर पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की जबरदस्त किरकिरी हुई थी जब अशोक गहलोत के समर्थक विधायक जयपुर में बुलाई गई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचे थे।इन विधायकों ने बैठक में पहुंचने के बजाय कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक की थी और फिर स्पीकर सीपी जोशी को अपने इस्तीफ़े सौंप दिए थे। ऐसे विधायकों की संख्या 100 के आसपास बताई गई थी।
पायलट गुट को झटका
गहलोत ने इतना बड़ा बयान ऐसे वक्त में दिया है जब कुछ ही दिनों के बाद भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में पहुंचने वाली है। बीते कुछ दिनों में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उनका खेमा फिर से सक्रिय हुआ है और राज्य सरकार के मंत्री हेमाराम चौधरी, राजेंद्र गुढ़ा के साथ ही राज्य कृषि उद्योग बोर्ड की उपाध्यक्ष सुचित्रा आर्य ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की खुलकर मांग की है। सोशल मीडिया पर भी पायलट समर्थक सक्रिय हो गए हैं। लेकिन गहलोत ने पायलट को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया है।
अजय माकन का इस्तीफ़ा
राजस्थान में कांग्रेस नेतृत्व की मुश्किलें अजय माकन के राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी का पद छोड़ देने के बाद भी बढ़ी हुई हैं। अजय माकन ने 8 नवंबर को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखा था। पत्र में कहा गया था कि वह अब कांग्रेस प्रदेश प्रभारी के पद पर नहीं रहना चाहते क्योंकि शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ अनुशासनात्मक कमेटी के द्वारा कारण बताओ नोटिस दिए जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पत्र में कहा गया था कि इन तीनों नेताओं को राजस्थान में भारत छोड़ो यात्रा की जिम्मेदारी दी गई है।गहलोत के साथ हैं अधिकतर विधायक
200 सदस्यों वाली राजस्थान की विधानसभा में कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं और उसके पास 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। कांग्रेस के 108 विधायकों में से लगभग 90 विधायक अशोक गहलोत के साथ हैं। बीजेपी के पास 70 विधायक हैं।
कांग्रेस को होगा नुक़सान?
अगर गहलोत के इस बयान को लेकर गहलोत और पायलट खेमों में आपसी बयानबाजी शुरू हो गई तो राजस्थान में कांग्रेस को अच्छा खासा सियासी नुकसान होना तय है।
साल 2024 का लोकसभा चुनाव अब दूर नहीं है। कांग्रेस सिर्फ गिने-चुने 2 राज्यों में अपने दम पर सत्ता में है और उसमें से भी एक राज्य में दिन-रात बवाल चल रहा है। साल 2023 में पार्टी को 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना करना है। कांग्रेस को मजबूत और एकजुट करने के लिए पार्टी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है लेकिन यात्रा के शुरू होने के कुछ दिन बाद ही गोवा में कांग्रेस के 8 विधायक पार्टी का साथ छोड़ कर चले गए और अब राजस्थान में गहलोत-पायलट का विवाद फिर से भड़कने की आशंका है।
लड़ाई के चलते पंजाब खोया
सीधे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट बीते वक्त में हुई गलतियों से सीखने के लिए तैयार नहीं हैं और भारत जोड़ो यात्रा के जरिए सोशल मीडिया, टीवी चैनलों, अखबारों में जिस तरह कांग्रेस एक बार फिर एकजुट होती हुई दिख रही है, इन दोनों नेताओं की लड़ाई के कारण इस यात्रा को मिल रही लोकप्रियता को नुकसान पहुंच सकता है। क्योंकि ऐसी स्थिति में कांग्रेस के आलोचक उस पर राजस्थान के संकट को हल न कर पाने के लिए हमला करेंगे। बताना होगा कि नेताओं की ऐसी ही लड़ाई की वजह से कांग्रेस को पंजाब खोना पड़ा था।
देखना होगा कि कांग्रेस नेतृत्व अनुशासन का डंडा चलाकर क्या गहलोत और पायलट खेमों को उनकी हद में रखेगा या एक बार फिर ये नेता खुलकर लड़ाई लड़ेंगे और राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की संभावनाओं को कमजोर कर देंगे।