कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव पूरा होने के बाद यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व अब राजस्थान के सियासी संकट पर कोई फैसला कर सकता है। बताना होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुने गए हैं और पिछले महीने जब वह बतौर पर्यवेक्षक राजस्थान पहुंचे थे तो उन्हें बेहद खराब अनुभव से गुजरना पड़ा था। जयपुर में बुलाई गई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में गहलोत समर्थक विधायक नहीं पहुंचे थे।
इन विधायकों ने बैठक में पहुंचने के बजाय कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक की थी और फिर स्पीकर सीपी जोशी को अपने इस्तीफ़े सौंप दिए थे। ऐसे विधायकों की संख्या 100 के आसपास बताई गई थी।
इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने सख्त एक्शन लेते हुए गहलोत के समर्थकों- शांति धारीवाल, महेश जोशी और विधायक धर्मेंद्र राठौड़ को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक विधायक कुछ दिन पहले कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिले। इन विधायकों में महेश जोशी और कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल शामिल थे। इसे लेकर राजस्थान में कांग्रेस की विधायक दिव्या मदेरणा ने ट्वीट कर इन दोनों नेताओं पर हमला बोला है। दिव्या मदेरणा ने कहा है, “काबा किस मुंह से जाओगे 'ग़ालिब', शर्म तुम को मगर नहीं आती” मतलबी दुनिया के रंग हैं! बेरंग कर के लौटाने वाले रंगीन फूलों के गुलदस्ता देते हुए। यह तो सर्वोच्च अवसरवाद की श्रेणी में ही आता है।
बताना होगा कि पिछले महीने जब यह चर्चा शुरू हुई कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे तभी से राजस्थान में सियासी पारा चढ़ने लगा था। सवाल यही था कि क्या अब अशोक गहलोत की जगह सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा।
लेकिन विधायकों की बगावत के बाद अशोक गहलोत ने राजस्थान के घटनाक्रम के लिए पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगी और कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। इसके बाद एक बार फिर सचिन पायलट का इंतजार लंबा हो गया लेकिन यह जरूर कहा गया कि अध्यक्ष का चुनाव पूरा होने के बाद कांग्रेस हाईकमान राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कोई फैसला कर सकता है।
लेकिन जिस तरह के तेवर गहलोत समर्थक विधायकों ने बीते महीने जयपुर में दिखाए थे, उससे लगता है कि सचिन पायलट की राह बेहद मुश्किल है।
गहलोत के समर्थक और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा था कि लोकतंत्र संख्या बल से चलता है और उनके गुट के पास लगभग 100 विधायक हैं। गहलोत समर्थक विधायक सचिन पायलट के द्वारा साल 2020 में की गई बगावत को भी मुद्दा बना रहे हैं। पायलट भी कुछ दिन पहले प्रताप सिंह खाचरियावास से मिले थे।
2020 में पायलट की बगावत
याद दिलाना होगा कि साल 2020 में भी ऐसा ही सियासी संकट खड़ा हुआ था जब पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ गुड़गांव के पास मानेसर में स्थित एक रिजॉर्ट में चले गए थे। तब कई दिनों तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमे आमने-सामने रहे थे और कांग्रेस हाईकमान को दखल देकर इस सियासी संघर्ष को खत्म करना पड़ा था।
गहलोत समर्थकों की मांग
गहलोत समर्थक विधायकों के इस्तीफे की खबर के बाद सियासी बवाल खड़ा हो गया था। गहलोत समर्थक विधायकों ने दो प्रमुख मांगें कांग्रेस हाईकमान के सामने रखी थी। इसमें एक मांग यह थी कि राज्य का नया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों में से होना चाहिए। दूसरी मांग यह थी कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने से पहले विधायक दल की बैठक नहीं बुलाई जाए।
200 सदस्यों वाली राजस्थान की विधानसभा में कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं और उसके पास 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। बीजेपी के पास 70 विधायक हैं।
कौन होगा मुख्यमंत्री?
अगर अशोक गहलोत के समर्थक विधायक सचिन पायलट के नाम पर राजी नहीं हुए तो क्या ऐसी स्थिति में कांग्रेस हाईकमान गहलोत को हटाकर पायलट के अलावा किसी और अन्य नेता को मुख्यमंत्री बना सकता है।
देखना होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद के मल्लिकार्जुन खड़गे राजस्थान के सियासी संकट को लेकर क्या कोई फैसला लेंगे। राजस्थान में अगले साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं और सचिन पायलट के समर्थकों की मांग उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाने की है।