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किधर जा रही है सिखों की धार्मिक और राजनीतिक सियासत

किधर जा रही है सिखों की धार्मिक और राजनीतिक सियासत

पंजाब में सिखों की धार्मिक और राजनीतिक सियासत पर नजर डालना जरूरी है। इधर, अकाल तख्त साहिब, एसजीपीसी और शिरोमणि अकाली दल में कई घटनाक्रम हुए हैं। जानियेः

पंजाब में पंथक सियासत में तीन मुख्य ध्रुव है। शिरोमणि अकाली दल पंजाब में सीधे सीधे राजनीति की एक धुरी है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सिख पंथ की संस्थाओं के प्रबंधन और व्यवस्थाओं की निगरान कमेटी है। श्री अकाल तख़्त साहेब सिख पंथ के 'मीरी पीरी ' के सिद्धांत अनुरूप धार्मिक और राजनितिक संबंध की तार्किक व्याख्या और न्यायिक मामलों के निर्णय करने का सर्वोच्च पीठ है। अकाली दल सिखों के राजनीतिक भागीदारी और अधिकारों की सियासी जमात है। अकाली दल 14 दिसंबर 1920 में स्थापित किय गया था। 1996 से अकाली दल का नेतृत्व प्रकाश सिंह बादल के पास रहा और 2008 से अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल रहे जब 10 जनवरी को एस जी पी सी वर्किंग कमेटी ने उनका त्यागपत्र स्वीकार कर नए कार्यकारी प्रधान की नियुक्ति की।

जत्थेदारों को सेवा मुक्त करने पर विभिन्न सिख समूहों द्वारा तीखी प्रतिक्रियाएँ  सामने आ रही है। हटाए गए तीनों जत्थेदार पांच जत्थेदार साहिबान में से हैं जिन्होंने 2 दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब से अपने हुक्म में सुखबीर सिंह बादल को अकाली दल की प्रदेश में सरकार के समय उनके कार्यकाल में हुयी पंथ के प्रति गलतियों पर सज़ा सुनते हुए  'तन्खाइया ' घोषित किया था  और प्रकाश सिंह बादल को दिए गए पंथ रत्न  "फख्र ऐ  कौम " के ख़िताब को वापिस  लिया था। ऐसा माना जा रहा है कि जत्थेदार साहिबान को हटाए जाने की क्रिया का अकाली दल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो पहले से ही अपनी साख के लिए जद्दोजहद कर रहा है।  

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के इस प्रकार निर्णय ले कर जत्थेदार को हटाने से सिख पंथ में एक नए विवाद को उठा दिया है और हर तरफ इसकी निंदा हो रही है।  इसे अकाल तख्त साहिब की पवित्रता और प्रतिष्ठा को कमजोर करने और हानि पहुंचाने के रूप में देखा जाने लगा है। यह घटना सबसे पहले हटाए गए जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को हटाने के एक महीना बाद अमल में आयी है। एस जी पी सी के कार्यकारी सदस्य जसवंत सिंह पुढैन ने कहा है कि दोनों जथेदार साहेब मुख्य ग्रंथी के रूप में अपनी सेवायें जारी रखेंगे। 

एस जी पी सी की इस अंतरिम कमेटी के कदम को सिख संगत की जन भावनाओं को ठेस पंहुचने वाला कहा जा रहा है। अब ज्ञानी कुलदीप सिंह गढ़गज जो 2001 से 'एक कथावाचक ' को तख्त श्री केसगढ़ साहेब का जत्थेदार नियुक्त किया गया है और अकाल तख्त साहेब के कार्यकारी जत्थेदार की अतिरिक्त जिमेदारी दी गई है। संत बाबा टेक सिंह को तख्त दमदमा साहेब के जत्थेदार नियुक्त किया गया है।

कुछ समय पहले ज्ञानी रघुबीर सिंह ने जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को तख्त दमदमा साहेब से हटाए जाने पर सर्वजनिक आपत्ति जताई थी। जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने यह भी कहा है कि 2 दिसंबर 2024 को अकाल तख्त से जारी हुक्म के अनुसार अकाली दल के पुनरुत्थान और संरचना में अपेक्षित बदलाव करने के लिए नए रूप से भर्ती करने के जो आदेश दिए गए थे उस पर भी अकाली दल की वर्तमान नेतृत्व का  सहयोग नहीं मिल रहा है। 

जत्थेदार साहेब के इस बयान के मायने लगये जा रहे हैं कि उन्होंने सुखबीर बादल गुट द्वारा चलायी गई भर्ती प्रक्रिया से असहमति जताई है। पिछले साल 2 दिसंबर को अकाल तख्त से शिरोमणि अकाली दल की वर्किंग कमेटी को निर्देश दिए गए थे की तीन दिनों में सुखबीर सिंह बादल का त्यागपत्र मंजूर किया जाये और अकाली दल में अगले छह महीने में चुनाव करवाने के लिए पैनल का गठन किया जाये।

जत्थेदार साहिबान ने पार्टी के कार्य और संरचना में सुधार के लिए सर्वसम्मत से एस जी पी सी प्रधान हरजिंदर सिंह धामी के नेतृत्व में एक नयी 7 सदस्य अंतरिम कमेटी के गठन का फैसला दिया था जिसमे किरपाल सिंह बढ़डूंगर  गुपरताप सिंह वडाला मनप्रीत सिंह अयाली इक़बाल सिंह झूँडा सांता सिंह उमेदपुरी बीबी सतवंत कौर को शमिल किया गया था। लेकिन दो सदस्य प्रधान हरजिंदर सिंह धामी और किरपाल सिंह बढ़डूंगर ने हाल ही में त्यागपत्र दे दिया था।  ऐसा मना जाता ही कि प्रधान हरजिंदर सिंह धामी पर बादल गुट का दबाव था।  

अकाली दल के ही बागी धड़े के बड़े नेता ने कहा है कि अकाल तख्त और तख़्त केसगढ़ साहेब के जत्थेदार को यूँ हटाए जाने से एस जी पी सी की साख पर एक और ठेस लगी है क्योंकि पहले से ही एस जी पी सी की साख पर प्रश्न उठ रहे थे। अन्य देशों में भी सिख संगत ने इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी है। अमेरिका कनाडा में प्रमुख सिख नेताओं और सिख बुद्धिजीवियों द्वारा भी इस फैसले पर प्रश्न उठाये जा रहे हैं।

एस जी पी सी के वरिष्ठ उप प्रधान रघुजीत सिंह विर्क ने जत्थेदार साहेबान को बदलने के पीछे तर्क दिया है कि पंथ को मिल रही चुनौतियों के मद्देनजर जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह पंथ की चुनौतियों को हल करने और उचित मार्गदर्शन देने में असक्षम हैं।  विर्क ने कहा है कि सिख संस्थाओं में बढ़ते विभाजन और वैश्विक स्तर पर सिख पहचान और अस्मिता को बढ़ते खतरे पर डट कर ठोस कार्यवाही नहीं कर सके। बढ़ते वैश्विकरण में जत्थेदार साहेब को सिख पंथ के हितों की रक्षा करने के लिए स्पष्ट और अटल मागर्दर्शन देना चाहिये लेकिन वो इसमें पूरी तरह असफल रहे है।  पंथक एकता को मजबूत करने और एकजुट रखने में भी ज्ञानी रघुबीर सिंह अपनी निरंतरता बनाये रखने में कमजोर रहे है।     

पंथक सियासत में एक बड़ी हलचल इस पूरे प्रकरण के बाद हो रही है। अकाली दल का राजनीतिक जनाधार पहले ही सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर खो हो चुका है। अकाली दल के असंतुष्ट नेताओं क एक धड़ा भी सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व को अस्वीकार करके अलग हो चुका है। 

बदलती परिस्थितियों में अब अकाली दल को गंभीर चुनौतियों ने घेर लिया है। सबसे बड़ी चुनौती सुखबीर बादल को विक्रम सिंह मजीठिया से मिलती लग रही है।  बीते कल विक्रम सिंह मजीठिया ने एक बयांन जारी करके जत्थेदार साहिबान को यूँ पदस्थ किये जाने पर गंभीर सवाल उठाये हैं। मजीठिया ने इस कार्यवाही को सिख मर्यादा और अकाल तख्त साहेब की प्रतिष्ठा को ठेस पंहुचने वाला करार दिया है।  

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