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पंजाब: मालवा में क्या ध्रुवीकरण की राजनीति चल पाएगी?

पंजाब: मालवा में क्या ध्रुवीकरण की राजनीति चल पाएगी?

पंजाब में सभी सीटों पर लोकसभा चुनाव सातवें और आख़िरी चरण में  एक जून को एक साथ होंगे। पिछली कड़ियों में आपने माझा और दोआबा क्षेत्र की सीटों का विश्लेषण पढ़ा। अब आख़िरी कड़ी में मालवा के हालात जानिए। 

सतलुज के उत्तरी किनारे से हरियाणा की सीमा तक लगता हुआ इलाका मालवा कहलाता है। यहाँ से 8 सीटें- लुधियाना, फ़िरोज़पुर, फरीदकोट, बठिंडा, संगरूर, पटियाला, श्री फतेहगढ़ साहेब व आनंदपुर साहेब हैं। मालवा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिली थी। अकाली दल का भी यहाँ मजबूत आधार रहा है। इस क्षेत्र को किसान आंदोलन का बड़ा गढ़ भी माना जाता है। मालवा में चार कोणीय मुकाबला लगभग हर सीट पर है। पंजाब में  अकाली दल क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मज़बूत रही है और इसने अबकी बार भाजपा से गठबंधन नहीं किया। दोनों अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं।

फिरोजपुर की सीट पर पिछली बार अकाली दल से सुखबीर सिंह बादल चुनाव जीते थे लेकिन अबकी बार वो चुनाव ही नहीं लड़ रहे। फिरोजपुर परंपरागत रूप से अकाली दल की मजबूत सीट मानी जाती है। शेर सिंह गुभाया 2009, 2014 में यहाँ से अकाली दल से सांसद रहे लेकिन 2019 में सुखबीर सिंह बादल के प्रत्यशी बनने के कारण अकाली दल छोड़ कांग्रेस पार्टी में चले गए और कांग्रेस के टिकट पर सुखबीर बादल के विरुद्ध चुनाव लड़े परन्तु हार गए थे।  वह अबकी बार कांग्रेस पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। अकाली दल ने यहाँ से नरदेव सिंह बॉबी मान को प्रत्याशी बनाया है। आम आदमी पार्टी से जगदीप सिंह काका बराड़ उमीदवार हैं। कांग्रेस पार्टी से भाजपा  में आये राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी यहाँ से मैदान में हैं। 4 बार कांग्रेस के विधायक रहे पूर्व खेल मंत्री, कैप्टन अमरेंदर सिंह के काफी करीबी और विश्वसनीय रहे लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी से किनारा कर भाजपा में शामिल हो गए थे। यहाँ एक और अकाली दल की साख दांव पर है तो कांग्रेस को चुनौती शेर सिंह गुभाया की जीत की है। 

फरीदकोट की सीट आरक्षित सीट है। आम आदमी पार्टी का गढ़ माना जा रहा है ये लोकसभा क्षेत्र। हालांकि कांग्रेस और अकाली दल पहले बार-बार यहाँ से जीतते रहे हैं। पंजाब के इतिहास में सिखों के श्री गुरु ग्रंथ साहेब की बे-अदबी के मामले में यही वो क्षेत्र है जहाँ प्रकाश सिंह बादल की सरकार के समय घटना हुयी थी। बेअदबी मामले में इंसाफ का दावा आम आदमी पार्टी  ने भी किया था लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम यहाँ आया नहीं। किसानों का भारी विरोध यहाँ भाजपा प्रत्याशी हंस राज हंस को झेलना पड़ रहा है। बेअंत सिंह, जिसने इंदिरा गाँधी की हत्या की थी, के पुत्र सरबजीत सिंह खालसा निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस क्षेत्र में काफी समर्थन उनको मिल रहा है। कांग्रेस ने गायक मोहमद सदिक को फिर से उम्मीदवार न बना के यहाँ चेहरा बदल दिया और अमरजीत कौर सहोके को प्रत्याशी बनाया है। आम आदमी पार्टी के करमजीत अनमोल, जो पंजाबी के गायक हैं, को यहाँ मैदान में उतारा है। भाजपा और आम आदमी पार्टी के दोनों ही प्रत्याशी यहाँ बहार के माने जाते हैं। कांग्रेस पार्टी में आपसी गुटबाजी यहां तीव्र है। किसानों का बड़ा वर्ग यहाँ भजपा विरोध में है। लेकिन डेरा प्रेमी भी यहाँ काफी संख्या में हैं। इस सीट पर चुनावी समीकरण काफी उलझे हुए हैं।

बठिंडा में आखिर अकाली दल ने काफी गुना भाग जमा घटा करने के बाद हरसिमरत कौर बादल को उतार ही दिया। वह यहाँ से चौथी बार भाग्य आजमाएंगी। यहाँ मुकाबला 5 कोणीय हो रहा है। कांग्रेस पार्टी ने जीत मोहिन्दर सिंह सिद्दू को टिकट दिया है। वह पार्टी बदलते रहे हैं। वह अकाली दल से भी विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं। विधायक भी रहे लेकिन इन पर पंजाब के एक बड़े घोटाले के आरोपी होने की छाया भी चस्पा है। आम आदमी पार्टी के गुमीत सिंह खुड़ियाँ यहाँ उमीदवार हैं जो वर्तमान में पंजाब सरकार में मंत्री भी हैं।

खुड़ियाँ पढ़े-लिखे गंभीर व्यक्तित्व के नेता की छवि लिए हुए तथा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को विधानसभा चुनाव में हारने का तमगा भी साथ लिए हैं। निर्दलीय उमीदवार के तौर पर पंजाब के मालवा क्षेत्र के लिए निरंतर आवाज उठाने वाले लखा सिधाना ने भी अबकी बार लोकसभा के चुनाव में ताल ठोक दी। 2022 के विधानसभा चुनाव में लखा सिधाना मोड़ हलके से चुनाव हार गए थे। यहाँ किसान आंदोलन का जोर इस इलाके बहुत सघन है। किसान वर्ग का भारी विरोध भाजपा को झेलना पड़ेगा। 

अकाली दल के बड़े नेता सिकंदर सिंह मलूका के परिवार की पुत्रवधू पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी परमपाल कौर बठिंडा से बीजेपी की प्रत्याशी हैं। उन्होंने हाल ही में अपने पद से त्यागपत्र दिया था और भाजपा में शामिल हुई हैं। 9 विधानसभा में यहां सभी आम आदमी पार्टी के विधायक हैं।

संगरूर

संगरूर की सीट पर सिमरनजीत सिंह मान उपचुनाव में बाजी मार ले गए थे। अकालीदल (अ ) से 84  साल की उम्र में एक बार फिर से मैदान में हैं। किसान आंदोलन का गढ़ संगरूर अबकी बार हर प्रत्याशी के लिए बहुत कठिन पहेली है। कांग्रेस प्रदेश की आम आदमी पार्टी की सरकार की अक्षमताओं को भुनाने में लगी है। कांग्रेस प्रदेश में विधानसभा में खोये विश्वास को फिर से हासिल करने की उम्मीद में अपने प्रयासों में धार लगाने में जुटी है। मतदाताओं में विभिन्न समाजिक वर्ग कहीं एकजुट निर्णय की स्थिति में अभी तक दिखाई नहीं दे रहे। सुखपाल सिंह खैरा को कांग्रेस ने यहाँ से प्रत्याशी बनाया है। हालाँकि सुखपाल सिंह खैरा एक मजबूत छवि रखते हैं लेकिन विगत में कई विवादों में भी रहे हैं। भाजपा ने अरविन्द खन्ना को यहाँ प्रत्याशी बनाया है। भाजपा पूरी तरह से हिन्दू वोट को अपने पक्ष में भुनाने में लगी हुयी है। साथ ही सिख समुदाय के बड़े नेताओं को भी अपनी पार्टी में शामिल कर प्रदेश के कृषक समाज में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। अकाली दल ने यहाँ से ढींडसा परिवार को किनारा करके इक़बाल सिंह झुन्डा पर दाँव खेला है। लेकिन अकाली दल को अपने मजबूत आधार में काफी मशक्कत बड़े अकाली नेताओं की नाराजगी को मिटने में करनी पड़ेगी तभी स्थानीय  मतदाताओं के विश्वास को हासिल करने में कोई कामयाबी मिलने के आसार हैं। पंथक वोट यहाँ अभी सिमरनजीत सिंह मान के चुनाव में होने से पूरी तरह से बंटे हुए हैं। आजम आदमी पार्टी ने गुरमीत सिंह मीत को चुनाव में उतारा है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की यह सीट रही और अब इसको जीतने की बड़ी चुनौती आम आदमी के सामने है। 

पटियाला सीट पर बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंदर सिंह की पत्नी परणीत कौर को अपना प्रत्याशी बनाया है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा कैसे कैसे रंग बदलती है, यह समझना मुश्किल नहीं। कांग्रेस से धर्मवीर गाँधी उमीदवार हैं। आम आदमी पार्टी ने डॉ. बलबीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है जो वर्तमान प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं। शिरोमणि अकाली दल से नरेंदर कुमार शर्मा मैदान में हैं। धर्मवीर गाँधी 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे और तब कांग्रेस की प्रत्याशी परणीत कौर को हरा चुके हैं। स्थानीय समीकरण इस लोकसभा में कांग्रेस की प्रति अनुकूल दिखाई देने लगे हैं।  

लुधियाना

लुधियाना में रवनीत सिंह बिट्टू कांग्रेस छोड़ कर चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो कर अब यहाँ से पार्टी प्रत्याशी हैं। राजनीति की धारा में नाव  बदल कर फिर से पार लगना या मझधार में फंस के रह जाना, एक तरह का बड़ा जोखिम ही कहा जा सकता है। यहां आदर्श व सिद्धांतों के कोई मायने रह नहीं जाते। 9 विधानसभा में से 8 पर यहाँ आम आदमी पार्टी के विधायक हैं। एक विधायक अकाली दल से हैं। कांग्रेस से यहाँ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तेज तरार अमरिंदर सिंह राजा वडिंग चुनाव मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी ने अशोक पराशर पप्पी को उमीदवार बनाया है। अकाली दल से रंजीत सिंह ढिल्लों मैदान में हैं। अकाली दल ने यहाँ लोकसभा चुनाव में 16 में से 7 बार जीत हासिल की है। 

पंजाब का औद्योगिक शहर किन धड़ों में बंटेगा या अपनी विरासत को सहेज कर राजनीति की परिभाषा को सशक्त करेगा, यह 4 जून के परिणाम से स्पष्ट होगा।

श्री फतेगढ़ साहेब की सीट आरक्षित सीट है। 2009 में पुनर्निर्धारण के आधार पर अस्तित्व में आयी इस सीट पर 3 चुनाव में 2 बार कांग्रेस और एक बार आम आदमी पार्टी विजयी हुयी है। कांग्रेस से डॉ. अमर सिंह यहाँ प्रत्याशी हैं। दूसरी बार अपनी  किस्मत आजायेंगे। आम आदमी की ओर से कांग्रेस पार्टी छोड़ कर आये गुरप्रीत सिंह जी पी  भाग्य आजमा रहे हैं। अकाली दल ने बिक्रमजीत सिंह खालसा को प्रत्याशी बनाया है। इनके पिता सरदार बसंत सिंह खालसा दो बार रोपड़ से सांसद रहे हैं। यहां मुकाबला त्रिकोणीय है। सभी 9 विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी 2022 के विधान सभा चुनाव में जीती थी। भाजपा के गजा राम चुनाव मैदान में हैं। हिन्दू वोट किसके पक्ष में जाते हैं वो भी जीत हार यहाँ तय करेंगे।  

श्री आनन्दपुर साहेब लोकसभा 2009 में पुनर्निर्धारण के तहत अस्तित्व में आई है। 3 लोक सभा चुनाव अभी तक यहाँ हुए जिनमें 2 बार कांग्रेस और एक बार शिरोमणि अकाली दल ने जीत हासिल की। यहाँ पंथक भावनाएं भी गहरी हैं और बागी तेवर भी। हिन्दू वोट यहाँ उतना प्रभावी संख्या में नहीं हैं। व्यवहारिकता से ज्यादा भावनात्मकता यहाँ अधिक व्याप्त है। कांग्रेस से पहले यहाँ रवनीत बिट्टू 2009 में, मनीष तिवारी 2019 की पुलवामा लहर के बावजूद जीत चुके हैं। 2014 में अकाली दल के बड़े नेता डॉ. प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने जीत हासिल की थी। अबकी बार विजय इन्दर सिंगला यहाँ कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।  आम आदमी पार्टी ने मालविंदर सिंह कंग को प्रत्याशी बनाया है। कंग पहले भाजपा के लिये भी काम कर चुके हैं। अकाली दल से डॉ. प्रेम सिंह चंदूमाजरा फिर से अपना भाग्य 5 साल बाद आजमा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी से यहाँ जसवीर सिंह गढ़ी मैदान में उतरे हैं। भजपा के सुभाष शर्मा यहाँ से चुनाव लड़ रहे हैं।  

पंजाब में अबकी बार अकाली दल की स्थिति कमजोर ही है। पंजाब  हालांकि कभी धार्मिक ध्रुवीकरण में नहीं फंसा लेकिन भाजपा प्रदेश में हिन्दू वोट को साधने में लगी है। धर्मनिरपेक्ष पंजाब में सभी धर्मों का सम्मान समुदायों के सौहार्द और सामाजिक सहयोग को सबसे अहम माना जाता है। राजनीतिक जमीन पर आम आदमी पार्टी अपने वर्चस्व को बनाये रखने की भरपूर कोशिश कर रही है। 2022 में कांग्रेस को ख़ारिज कर आम आदमी पार्टी को सत्ता में लाने वाले पंजाब के मतदाता ने राज्यसभा में चुने गए प्रतिनिधियों को देख लिया कि कितनी आवाज़ उनके हक़ों की देश की संसद में उठाई गयी है। पंजाब के गंभीर मसलों- नशा, पानी, कृषि, पलायन, रोजगार, उद्योग, उन्नति के सवालों को कौन कितनी मजबूती से हल कर पायेगा, ये प्रश्न बना हुआ है।

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