सिखों की अधिकता वाले पंजाब में भी इन दिनों हिंदू वोटों की सियासत चल रही है। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने बीते दिनों में कई मंदिरों में मत्था टेका है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हिंदू धर्म के आयोजनों में शामिल हो रहे हैं। पंजाब में फरवरी 2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
सुखबीर बादल ने जालंधर के देवी तालाब मंदिर में हाज़िरी लगाई तो केजरीवाल भी वहां पहुंच गए। कांग्रेस के भीतर चल रहे जबरदस्त झगड़ों के बीच अकाली दल और आम आदमी पार्टी को इस बात की उम्मीद है कि सिखों के साथ हिंदू वोट भी उन्हें मिल जाएं तो वे सूबे की सियासत में अपना झंडा फहरा सकते हैं।
सुखबीर बादल हिंदू मंदिरों के चक्कर इसलिए भी लगा रहे हैं क्योंकि बीजेपी के साथ होने से उन्हें भी हिंदू मत मिल जाते थे लेकिन इस बार हिंदू मतों को पार्टी की झोली में लाने का जिम्मा उनके ही कंधों पर है।
पंजाब में 40 फ़ीसदी आबादी हिंदू है, ऐसे में इस आबादी को साधने की कोशिश सभी दल करते हैं।
सुनील जाखड़ फ़ैक्टर
कांग्रेस इस मामले में थोड़ा नुक़सान में रह सकती है क्योंकि अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद एकबारगी जब सुनील जाखड़ का नाम इस पद के लिए लगभग तय हो गया था तो उनका हिंदू होना ही इसमें आड़े गया था।
क्योंकि पंजाब कांग्रेस के कुछ नेताओं का तर्क था कि सिख बहुल राज्य में हिंदू चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने से पार्टी को चुनाव में नुक़सान हो सकता है। पंजाब में हिंदू वोटों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिलता रहा है। लेकिन सुनील जाखड़ का नाम लगभग तय होने के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री न बनाए जाने को लेकर हिंदू समुदाय के बीच नाराज़गी होने की ख़बरें सामने आ रही हैं।
कांग्रेस ने इस बात को भांपते हुए हिंदू समुदाय से आने वाले ओपी सोनी को उप मुख्यमंत्री बनाया है। लेकिन सुनील जाखड़ का बीते कुछ दिनों में कई बार नाराज़गी जाहिर करना पार्टी के लिए मुश्किल भरा साबित हो सकता है।
राज्य की चौथी प्रमुख पार्टी बीजेपी को तो हिंदू वोटों का ही सहारा है। बीजेपी जब तक अकाली दल के साथ थी तब तक भी वह हिंदू वोटों की ही सियासत करती थी और हिंदू बहुल सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी।
मुश्किल में बीजेपी
आम आदमी पार्टी और अकाली दल की ओर से हिंदू वोटों को खींचने की इस मारामारी का बीजेपी पर ज़रूर असर होगा। अकाली दल के साथ गठबंधन में रहते हुए बीजेपी को हिंदू के साथ ही सिख वोट भी मिल जाते थे और वह कुछ सीटें पंजाब में जीत जाती थी।
लेकिन किसान आंदोलन शुरू होने के बाद से ही पार्टी नेताओं का रैलियां और चुनावी कार्यक्रम करना बेहद मुश्किल हो गया है। पार्टी के कई नेताओं का कई बार जबरदस्त विरोध हो चुका है। ऐसे में एक तो अकाली दल का साथ छूटना, दूसरा किसान आंदोलन के कारण सियासी ज़मीन के कमजोर होने की वजह से पार्टी को शायद इस बार पहले जितने मत मिलने भी मुश्किल हों।
हिंदू नेता बने मुख्यमंत्री
पंजाब के हिंदू समुदाय में कई नेताओं ने इस मांग को रखा है कि इस बार राज्य का मुख्यमंत्री किसी हिंदू नेता को बनाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी दल का क्यों न हो। उनका कहना है कि 40 फ़ीसदी वाले इस समुदाय को उसके सियासी हक़ से कब तक दूर रखा जा सकता है।
1966 में हरियाणा पंजाब से अलग हुआ था और तब से अब तक कोई हिंदू नेता पंजाब का मुख्यमंत्री नहीं बन सका है। जबकि संयुक्त पंजाब में कुछ हिंदू नेता मुख्यमंत्री बने थे। इसके अलावा कोई दलित सिख भी अब तक पंजाब का मुख्यमंत्री नहीं बना था। चन्नी पहले दलित सिख हैं जो सूबे की इस सबसे ताक़तवर कुर्सी पर बैठे हैं। इसके बाद से ही हिंदू समुदाय को भी यह आस जगी है कि उनका भी कोई नेता पंजाब का मुख्यमंत्री बनेगा।
देखना होगा कि हिंदू समुदाय किस राजनीतिक दल के साथ जाता है।