यूसीसी पर एसजीपीसी का कड़ा विरोध,प्रधान धामी ने कहा- सिख कौम को नामंजूर
यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने तीखा विरोध किया है। एसजीपीसी अध्यक्ष एचएस धामी ने कहा है कि यह सिखों की अलग पहचान व मर्यादा को मौजूदा हुकूमत की खुली चुनौती है, सिख कौम इसे हरगिज मंजूर नहीं करेगी। यूसीसी का एकजुट होकर पूरे देश के सिख विरोध करेंगे। हम अन्य अल्पसंख्यकों को भी इस विरोध में शामिल करेंगे।
धामी की अगुआई में शनिवार देर शाम एसजीपीसी की एक विशेष बैठक समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर हुई। अध्यक्ष सहित तमाम सदस्यों और महासचिव ने इसे लागू करने के प्रस्ताव को सिरे से रद्द कर दिया। कमेटी की ओर से कहा गया कि केंद्र सरकार को एक विरोध पत्र भेजा जा रहा है कि वह जबरन इसे देश पर न थोपें। यूसीसी का पंजाब सहित कई राज्यों में इसे लेकर विरोध हो रहा है। लेकिन मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस सच को सामने नहीं ला रहा।
बैठक में एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने जोर देकर कहा कि सिख सरकार की मनमर्जी के आगे नहीं झुकेंगे-बेशक सीने पर गोलियां क्यों न खानी पड़ें। केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता, 2024 में आम लोकसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण की रणनीति के चलते लागू करना चाहती है। अगर नरेंद्र मोदी और संघ परिवार सिखों को पराया नहीं मानता तो सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्थाओं और फौरी तौर पर लीड कर रहे राजनीतिक नेतृत्व से इस बाबत विचार-विमर्श क्यों नहीं करती। यह एकतरफा फैसला है जो तानाशाही और घमंड की उपज है।
एसजीपीसी प्रतिनिधियों से खचाखच भरे हॉल में एडवोकेट धामी ने कहा कि यूसीसी को लेकर देश के अल्पसंख्यकों में डर है कि यह उनकी पहचान, मौलिकता और सिद्धांतों को चोट पहुंचाएगा। चिंता में केवल सिख ही नहीं, मुसलमान, ईसाई, आदिवासी और पारसी भी हैं। इन सब समुदायों में यूसीसी को लेकर बेशुमार गलतफहमियां हैं और केंद्र सरकार इस बाबत इनसे कोई संवाद नहीं करना चाहती। 21वें लॉ कमीशन में समान नागरिक संहिता को सिरे से रद्द किया जा चुका है, इस प्रसंग में देखा जाए तो इसे लागू करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार खुद संविधान को नहीं मानती और मनमर्जी से चलती है। यूसीसी लागू करने की जिद इसका उदाहरण है। संविधान विविधता में एकता के सिद्धांत को मान्यता देता है लेकिन केंद्र की सरकार इस ओर से पीठ किए बैठी है।
एसजीपीसी के महासचिव भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने कहा कि "यूसीसी को लेकर एसजीपीसी ने सिख बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों, विद्वानों और न्यायविदों की एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी काम कर रही है ताकि वक्त आने पर सुप्रीम कोर्ट तक जाया जा सके। शुरुआती दौर में कमेटी ने पाया है कि समान नागरिक संहिता में अल्पसंख्यकों के अस्तित्व और उनके धार्मिक अनुष्ठानों, परंपराओं और संस्कृति का खुला अपमान माना है।"
अमृतसर में यूसीसी की एसजीपीसी की ओर से बुलाई गई बैठक में खास तौर पर प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी और ग्रेवाल के अलावा सिखों मामलों के वकील पूरन सिंह हुंदल, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के वरिष्ठ सदस्य भगवान सिंह, परमजीत कौर लांडरां, दीदी करमजीत कौर, प्रोफेसर कश्मीर सिंह, डॉ. और डॉ. चमकौर सिंह ने शिरकत की। बैठक में प्रत्येक वक्ता का सारा जोर कम से कम पंजाब में यूसीसी लागू नहीं करने को लेकर था।
अकाली-भाजपा गठजोड़ खटाई में
शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के नजदीकी सूत्र रविवार को तस्दीक करते रहे कि यूसीसी की वजह से दोनों पार्टियों में होने वाला गठजोड़ ऐन वक्त पर स्थगित हो गया। अलबत्ता संभावनाएं शेष हैं। शनिवार को अकाली दल सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि बसपा से उनका गठजोड़ है और कायम रहेगा। मायावती ने सुखबीर के वक्तव्य से एक दिन पहले समान नागरिक संहिता का प्रबल समर्थन किया था। तब लखनऊ से दिया गया उनका समर्थन पंजाब में गहरी हलचल मचा गया था। अब मायावती ने यू-टर्न ले लिया है। मायावती ने शनिवार को पंजाब, चंडीगढ़ और हरियाणा के बसपा पदाधिकारियों के साथ मीटिंग की। इसमें उन्होंने कहा कि यूसीसी देश के एक बड़े तबके के लिए घातक है। इसे जबरन थोपा जा रहा है।
मीटिंग में मौजूद पंजाब के एक पदाधिकारी ने बताया कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए गंभीरता से विचार कर रही हैं। वह विपक्षी एकता के लिए अपनी खिड़कियां-दरवाजे खुला रखना चाहती हैं। अपने कार्यकर्ताओं को 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने का निर्देश देने के साथ ही उन्होंने भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर अख्तियार किए और कहा कि तमाम प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हताशा की शिकार हैं। अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए जातिवादी, फिरकापरस्त तथा विभाजनकारी विषैली नीतियों को गति दे रही हैं। यूसीसी सबसे ताजा उदाहरण है।
उसी सूत्र के मुताबिक मायावती ने साफ कहा कि कार्यकर्ता हर राजनीतिक व सामाजिक गतिविधि पर पैनी नजर रखें, लेकिन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त ना करें, क्योंकि पार्टी को हर वर्ग का वोट चाहिए। बहुजन समाज पार्टी इस मुद्दे को लेकर हालात को अच्छी तरह परखेगी। अंतिम निर्णय तभी होगा।
मायावती के इस रुख से शिरोमणि अकाली दल अब नए सिरे से अपनी रणनीति बना रहा है। मंथन अब इस बात पर हो रहा है कि अगर मायावती कांग्रेस से जा मिलती हैं तो अकाली-बसपा गठबंधन खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। अकालियों का मानना है कि मायावती को तो आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल से भी कतई कोई एतराज नहीं। जबकि शिरोमणि अकाली दल के रहनुमा सुखबीर सिंह बादल वहां बात भी नहीं करना चाहते; जहां कांग्रेस और 'आप' की मौजूदगी हो।
बहरहाल, मायावती का पैंतरा अपनी जगह लेकिन यूसीसी पर जब तक केंद्र सरकार का रुख साफ नहीं होता तो अकाली दल का भाजपा से समझौता होना मुश्किल है।