जब केंद्र सरकार विवादास्पद एनपीआर यानी नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर और जनगणना पर आज दिल्ली में बैठक कर रही होगी तब पंजाब सरकार नागरिकता क़ानून को रद्द करने वाला विधानसभा प्रस्ताव ला रही होगी। प्रस्ताव लाने के एक सवाल के जवाब में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुरुवार को कहा कि कल तक इंतज़ार कीजिए। केरल के बाद यह दूसरा राज्य होगा जो इस तरह का प्रस्ताव ला रही है। पंजाब सरकार एनपीआर के मौजूदा स्वरूप में भी संशोधन करेगी जिसे कहा जा रहा है कि विवादास्पद एनआरसी के पहले का क़दम है।
केरल और पंजाब दो ही राज्य नहीं हैं जो नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों वाली अधिकतर राज्य सरकारें इसके विरोध में हैं। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ सरकार भी एनपीआर के ख़िलाफ़ ऐसे ही क़दम उठाने पर विचार कर रही है। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार पहले ही इन मुद्दों पर केंद्र सरकार से दो-दो हाथ करने के मूड में है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड की सरकारें भी इसका विरोध कर रही हैं। बीजेपी के सहयोग से बिहार में सरकार चला रहे नीतीश कुमार भी अब एनआरसी के साथ ही नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ तीखे तेवर दिखा रहे हैं।
दरअसल, इस पर विरोध इसलिए हो रहा है कि नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर तीनों जुड़े हुए हैं। हालाँकि सरकार अब इससे इनकार करती है। मोदी सरकार सफ़ाई देती फिर रही है कि एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए नहीं होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार ही पहले कम से कम नौ बार कह चुकी है कि एनआरसी और एनपीआर जुड़े हुए हैं और एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए किया जाएगा। इस संबंध में तो गृह मंत्रालय की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि एनआरआईसी (एनआरसी) के लिए एनपीआर पहला क़दम है।
ऐसा ही विवाद नागरिकता क़ानून और एनआरसी के जुड़े होने को लेकर भी है। जब नागरिकता क़ानून का ज़बरदस्त विरोध होने लगा तो सरकार ने कहना शुरू कर दिया कि ये दोनों जुड़े हुए नहीं हैं। जबकि गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि 'आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले नागरिकता क़ानून आएगा, फिर एनआरसी आएगी'। उनके इस बयान का साफ़ मतलब था कि एनआरसी और नागरिकता क़ानून जुड़े हुए हैं। यह इससे भी साफ़ है कि जब एनआरसी से लोग बाहर निकाले जाएँगे तो नागरिकता क़ानून के माध्यम से पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी, जबकि मुसलिमों को इससे बाहर रखा गया है।
इसी को देखते हुए पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार भी विरोध कर रही है। पंजाब सरकार द्वारा तैयार प्रस्ताव के मसौदे में कहा गया है कि नागरिकता क़ानून यानी सीएए ने देश भर में गु़स्से को जन्म दिया है और प्रदर्शन के कारण सामाजिक अस्थिरता पैदा हुई है। इसमें यह भी कहा गया है कि पंजाब में भी सभी वर्गों ने इसका विरोध किया है।
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यह (नागरिकता क़ानून) संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है, जो सभी व्यक्तियों को क़ानूनों की समानता और समान सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।
पंजाब सरकार के प्रस्ताव का मसौदा
इस मसौदे में कहा गया है कि नागरिकता क़ानून भारत के संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के ताने-बाने को ख़त्म करता है, यह विभाजनकारी है। इसमें यह भी कहा गया है कि नागरिकता क़ानून स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है। लोकतंत्र में बराबरी के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। पंजाब सरकार के इस मसौदे में कहा गया है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाला यह सीएए लोगों की भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को भी ख़तरे में डालता है।