पुलवामा हमले के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अलगाववादी नेताओं को मिली सुरक्षा वापस ले ली है। इन अलगाववादी नेताओं में मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़, शब्बीर शाह, हाशिम कुरैशी, बिलाल लोन और अब्दुल गनी बट शामिल हैं। इन पांचों अलगाववादी नेताओं को किसी भी तरह की सुरक्षा नहीं दी जाएगी।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि अलगाववादी नेताओं से रविवार (17 फ़रवरी) शाम से ही सुरक्षा, गाड़ी आदि सुविधाएँ वापस ले ली जाएँगी और किसी तरह का कोई सुरक्षा कवर भी नहीं दिया जाएगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर सरकार की ओर से उन्हें किसी भी तरह की अन्य कोई सुविधा उपलब्ध कराई गई है तो वे भी तत्काल प्रभाव से भी वापस ले ली गई हैं।
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हुर्रियत के चेयरमैन मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने प्रशासन के इस फ़ैसले पर कहा कि सुरक्षा वापस लेना उनके लिए ग़ैर ज़रूरी मुद्दा है। फ़ारूक़ ने कहा कि अलगाववादियों को दी जा रही सुरक्षा का राजनीतिकरण किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि हुर्रियत नेताओं ने कभी भी सुरक्षा की माँग नहीं की थी। मीरवाइज़ के पिता मौलवी मुहम्मद फ़ारूक़ और चाचा की 1990 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
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- पुलवामा हमले के बाद शुक्रवार को कश्मीर के दौरे पर आए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि पाकिस्तान से और आईएसआई से पैसा वाले लोगों को दी गई सुरक्षा की समीक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के कुछ तत्वों के आईएसआई और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध हैं।
1993 में कश्मीर के कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस की नींव रखी थी। 2003 में हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस में टूट हो चुकी है, जब सैय्यद अली शाह गिलानी और मीरवाइज़ अलग हो गए थे।