वैसे तो दिल्ली के शाहीन बाग़ जैसा प्रदर्शन पूरे देश को छोड़िए पंजाब में भी कई जगहों पर चल रहा है, लेकिन राज्य में संगरूर के मलेरकोटला का ‘शाहीन बाग़’ ख़ास है। ख़ास इसलिए कि दिल्ली के शाहीन बाग़ वाले प्रदर्शन की तरह है। दिल्ली से 312 किलोमीटर दूर मलेरकोटला के प्रदर्शन में काफ़ी समानताएँ हैं। दिल्ली में प्रदर्शन 50 दिनों से जारी है तो मलेरकोटला में 28 दिनों से। शाहीन बाग़ की तरह ही यहाँ भी महिलाएँ बुर्के और घूँघट में हैं। कड़कड़ाती ठंड में भी डटी रही हैं। शालीनता से प्रदर्शन। न तो हिंसा और न ही उकसावे की भाषा। मलेरकोटला में इन दिनों ज़्यादातर महिलाओं के सिरों पर बसंती दुपट्टा मिलेगा और पुरुषों के सिर पर बसंती रंग की पगड़ी। बता दें कि बसंती रंग अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह को बहुत प्रिय था और उनका प्रतीक माना जाता है।
इस बीच मलेरकोटला में रविवार को अद्भुत दृश्य था। हज़ारों की तादाद में महिलाओं ने सिर पर बसंती दुपट्टा पहनकर 3 किलोमीटर लंबा रोष जुलूस निकाला। सीएए के विरोध के साथ-साथ मलेरकोटला अमन और सद्भाव तथा हिंदू-मुसलिम -सिख-ईसाई एकता की भी नई मिसाल प्रस्तुत कर रहा है। पंजाब में सीएए के एकजुट विरोध ने यह नई नजीर भी कायम कर दी है।
मलेरकोटला के 'शाहीन बाग़' के संचालन के लिए बाकायदा ज्वाइंट एक्शन कमेटी बनी हुई है और उसी के बैनर तले, दिल्ली के शाहीन बाग़ की तर्ज पर सब कुछ हो रहा है। मलेरकोटला में हर रोज़ हज़ारों की तादाद में महिलाएँ सड़कों पर जुलूस निकाल विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। यह चंद महिलाओं से शुरू हुआ था लेकिन अब इस काफिले में हज़ारों की संख्या रहती है।
मलेरकोटला प्रदर्शन में लगातार शामिल रहीं पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की छात्रा नाजिया ख़ान कहती हैं, "हुकूमत को जान लेना चाहिए कि शाहीन बाग़ महज दिल्ली में ही नहीं है बल्कि और भी कई जगह बन गए हैं। सीएए के विरोध में सब समुदाय के लोग मलेरकोटला में जुट रहे हैं।"
मलेरकोटला की रहने वालीं 60 वर्षीया नुसरत के मुताबिक़, "पहली बार मुसलमान महिलाएँ इस तरह घर से बाहर आकर धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। यह हमारे मान-सम्मान और वजूद का सवाल है। पंजाब के कोने-कोने से लोग आकर हमारा साथ दे रहे हैं तो हमें लगता है कि केंद्र की सरकार बेशक हमें पराया समझे लेकिन इस राज्य के लोग अपने महान गुरुओं के फलसफे को नहीं भूले हैं कि मजलूम होते लोगों का साथ देना सबसे बड़ा मज़हब है।"
मलेरकोटला की 29 साल की परवीन अंसारी कहती हैं,
“
मलेरकोटला से दशम गुरु के साहिबजादों की कुर्बानी के ख़िलाफ़ पुरजोर आवाज़ उठी थी। अब सरकारी शह वाली असहिष्णुता के ख़िलाफ़ उठ रही है। शहीद भगत सिंह हमारे महानायक हैं। इसलिए हमने उनकी कुर्बानी का प्रतीक बसंती दुपट्टा पहन लिया है।
परवीन अंसारी, मलेरकोटला में धरने पर बैठीं महिला
ज्वाइंट एक्शन कमेटी के संयोजक नदीम अनवर के अनुसार, "मलेरकोटला के सरहिंद गेट पर हमारा स्थाई धरना जारी है। महिलाएँ प्रतिदिन सुबह से लेकर रात साढ़े आठ बजे तक धरने पर बैठती हैं। रात को वहाँ कोई नहीं होता लेकिन हमारे टेंट ज्यों के त्यों खड़े रहते हैं।" प्रदर्शनकारियों के हाथों में भगत सिंह की तसवीरें होती हैं। भारतीय किसान यूनियन की महिला अध्यक्ष हरिंदर कौर बिंदु कहती हैं, "पंजाब के सभी समुदायों के बेशुमार लोग दिल्ली के शाहीन बाग़ की धरनाकारी महिलाओं के समर्थन में आगे आ रहे हैं। मलेरकोटला में भी शाहीन बाग़ बन गया है।"
मानसा की एक महिला बलजीत कौर कहती हैं, ‘जब-जब जब राजनेता देश को धर्म या जाति के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं तब-तब महिलाएँ आगे आकर उनके मंसूबे रोकती हैं। इसीलिए केंद्र सरकार की सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ हम यहाँ प्रदर्शन में बैठी महिलाओं के समर्थन में उतरे हैं।’
पंजाब खेत मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह सीवेवाला कहते हैं, ‘मोदी सरकार धर्म के आधार पर देश में नफरत फैला रही है, जो हमें किसी भी क़ीमत पर मंज़ूर नहीं और इसीलिए हमारी महिलाओं ने इसके ख़िलाफ़ सामने आकर रोष प्रदर्शन करने का फ़ैसला किया है।"
इस सिलसिले में चंडीगढ़ में बड़ी तादाद में प्रगतिशील लेखकों और बुद्धिजीवियों का विरोध प्रदर्शन भी महत्वपूर्ण है। जन आंदोलनों के गढ़ माने जाने वाले मालवा इलाक़े में 'संविधान बचाओ मंच' ने प्रदर्शन के समर्थन में बड़ी मुहिम शुरू की है।
प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर सुखदेव सिंह सिरसा कहते हैं, "केंद्र के जनविरोधी क़ानूनों के ख़िलाफ़ मलेरकोटला जैसे 'शाहीन बाग़' पंजाब के हर शहर-कस्बे में बनाए जाने की दरकार है ताकि सरकार को पता चल सके कि उसके फ़ैसलों का अंधा समर्थन ही नहीं होता बल्कि विरोध भी होता है।’