शिवपाल सिंह यादव क्या यूपी में बीजेपी के नये संकटमोचक होंगे क्या वे यूपी में डूबती बीजेपी को बचाएँगे क्या शिवपाल मायावती और अखिलेश यादव के संभावित गठबंधन की काट होंगे ये सवाल आज सुबह से ही मेरे मन में उछल-उछल कर शोर मचा रहे हैं। कह रहे है कि शिवपाल के लिए अपने अपमान का बदला लेने का वक़्त आ गया है। वो अपने भतीजे अखिलेश को भूले नहीं है जिसने यूपी चुनाव के ठीक पहले चाचा को पैदल कर दिया। उन चाचा को जो अब तक बडे भाई मुलायम सिंह यादव के हनुमान बने हुए थे। राज्य में मुलायम और अखिलेश यादव के बाद सबसे पावरफुल नेता थे। उनकी तूती बोलती थी। उनका कहा पत्थर की लकीर था। पर भतीजे ने ऐसा धोबीपाट मारा कि चाचा चारों खाने चित हो गए। अपनी हैसियत बचाने के लिए छटपटाने लगे। उनकी हालत जल बिन मछली की हो गई। ऐसे में पिछले दिनों जब ये अफ़वाह उड़ी कि बीजेपी से वे गलबहिया कर रहे हैं तो लोगों को हैरानी नहीं हुई ।
सवाल उठा कि क्या शिवपाल सिंह यादव अब भतीजे को लँगड़ी मारेंगे उस भतीजे को जिसको उन्होंने पाल-पोस कर बड़ा किया। राजनीति के गुर सिखाए। अखिलेश का बचपन शिवपाल के घर पर ही गुज़रता था।
पर राजनीति बहुत कुत्ती चीज़ होती है, वह न तो रक्त का बंधन देखती है न ही वो दूध का हक़ अदा करती है। वह मासूम नहीं, मांसल होती है। जहाँ भावनाएँ दुबक कर रहती है। जो भावना में बहा, वह मारा गया।
शिवपाल पर बीजेपी मेहरबान क्यों
आज शिवपाल की ख़बर इसलिए हिलोरें मार रही है कि यूपी की बीजेपी सरकार ने सबकुछ किनारे कर शिवपाल को वह बंगला अलॉट कर दिया जो अब तक मायावती के नाम था। यानी मायावती से छीन कर शिवपाल को दिया गया। बंगला बड़ा है। अमूमन मुख्यमंत्री के पद को दिया जाता है। शिवपाल भले ही सुपर सीएम रहे हों पर सीएम कभी नहीं रहे। एक अदने-से विधायक है। उस हैसियत में उन्हे यह बंगला नहीं मिलना चाहिए। पर मिला। इसलिए अफ़वाहों का बाज़ार गरम हो गया। अटकलों को पर निकल आए। बतकही होने लगी। आख़िर शिवपाल पर इतनी मेहरबानी क्यों राजनीति में इश्क की तरह कुछ भी बेवजह नहीं होता। मेहरबानी अनायास नहीं है। अमित शाह और मोदी हर चीज़ की क़ीमत वसूलते हैं। यह ख़ैरात नहीं बाँटते। एक हाथ देते हैं और दूसरे हाथ लेते हैं। सवाल उठता है, क्या दे रहे हैं और क्या ले रहे हैं इस लेनदेन का बिज़नेस क्या हैउत्तर प्रदेश में बीजेपी को पटखनी
यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती और अखिलेश दोनों की पार्टियों हवा हो गई। मायावती को मिली 19 सीटें, अखिलेश के हाथ लगीं 47! बीजेपी को मिलीं 325। मायावती के बारे में प्रचार हुआ कि वह यूपी में ख़त्म हो गई। अखिलेश भी कमजोर हुए, यह कहा गया। कैराना, गोरखपुर और फूलपुर में दोनों नेताओं ने हाथ मिलाए। बीजेपी विधानसभा की बंपर जीत के बाद साफ हो गई। तीनों जगह हारी। गोरखपुर मुख्यमंत्री का गृह ज़िला है। फूलपुर उपमुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र था। दोनों जगह साफ हो गए। कैराना में हिंदुओं के पलायन का भूत खड़ा किया गया था। माहौल को सांप्रदायिक करने की कोशिश की गई थी। विधानसभा में फ़ायदा भी हुआ। पर लोकसभा उपचुनावों में माया-अखिलेश की जोड़ी ने पटक दिया। बीजेपी उलटी साँस लेने लगी। इस जीत ने राजनीतिक वातावरण बदला। यह बात हवा मे फैली कि यूपी में बीजेपी और मोदी को पटकनी दी जा सकती हैं बशर्ते दोनों दल साथ आएँ। 2014 लोकसभा में बीजेपी को अपना दल की 2 सीटों के साथ कुल 73 सीटें मिली थीं।
इन सीटों का बदौलत मोदी की ताजपोशी का रास्ता निकला। बीजेपी को 282 सीटें मिलीं जिनमें सबसे बडा योगदान यूपी का था। विपक्ष को समझ में आया कि मोदी को रोकना है तो यूपी में ही ज़ोर लगाना होगा। फिर लोग इस कोशिश में लग गए कि माया अखिलेश को साथ लाया जाए।
तमाम अफ़वाहों के बावजूद यूपी में मायावती का वोट अपनी जगह पर स्थिर है। उनको सीटें कम मिलीं पर वोट प्रतिशत कम नहीं है। 18 सीट के बाद भी मायावती को 23% वोट मिले जबकि अखिलेश को तक़रीबन 22%। इन दोनों को मिला दिया जाए तो यह आँकड़ा होता है 45% का। बीजेपी को विधानसभा चुनाव में तक़रीबन 41% वोट मिले। ज़ाहिर है अगर माया, अखिलेश साथ आते हैं, एकसाथ लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं तो गोरखपुर, फूलपुर और कैराना की तरह इतिहास अपने को दोहरा सकता है और बीजेपी सहयोगियों को मिला कर भी यूपी की आधी सीटों से भी कम पर सिमट सकती है। यूपी के जानकार बताते है कि बीजेपी को 20 सीट पाने के लिए नाकों चने चबाने होंगे। ख़ुद बीजेपी के कई नेता मुझसे कह चुके हैं कि माया-अखिलेश का गठबंधन बीजेपी के लिए प्राणघातक साबित होगा।
इसका असर यह होगा कि बीजेपी लोकसभा में बहुमत से बहुत पीछे रह जाएगी। अगर वह 200 का आँकड़ा भी छू ले तो हैरानी होगी। यानी मोदी की कुर्सी को भारी ख़तरा होगा। वह दुबारा प्रधानमंत्री बनेंगे, इसपर प्रश्नचिह्न लग जाएगा।
शिवपाल को बंगला देने की क़वायद इस संदर्भ में काफी अहम हो जाती है।
चुनाव जीतने का नायाब फ़ॉर्मूला
मोदी और अमित शाह का चुनाव जीतने का एक नायाब फ़ॉर्मूला है। वे विरोधी पार्टियों के वोट काटने के लिए डमी पार्टियाँ और डमी उम्मीदवार भारी संख्या में खड़े करते हैं। इनको बीजेपी/मोदी//अमित शाह की तरफ से ख़ूब पैसा और संसाधन मुहैया कराया जाता है। ये लोग बीजेपी की तरफ से पूरी ताक़त से चुनाव लड़ते हैं। इनका काम सिर्फ़ इतना होता है कि ये विरोधी के 3% से 5% तक वोट काट लें। गुजरात में इस मॉडल को हर चुनाव में भुनाया गया। ख़ासतौर से काँटे के चुनाव में ये उपाय काफी फ़ायदेमंद होता है। यूपी में शिवपाल की भूमिका बीजेपी के डमी की होगी। आने वाले समय में शिवपाल के संगठन को जमकर आर्थिक मदद दी जाएगी उनका ख़ूब प्रचार होगा। हर जगह वे दिखेंगे। उनका पार्टी या मोर्चा दिखेगा। वे कहेंगे तो यह कि मैं बीजेपी को हराने के लिए मैदान में उतरा हूँ पर वोट काटेंगे बीजेपी-विरोधी पार्टियों का।अखिलेश को लगेगी चोट
शिवपाल लंबे समय तक समाजवादी पार्टी में रहे हैं। वे संगठन के आदमी हैं। संगठन पर उनकी अच्छी पकड़ रही है। भले ही आज पार्टी पर अखिलेश का क़ब्ज़ा हो, शिवपाल पूरे प्रदेश में हर कोने में बैठे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को अच्छी तरह से जानते हैं। वे उनको अपनी तरफ लुभाने की पूरी कोशिश करेंगे। ख़ासतौर पर टिकट वितरण से निराश नेताओं और कार्यकर्ताओं पर डोरे डालेंगे। अगर कुछ लोगों को वे अपने पक्ष में कर पाए तो वे समाजवादी पार्टी को नुक़सान पहुँचाने में कामयाब हो जाएँगे। इससे माया-अखिलेश के गठबंधन को चोट लगेगी ।
बीते दिनों मुलायम सिंह यादव ने छोटे भाई के एक कार्यक्रम में शिरक़त की //cms.satyahindi.com/app/uploads/13-10-18/5bc1c27e48776.jpg