बीजेपी को उसी की शैली में जवाब दे रही हैं तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी। एक टांग से बंगाल जीतने के बाद दोनों टांग से दिल्ली फतह करने के मंसूबे को अंजाम देने की तैयारी में जुट चुकी हैं ममता। मुकुल राय की टीएमसी में वापसी किसी कद्दावर नेता की ‘घर वापसी’ भर नहीं है।
इसकी टाइमिंग को देखें तो यह कांग्रेस से जितिन प्रसाद को तोड़ने का करारा जवाब भी है जिसका साफ संदेश है कि बीजेपी को जवाब देने की हैसियत में कांग्रेस भले ही ना हो, लेकिन तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी जरूर ऐसा कर सकती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनने की इसे शुरुआत कह लीजिए।
ममता बनर्जी के हाथों पश्चिम बंगाल में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी नेतृत्व अपना चेहरा ‘दिखाने लायक’ बनाने की कोशिश में है। इसके लिए वह दूसरे दलों से नेताओं को जोड़ने और सरकार गिराने एवं सरकार बनाने के खेल में सफल होने की कोशिश कर रहा है।
निस्संदेह इसमें कांग्रेस के भीतर संगठनात्मक कमी का भी योगदान है। मगर, बीजेपी अगर कांग्रेस की इस कमी को अपने लिए फलदायी बनाने में जुटी है तो इसकी सबसे बड़ी वजह पश्चिम बंगाल के चुनाव में मोदी-शाह के नेतृत्व की ममता के हाथों करारी पराजय है।
ममता ने दिया करारा जवाब
पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू, राजस्थान में सचिन पायलट और कांग्रेस में G-23 कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष चुनौतियां हैं जिसका हल उन्हें अपने हक में निकालना है। कांग्रेस के भीतर की इस लड़ाई में सबसे बड़ा योगदान बीजेपी का दिख रहा है। बीजेपी अपने मंसूबे में जुटी हुई है। कांग्रेस में तनाव चरम पर है। कांग्रेस की ओर से जो जवाबी कार्रवाई होनी चाहिए थी वह होती नहीं दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस ने वास्तव में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय की तृणमूल में ‘घर वापसी’ कराकर कांग्रेस के राष्ट्रीय उत्तरदायित्व को ही अपने हाथों में लिया है।
महाराष्ट्र में सियासी खेल
बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना को लुभाने में लगी है। एक खोया हुआ प्रदेश फिर से पाने में लगी है। एक तरह से यह ‘भूल-सुधार’ है तो यही बात दूसरे अर्थों में अहंकार को स्वीकार करना भी है। दूसरा पहलू यह है कि कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर जो करारा झटका महाराष्ट्र में बीजेपी को दिया था, उसका असर इतनी जल्द खत्म हो जाएगा और आम चुनाव से पहले खत्म हो जाएगा तो यह भी कहीं न कहीं राष्ट्रीय सियासत में कांग्रेस की कमजोरी के तौर पर देखा जाएगा।
हालांकि अभी महाराष्ट्र की सरकार के बारे में कुछ ठोस बताना सही नहीं होगा, मगर बीजेपी की कोशिश इसी दिशा में दिख रही है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
भगवा मकान भी दरक गया
अब मुकुल राय की अहमियत को थोड़ा समझें। तभी ममता बनर्जी की ओर से उनकी घर वापसी के कदम का महत्व भी महसूस होगा। मुकुल राय बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। मुकुल के बीजेपी में जाते ही बंगाल में पार्टी ने 18 लोकसभा सीटों की बढ़त हासिल कर ली थी। संगठनात्मक रूप से बीजेपी इतनी मजबूत हुई कि लोकसभा में कांग्रेस और लेफ्ट साफ हो गये। उसी जीत का नतीजा था कि बीजेपी ने बंगाल में अपने दम पर सरकार बनाने का सपना देखा। बीजेपी अगर इस सपने में फेल रही तो इसकी वजह भी मुकुल राय ही रहे- अब यह बात समझने में किसी को गफलत नहीं होनी चाहिए।
बीजेपी ने मुकुल राय को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया। विधानसभा चुनाव में शुभेन्दु अधिकारी के तौर पर नए मोहरे की तलाश कर ली। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के 35 विधायक और 3 सांसद तृणमूल कांग्रेस में लौटने का आवेदन कर चुके हैं।
ममता की सियासी उड़ान की संभावनाओं पर देखिए वीडियो-
निश्चित रूप से इस पहल में मुकुल राय पर्दे के पीछे बहुत बड़ी भूमिका में हैं। अभी यह संख्या इतनी नहीं है कि दल बदल विधेयक कानून के तहत आधिकारिक रूप से बगैर सदस्यता खोए दल बदला जा सके।
मुकुल राय से अपेक्षा है कि वह विधायकों की संख्या को 51 और सांसदों की संख्या को 12 के स्तर पर ले जाएं। ये दो अलग-अलग काम हैं जिसे अंजाम देना बहुत मुश्किल है। लेकिन, मुकुल राय में यह क्षमता है और टीएमसी इसे जानती है।
ममता का संदेश
जरा सोचिए कि अगर मुकुल राय को साथ लेकर ममता बनर्जी बीजेपी में दो-तिहाई वाली फूट पैदा करने में कामयाब रहीं तो यह राष्ट्रीय सियासत में कितनी बड़ी घटना होगी। इस घटना के बाद पश्चिम बंगाल में बीजेपी आने वाले आम चुनाव में भी खुद को खड़ा कर पाने की स्थिति नहीं रह जाएगी। इस घटना के बाद ममता बनर्जी राष्ट्रीय सियासत में यह संदेश देती नज़र आएंगी कि ममता है तो मुमकिन है। बीजेपी का सबसे विश्वस्त नारा पलायन कर अगर टीएमसी के पास आ जाता है तो यह राष्ट्रीय सियासत में बहुत बड़े बदलाव की ओर शुरुआत मानी जाएगी।
अभिषेक की भूमिका
टीएमसी ने अभिषेक बनर्जी को पार्टी का महासचिव बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनने या विकल्प देने की तैयारी पहले ही शुरू कर दी है। अभिषेक बनर्जी यह कह चुके हैं कि हर प्रदेश में पार्टी का संगठन इस रूप में खड़ा होगा कि वह विकल्प बनाने वाले प्लेटफॉर्म का हिस्सा रहे। महज कुछ सीटें जीतना पार्टी का मकसद नहीं होगा। मतलब साफ है कि टीएमसी स्थानीय स्तर पर हर राज्य में मजबूत फोर्स के साथ जुड़ने के लिए भी तैयार है।
अपने दम पर भी टीएमसी खुद को खड़ा करने के लिए टटोल रही है। बहुत जल्द देश के 15 प्रदेशों में अपने अध्यक्षों की घोषणा टीएमसी करने जा रही है। राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की नयी टीम भी जल्द सामने आने वाली है। हिन्दी प्रदेशों में खुद को मजबूत करने का लक्ष्य लेकर ये सारे कदम उठाए जा रहे हैं।
महीने भर में टीएमसी खुद को इस स्थिति में ले आना चाहती है कि राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प देने या विकल्प का नेतृत्व करने की भूमिका में सबकी पहली पसंद बनकर दिखाई पड़े। मुकुल राय के टीएमसी में आने के मायने अब बहुत स्पष्ट हो चुके हैं। यह सिर्फ एक नेता की घरवापसी कतई नहीं है।