अब जब कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नामांकन पूरे हो चुके हैं तो यह साफ हो गया है कि इस चुनाव में वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर आमने-सामने हैं। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व ने चुनाव में तटस्थ रहने की बात कही है लेकिन यह तय है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में जीत के लिए गांधी परिवार का समर्थन होना बेहद जरूरी है।
यह माना जा रहा है कि वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के उम्मीदवार हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे बीते कुछ सालों में लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस के चर्चित चेहरे रहे हैं लेकिन फिर भी खड़गे के बारे में कुछ और ज्यादा जानना जरूरी होगा।
80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का बेहद भरोसेमंद माना जाता है।
खड़गे ने छात्र राजनीति से सियासत में पांव रखा और इसके बाद गुलबर्ग शहर कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर अपने राजनीतिक जीवन को आगे बढ़ाया। खड़गे 8 बार कांग्रेस के विधायक रहे। साथ ही लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस के नेता भी रहे। वर्तमान में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं।
तीन बार मुख्यमंत्री बनने से चूके
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, खड़गे तीन बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे। खड़गे साल 1999, 2004 और 2013 में कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थे लेकिन वह मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे। इन तीनों मौकों पर क्रमशः एसएम कृष्णा, धर्म सिंह और सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे।
अगर खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत जाते हैं तो वह दक्षिण से आने वाले छठे ऐसे नेता होंगे जो कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। इससे पहले बी. पट्टाभि सीतारमैया, एन. संजीव रेड्डी, के. कामराज, एस. निजलिंगप्पा और पीवी नरसिम्हा राव कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं।
बताना होगा कि कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 की ओर से पार्टी अध्यक्ष का चुनाव कराए जाने की मांग के बाद कांग्रेस ने चुनाव कार्यक्रम जारी किया था। नामांकन के बाद अब 8 अक्टूबर तक नामांकन वापस लिए जा सकते हैं। एक से ज्यादा उम्मीदवार होने की सूरत में 17 अक्टूबर को वोटिंग होगी और 19 अक्टूबर को मतों की गिनती के साथ ही नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे।
साल 1942 में कर्नाटक के बीदर जिले के वरावट्टी गांव में खड़गे का जन्म एक मजदूर परिवार में हुआ था। कांग्रेस में आने से पहले वह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की पार्टी आरपीआई में भी शामिल हुए थे। खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे कांग्रेस के विधायक हैं और मंत्री भी रह चुके हैं।
गहलोत थे पहली पसंद
खड़गे की बड़ी ताकत उनका दलित समुदाय से आना है। खड़गे को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस दलित समुदाय के लोगों के बीच एक संदेश दे सकती है। हालांकि अगर राजस्थान का घटनाक्रम नहीं हुआ होता तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस हाईकमान की पहली पसंद थे।
खड़गे अगर कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं तो वह दूसरे ऐसे दलित नेता होंगे जो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठेंगे। इससे पहले बिहार से आने वाले दलित नेता जगजीवन राम भी कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। खड़गे कर्नाटक से आने वाले दूसरे ऐसे नेता होंगे जो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठेंगे। उनसे पहले एस. निजलिंगप्पा 1968-69 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।
खड़गे साल 1969 में पहली बार गुलबर्ग शहर कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1972 में विधानसभा का चुनाव लड़ा। इसके बाद वह 8 बार विधायक का चुनाव जीते। साल 1976 में पहली बार उन्हें देवराज उर्स की सरकार में मंत्री बनाया गया था।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, देवराज उर्स ने 1970 के अंत में जब कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी कांग्रेस (यू) बनाई थी तो खड़गे भी उनके साथ गए लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव के बाद वह कांग्रेस में लौट आए। देवराज उर्स ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ मतभेद की वजह से कांग्रेस छोड़ी थी।
खड़गे कर्नाटक में कांग्रेस की कई सरकारों में मंत्री भी रहे और विधानसभा में विपक्ष के नेता भी। इसके अलावा वह कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष जैसे अहम पद पर भी रह चुके हैं। साल 2009 में जब उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता तो वह राष्ट्रीय राजनीति में आए। मनमोहन सिंह की सरकार में उन्होंने श्रम मंत्री रहने के अलावा रेलवे और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी संभाला।
2019 में पहली बार हारे
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मल्लिकार्जुन खड़गे हारे तो यह पहला मौका था जब उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में हार का सामना करना पड़ा। लेकिन पार्टी ने भरोसा जताते हुए उन्हें राज्यसभा का सांसद भी बनाया और इसके बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता जैसे अहम पद पर नियुक्त किया।
मल्लिकार्जुन खड़गे को बेहद विनम्र माना जाता है और वह कभी किसी तरह के राजनीतिक विवादों में नहीं रहे हैं। उन्होंने राजनीति में आने से पहले कानून की पढ़ाई की थी।
चुनौतियों का पहाड़
खड़गे के सामने कांग्रेस को जिंदा करने की चुनौती है। गुजरात और हिमाचल के विधानसभा चुनाव सामने हैं और साल 2023 में 10 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खा चुकी है। अब उसके सामने 2024 का चुनाव करो या मरो वाला है। ऐसे में खड़गे को राहुल गांधी के साथ ही पार्टी के तमाम पदाधिकारियों, नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ कदम से कदम मिलाते हुए कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में जीत दिलानी होगी। इसके साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं से भी तालमेल कायम रखते हुए एक मजबूत फ्रंट बनाने की चुनौती भी खड़गे के सामने है।