राजनीति के तमाम तथाकथित पंडित, ख़बर कूटाई करने वाले कूटनीतिज्ञ तथा ख़बरनवीस, पेड-बैकपेड-बेपेड सर्वे एजेंसियाँ मान रही हैं कि एन-केन-प्रकारेण 23 मई के बाद भी सरकार बीजेपी की ही बनेगी। इस कारण पाँच विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री व नेता आशंकित हैं कि उनकी सरकार गिराने की कोशिश हो सकती है। इनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान के सत्ताधारी दल शामिल हैं।
इन राज्यों की सत्ताधारी पार्टी और इनके सर्वेसर्वा इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस दावे से भी चिंतिति हैं जो उन्होंने 29 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में कोलकाता से 25 किलोमीटर दूर चांदीताला, हुगली में कहा था। इसमें उन्होंने कहा था कि तृणमूल के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं। और लोकसभा चुनाव के बाद वे विधायक पार्टी (तृणमूल ) छोड़ देंगे।
मोदी ने चुनावी सभा में कहा था, ‘दीदी, आप की ज़मीन खिसक चुकी है। देख लेना, मई 23 के बाद चारों तरफ़ कमल खिलेगा। तब आपके भाई आपको छोड़ कर भाग जाएँगे। देख लेना... आज भी, दीदी तुम्हारे 40 विधायक मेरे संपर्क में हैं।’
उनके इस कहे पर तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्षी दलों की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने के लिए विधायकों की ख़रीद-फ़रोख्त कर रहे हैं, जिसकी शिकायत उन्होंने चुनाव आयोग से की है। उन्होंने राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए इस तरह का भाषण देने पर उन पर कार्रवाई करने की माँग की है।
पश्चिम बंगाल की स्थिति
294 सदस्यों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के 211 विधायक हैं। बहुमत के लिए 148 विधायकों की ज़रूरत है। ऐसे में यदि तृणमूल के 40 विधायक पाला बदल कर बीजेपी में चले भी जाते हैं तो भी ममता बनर्जी की सरकार नहीं गिरेगी। क्योंकि तब भी तृणमूल कांग्रेस के पास विधानसभा में बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या से 23 विधायक अधिक रहेंगे। तृणमूल के 211 विधायकों में से यदि दो तिहाई विधायक टूटकर अलग होते हैं, तभी अलग पार्टी की मान्यता मिलेगी। यदि उससे कम विधायक टूटते हैं तो उनकी विधानसभा सदस्यता खतरे में पड़ जायेगी। राज्यपाल के मार्फत भी सत्ता गिराने का खेल नहीं हो सकता है। इसलिए पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार को गिराना आसान नहीं है। लेकिन 23 मई के बाद केन्द्र में यदि फिर से बीजेपी की सरकार बनती है और तृणमूल के 40 विधायक पार्टी छोड़ कर बीजेपी के साथ खड़े हो जाते हैं तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा राज्य सरकार की परेशानी बहुत बढ़ जायेगी।
तमिलनाडु
तमिलनाडु की स्थिति थोड़ी अलग है। वहाँ 234 सदस्यों वाली विधानसभा में अन्ना द्रमुक के 135 विधायक थे। जयललिता के दिवंगत होने के बाद इनमें से 21 विधायक दिनाकरण के खेमे में आ गये। जिससे सरकार अल्पमत में आ गई। लेकिन अन्ना द्रमुक वाले खेमे ने केन्द्र की बीजेपी सरकार और राज्यपाल के सहयोग से दिनाकरण समर्थक 21 विधायकों की सदस्यता ख़त्म कराकर सरकार बचा ली। अब लोकसभा के साथ विधानसभा की 22 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। राज्य में इस बार द्रमुक और कांग्रेस गठबंधन को लोकसभा की अधिक सीटें मिलने की संभावना है। जिन 22 सीटों पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उन पर यदि अन्नाद्रमुक के उम्मीदवार जीतते हैं तब तो सरकार बच जायेगी। यदि द्रमुक और दिनाकरण गुट को अधिक सीटें (22 में से 20 सीटें मिलीं) मिलती हैं, तब तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक सरकार गिर जायेगी और द्रमुक व उसके सहयोगी दल सरकार बनाने की दावेदारी पेश कर देंगे। ऐसे में देखना है कि केन्द्र सरकार फिर से कोई खेल करती है या विधानसभा चुनाव होता है।
कर्नाटक
वरिष्ठ पत्रकार वी. पारसा का कहना है कि केंद्र में 23 मई के बाद यदि बीजेपी सरकार बन जाती है, तो जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन वाली कर्नाटक सरकार गिर सकती है। क्योंकि वहाँ पूर्व मुख्यमंत्री 76 वर्षीय बी.एस. येदियुरप्पा हर हालत में मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। लेकिन एक अड़चन है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने ही बनाये नियम को ताक पर रखकर किस तरह 76 वर्षीय बुजुर्ग येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेंगे, यह देखने लायक होगा। कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटें हैं जिनमें से 224 पर चुनाव होता है और एक नॉमिनेट होता है। राज्य में कांग्रेस तथा जेडीएस गठबंधन सत्ता में है। कांग्रेस विधायकों की संख्या 78, जेडीएस विधायकों की संख्या 37 है। बसपा का एक विधायक भी इनकी तरफ़ है। यानी इनके पास बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या 113 से 3 अधिक है। विपक्षी दल बीजेपी के विधायकों की संख्या 104 है। केपीजेपी का एक तथा एक निर्दलीय विधायक भी विपक्ष में है। वी. पारसा का कहना है कि येदियुरप्पा यदि जेडीएस के 26 विधायक टूटकर अलग पार्टी बनायेंगे, तब दल-बदल क़ानून लागू नहीं होगा। लेकिन उतने विधायक नहीं टूट पा रहे हैं। हो सकता है कि 23 मई के बाद केन्द्र में राजग की सरकार बन गई तब बीजेपी इस दिशा में आक्रामक रणनीति अपनाए।
कांग्रेस के कई केन्द्रीय नेताओं का मानना है कि जिस तरह से कर्नाटक की जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन सरकार के संकट मोचक डी. के. शिवकुमार के यहाँ लगातार ईडी व आयकर के नोटिस भेजे जा रहे हैं। उनके यहाँ कई बार छापे भी पड़े हैं। कई और नेताओं को केन्द्रीय एजेंसियों के मार्फत कार्रवाई कराके डराया, तोड़ा व परेशान किया जा रहा है।
मध्य प्रदेश
बीजेपी महासचिव तथा पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने 9 जनवरी 2019 की शाम को इंदौर में बीजेपी के एक कार्यक्रम में कहा था, ‘यह सरकार (कमलनाथ सरकार) कैसी सरकार है? यह सरकार हमारी कृपा से चल रही है। जिस दिन ऊपर से बॉस का इशारा हो जायेगा ना…’ ‘प्रदेश हमारे हाथ से चला गया, कोई बात नहीं। प्रदेश कभी भी वापस हमारे पास आ जायेगा। जिस दिन दिल्ली वालों को केवल एक छींक आ जायेगी, उसी दिन प्रदेश में हमारी सरकार बन जायेगी’। उनके इस कहे से स्पष्ट है कि बीजेपी मौक़े की तलाश में है। वह मौक़ा 23 मई के बाद केन्द्र में फिर से बीजेपी नीत सरकार बन गई तो आ जायेगा। राज्य के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश महरोत्रा का कहना है कि केन्द्र में फिर से भाजपानीत सरकार बन गई तो मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार में तोड़-फोड़ हो सकती है। सरकार गिर सकती है। राज्य विधानसभा में कुल सीट 230 है। बहुमत के लिए 116 विधायकों की ज़रूरत है। कांग्रेस के विधायकों की संख्या 114 है। बसपा के 2, निर्दलीय 4 तथा सपा का एक विधायक है। बसपा के 2 और 3 निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को है। गुना संसदीय क्षेत्र के बसपा के प्रत्याशी ने कांग्रेस के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करने की घोषणा कर दी है। जिससे जली-भुनी बसपा सुप्रीमो मायावती ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार से समर्थन वापसी के बारे में विचार करने की धमकी दी है।
ऐसे में बीजेपी यदि कांग्रेस के 70 विधायकों को तोड़ कर उनका समर्थन ले, तभी सरकार बना सकती है जो कि आसान नहीं है। लेकिन 15 से 20 विधायकों को तोड़ कर कांग्रेस सरकार अस्थिर करने, बीजेपी की सरकार बनवाने की कोशिश तो हो ही सकती है।
राजस्थान
राजस्थान में भी सरकार गिराये जाने का भय है। 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस और उसके समर्थक दलों के विधायकों की संख्या 121 है। यह बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या से 20 अधिक है। इसमें कांग्रेस के विधायकों की संख्या पहले 100 थी, लेकिन 12 निर्दलीय विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये, तो संख्या 112 हो गई। बसपा के 6, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2, रालोद का 1 विधायक कांग्रेस की गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे हैं। विपक्ष के विधायकों की संख्या 79 है। जिनमें से बीजेपी के 73, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के 3, माकपा के 2 और निर्दलीय 1 विधायक हैं। 12 निर्दलीय विधायकों में से यदि 10 विधायक अलग होकर बीजेपी के समर्थन में बग़ावत करते हैं और मायावती के कहने पर बसपा 6 विधायक समर्थन वापस लेती है, तब भी गहलोत सरकार नहीं गिरेगी। लेकिन अस्थिर तो हो ही जायेगी। यदि कांग्रेस के लगभग 25 विधायक बग़ावत कर दें तब स्थिति ख़राब हो जायेगी।
इस बारे में गुजरात में मंत्री रहे और कांग्रेस महासचिव शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि ये दोनों (मोदी और शाह) जुगल जोड़ी सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है। किसी को शक हो तो आडवाणी जी की तरफ़ देख ले।