दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप प्रमुख अरविन्द केजरीवाल कथित दिल्ली शराब घोटाले में अंतरिम जमानत पर कुछ समय के लिए अदालत के आदेश पर बाहर आए हैं। वो आरोप से बरी नहीं हुए हैं। लेकिन आप ने जिस तरह उनके बाहर आने को पेश किया है, उससे लगता है कि पार्टी उनका इस्तेमाल इस कम समय में अधिकतम करना चाहती है। उनके पहले दिन के कार्यक्रम से ही यह संकेत मिल गया है। वो शुक्रवार रात जेल से बाहर आए। शनिवार सुबह वो सबसे पहले खुद को सबसे बड़ा हनुमान भक्त बताते हुए दिल्ली के कनॉट प्लेस में हनुमान मंदिर, पहुंचे। दोपहर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। दोपहर बाद उनके दिल्ली में तीन रोड शो हैं। एक दिन में तीन रोड शो तो अत्यंत मेहनती प्रधानमंत्री मोदी भी नहीं कर पाते हैं। मोदी के अभी तक अधिकतम दो रोड शो हुए हैं। बहरहाल, यह तो कुछ तथ्य थे, जो आपको बताए गए लेकिन मूल मुद्दा वही है कि आम आदमी पार्टी को इसका कितना फायदा-नुकसान हो सकता है।
केजरीवाल के अंदर जाने और बाहर आने तक दिल्ली में राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं। भाजपा ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए उनके प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली को भाजपा में शामिल किया है। हालांकि भाजपा को इसका कितना फायदा मिलेगा, इसका जवाब 4 जून को मिलेगा। लेकिन जनता में इससे एक संदेश तो जाता ही है। लवली ही वो शख्स थे, जिन्होंने केजरीवाल से समझौते का विरोध किया था। केजरीवाल के पीछे जो एक बड़ा घटनाक्रम दिल्ली में हुआ, वो कांग्रेस का कन्हैया कुमार को लाना। कन्हैया ने पहले दिन से ही केजरीवाल की तारीफ की और उनके घर जाकर उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल से मुलाकात की। इससे क्या संकेत मिलता है, वो ये केजरीवाल दिल्ली के लिए जरूरी है और दिल्ली के मतदाताओं पर उनकी पकड़ का कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया कुमार ने भी स्वीकार किया है। यही है केजरीवाल की ताकत। लेकिन जैसे ही पंजाब की बात आती है तो कांग्रेस और आप के संबंध दो नाव, दो किनारा नजर आते हैं। यही मुश्किल दोनों तरफ है।
नजर इसी पर है कि केजरीवाल दिल्ली में चुनाव अभियान को कितना समय देते हैं और पंजाब में कितना वक्त देते हैं। गुजरात में सारी सीटों पर चुनाव हो चुका है। इसलिए वहां तो जाना नहीं है। लेकिन क्या इंडिया गठबंधन केजरीवाल का इस्तेमाल देश के बाकी किसी राज्य में करना चाहेगी। जिस तरह से राहुल और अखिलेश ने शुक्रवार को कन्नौज में मंच शेयर किया, उससे जनता में अच्छा संदेश गया है। ऐसे में अब केजरीवाल का कितना इस्तेमाल होगा, यह देखना है। दिल्ली में 25 मई को और पंजाब में 1 जून को वोट डाले जाएंगे। केजरीवाल को 1 जून तक की अंतरिम जमानत मिली हुई है। आप हरियाणा में एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। हरियाणा में 25 मई को मतदान है। इस शेड्यूल से लगता यही है कि आप केजरीवाल का इस्तेमाल दिल्ली में ही ज्यादा करना चाहेगी।
केजरीवाल अगर समझदार होंगे तो दिल्ली में प्रभावशाली प्रचार अभियान चलाकर सभी सात सीटें भाजपा से छीनने में कांग्रेस की मदद कर सकते हैं और कांग्रेस की मदद ले सकते हैं। दरअसल, पंजाब से भी बड़ी चुनौती दिल्ली है। क्योंकि पंजाब में भाजपा कभी मुख्य पार्टी रही ही नहीं है। वो सिर्फ अकालियों के सहारे से वहां आगे बढ़ी है। आप के लिए दिल्ली की लोकसभा सीटें चुनौती हैं। अभी का प्रचार और उसका नतीजा अगले विधानसभा चुनाव तक काम करेगा। 2014 के चुनावों में, दिल्ली में भाजपा को 46.4% वोट मिले, जबकि AAP को 32.9% और कांग्रेस को 15.1% वोट मिले। 2019 के चुनावों में भाजपा ने आप और कांग्रेस के लिए बहुत कम जगह छोड़ी, 56% वोट हासिल किए, कांग्रेस को 23% और AAP को 18% वोट मिले थे। दोनों चुनावों में भाजपा ने सभी सात सीटें जीतीं। आंकड़े बता रहे हैं कि दिल्ली में भाजपा को रोकना आप और कांग्रेस का असली लक्ष्य होना चाहिए।
दिल्ली में अभी तक दोनों पार्टियों का सशक्त प्रचार अभियान सामने नहीं आया है। यहां तक की उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ रहे कन्हैया कुमार के साथ आप कार्यकर्ता उस तरह नहीं जुटा है, जिस तरह वो अपनी पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार कर रहे हैं। हालांकि आप और कांग्रेस की ओर से दावा किया जा रहा है कि दोनों दलों की एक समन्वय समिति ने अब यह सुनिश्चित करने के लिए एक रूपरेखा बनाई है कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच नियमित बातचीत हो और प्रचार के लिए कार्यक्रम तैयार किए जाएं। विधायकों और पार्षदों को भी मतदाताओं तक पहुंचने में उम्मीदवारों की सहायता करने के लिए कहा गया है। मतदान में सिर्फ 15 दिन बचे हैं। दोनों ही दलों के नेता और कार्यकर्ता अभी करो या मरो के अंदाज में नहीं आ पाए हैं। केजरीवाल अगर दिल्ली पर फोकस करते हैं तो शायद कुछ बात बन जाए।
केजरीवाल उन सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को झोंकेंगे, जहां आप चुनाव लड़ रही है, जबकि उन क्षेत्रों में टकराव को कम करने की कोशिश करेंगे जहां कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। क्योंकि कांग्रेस जिन तीन सीटों पर लड़ रही है वहां आप सक्रिय नहीं हो रही है। हालांकि यह एक मुश्किल काम हो सकता है क्योंकि कांग्रेस में केजरीवाल की पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर खुशी का माहौल नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि आप कार्यकर्ता जीजान से तीनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की मदद करें।
दिल्ली में आप और कांग्रेस का चुनावी गठजोड़ तभी कारगर है जो दोनों पार्टियों का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हो। आप और कांग्रेस के बीच पिछले मनमुटाव को देखते हुए ऐसा नहीं हो पा रहा है। केजरीवाल अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने में भूमिका निभा सकते हैं जो उनके जेल जाने से ठंडे हो गए थे। दिल्ली में पिछले दिनों मुस्लिम मतदाताओं की आप को लेकर नाराजगी दिखी थी लेकिन कांग्रेस से गठबंधन के बाद वो नाराजगी खत्म हुई है। मुस्लिम मतदाता अब इस गठबंधन के लिए वोट कर सकते हैं। लेकिन यही बात अन्य मतदाताओं के लिए आप नहीं कह सकती। इसलिए दिल्ली को लेकर इन 15 दिनों में अगर केजरीवाल मेहनत कर लें तो आसानी से भाजपा के किले में सेंध लगा सकते हैं।