केजरीवाल प़ॉलिटिक्स: केंद्र की रणनीति को कितना साध पाएंगे एलजी वी.के. सक्सेना

08:13 pm Jun 02, 2022 | सत्य ब्यूरो

दिल्ली के उप राज्यपाल (एलजी) ने 18 मई को इस्तीफा दे दिया। उनका नाम अनिल बैजल था। उनके इस्तीफे की खबर में यही बताया गया था कि वो व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दे रहे हैं। इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि आखिर अनिल बैजल ने इस्तीफा क्यों दिया था। 23 मई को केंद्र ने  घोषणा की कि विनय कुमार सक्सेना दिल्ली के नए एलजी होंगे। 26 मई को सक्सेना ने पद संभाल लिया। पद संभालने के एक हफ्ते बाद 1 जून से इस सवाल का जवाब आने लगा कि आखिर अनिल बैजल ने एलजी पद से इस्तीफा क्यों दिया था। दिल्ली के सीएम केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं से अब केंद्र सरकार भी घबराने जैसी हालत में है। 

दिल्ली के नए एलजी विनय कुमार सक्सेना ने 1 जून को दिल्ली जल बोर्ड की बैठक बुला ली। उन्होंने अधिकारियों को कुछ निर्देश दिए और कुछ आदेश दिए। आम आदमी पार्टी की नेता और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की खास विधायक में शुमार आतिशी मलेरना ने फौरन बयान देकर एलजी सक्सेना को सावधान किया। आतिशी ने कहा कि एलजी दिल्ली सरकार के कामकाज में दखल न डालें। आतिशी ने उन्हें बयान के जरिए बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दिल्ली के एलजी के पास जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस का सीधा नियंत्रण होगा लेकिन इसके अलावा दिल्ली सरकार के पास सारे विभाग और अधिकार होंगे। एलजी को दिल्ली जल बोर्ड की बैठक बुलाने और आदेश देने का अधिकार नहीं है। 

 पूर्व एलजी अनिल बैजल ने जब दिल्ली की कुर्सी संभाली थी, तो कुछ दिन तक उनकी केजरीवाल के साथ रस्साकशी चली। फिर दोनों अपना-अपना काम करने लगे और शांति स्थापित हो गई। कभी किसी विवाद की चर्चा सामने नहीं आई। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। केंद्र सरकार को जब केजरीवाल पर दबाव बनाने की जरूरत महसूस हुई तो अनिल बैजल वो दबाव डिलीवर नहीं कर सके।

नजीब जंग का इस्तेमाल

बीजेपी की 2014 में केंद्र में सरकार आ गई। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग थे। 2015 में केंद्र में बदले हालात में नजीब जंग ने केजरीवाल सरकार पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। तब तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जारी नहीं हुए थे। नजीब जंग ने दिल्ली सरका को निर्देश दिए कि जमीन, पुलिस और पब्लिक आर्डर से जुड़ी फाइलें उनके पास भेजी जाएं। दिल्ली सरकार उन पर कोई फैसला नहीं ले। मई में जब शकुंतला गैमलिन को दिल्ली का चीफ सेक्रेटरी बनाया तो केजरीवाल ने विरोध किया। नजीब जंग ने दिल्ली सरकार में तमाम अफसरों की नियुक्तियां रद्द कर दीं। मामला इतना बढ़ा की दिल्ली सरकार अदालत में चली गई। नजीब जंग ने भी जब एक सीमा के बाद केंद्र के आदेशों की केजरीवाल के खिलाफ अनदेखी तो 2016 में केंद्र सरकार नजीब जंग की जगह अनिल बैजल को ले आई। 

आज नजीब किसी भी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं। अक्सर केंद्र सरकार की कई नीतियों पर लेख लिखकर या बयान देकर असहमति जताते रहते हैं। देखना है कि एलजी सक्सेना कितना समय काटते हैं। फिर से दोहरा दें कि इस सारी उठापटक के बीच केजरीवाल की पार्टी दिल्ली के दो चुनाव जीत चुकी है।

लोकपाल के लिए और करप्शन के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन के दम पर केजरीवाल और आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता में आए और दो बार चुनाव जीता। अभी तक सब ठीक था। हाल ही में आम आदमी पार्टी ने पंजाब विधानसभा चुनाव जीत लिया। इस जीत का भारत ही नहीं विदेशों में बड़ा संदेश गया। पंजाब चुनाव में न सिर्फ बीजेपी ढेर हुई, बल्कि उसकी पूर्व की सहयोग पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी धूल चाट गई। कांग्रेस ही दूसरे नंबर पर आई। 

केजरीवाल ने अब गुजरात, हिमाचल और हरियाणा विधानसभा के लिए आप का मिशन स्टार्ट कर दिया है। तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है। हरियाणा का चुनाव 2024 में होगा लेकिन गुजरात और हिमाचल के चुनाव अगले कुछ महीनों में होने हैं। दोनों ही राज्यों में केजरीवाल ने कई सफल रैलियां करके अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। बीजेपी इससे चौकन्नी है। गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार खुद संभाला हुआ है। हिमाचल में पीएम दो दिन पहले गरीब कल्याण सम्मेलन करके आए हैं। गुजरात पीएम का अपना राज्य है। गुजरात में बीजेपी को कुछ भी करना पड़े, वो इसे खोना नहीं चाहती। गुजरात में बीजेपी की पराजय का मतलब होगा, उसका बड़ा राजनीतिक संदेश जाना। इसी तरह हिमाचल में अगर बीजेपी हारती है और आप की सरकार आती है तो पंजाब के बाद दूसरी जीत से केजरीवाल और आप और भी मजबूत तरीके से स्थापित हो जाएंगे। सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी को एक तरफ रखकर केजरीवाल ने 6 जून को गुजरात के मेहसाणा में तिरंगा यात्रा निकालने की घोषणा कर दी है। संकेत साफ है, केंद्र कुछ भी कर ले, आम आदमी पार्टी गुजरात में कुछ गुल खिलाकर रहेगी।

यही वजह है कि जिस कांग्रेस को आम आदमी पार्टी ने बुरी तरह कमजोर किया, बीजेपी उसे जानती है। वो वक्त रहते केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से निपटना चाहती है। हाल ही में ईडी ने जिस तरह केजरीवाल के खासमखास मंत्री सत्येंद्र जैन को गिरफ्तार किया है, वो विवादास्पद हो गया है। जैन हिमाचल के चुनाव प्रभारी भी हैं। पिछले कई वर्षों से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। लेकिन अब अचानक ही सत्येंद्र जैन को गिरफ्तार कर लिया गया है। केजरीवाल ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आशंका जताई है कि गिरफ्तारी में अब अगला नंबर उनके डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और उसके बाद उनका नंबर है।

गवर्नरों का इस्तेमाल

देश में विपक्ष शासित राज्यों में केंद्र द्वारा गवर्नरों का इस्तेमाल आम बात है। कभी यह आरोप कांग्रेस पर लगा था। लेकिन अब बीजेपी शासित केंद्र सरकार पर यह आरोप कई राज्यों के मुख्यमंत्री तक लगा रहे हैं। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना तमिलनाडु आदि में मुख्यमंत्री और वहां के राज्यपालों में तनातनी सामने आ  चुकी है। पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर ममता बनर्जी की नाक में दम कर दिया है। तमिलनाडु केंद्र पर गवर्नर के जरिए शिकंजा कसने के आरोप लगातार लगा रहा है। तेलंगाना के सीएम ने सीधे पीएम मोदी से युद्ध छेड़ रखा है। महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे जब तब गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को लेकर कसमसाते रहते हैं। 

पुड्डूचेरी में पूर्व सीएम नारायणसामी को रास्ते पर लाने के लिए केंद्र ने तत्कालीन एलजी किरण बेदी का जमकर इस्तेमाल किया था

पुड्डुचेरी का मामला दिलचस्प है। वहां किरण बेदी को एलजी बनाकर भेजा गया था। उस समय वहां मुख्यमंत्री नारायणसामी थे। किरण बेदी ने नारायणसामी की सरकार का चलना मुश्किल कर दिया था। केंद्र सरकार के हुक्मनामों को लागू करने के लिए किरण बेदी पर कई बार संवैधानिक सीमाओं के लांघने के आरोप तक लगे। जून 2017 में सीएम नारायणसामी को सार्वजनिक बयान देना पड़ा था कि किरण बेदी ने सरकार चलाना मुश्किल कर दिया है। वो सीएम के काम में दखल न दें। किरण बेदी पर सरकारी फाइलों को रोकने का आरोप लगा। मुख्यमंत्री को फरवरी 2019 में राजभवन के सामने पांच दिनों तक धरना देना पड़ा। आखिरकार पुड्डुचेरी विधानसभा का चुनाव आ गया। केंद्र ने चुनाव से पहले किरण बेदी को वहां से चलता कर दिया। 2022 में बीजेपी की सत्ता में वापसी तो नहीं हुई। कांग्रेस ने वहां क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर सरकार बनाई। वहां अब एलजी का काम डॉ तिमिलसाई सुंदरराजन को सौंपा गया है।