जेडीयू फिर से कांग्रेस से नाखुश नज़र आ रहा है। इंडिया गठबंधन में फ़ैसले लेने में देरी को लेकर। ऐसी देरी के लिए कांग्रेस के तो पहले पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव में फँसे होने का हवाला दिया जा रहा था, लेकिन अब आख़िर वो वजह क्या है? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का शनिवार को बयान आया कि प्रमुख पदों के बारे में निर्णय लेने के लिए इंडिया गठबंधन 10 से 15 दिनों में बैठक करेगा। यह बात जेडीयू को पसंद नहीं आयी है। समझा जाता है कि जेडीयू अपने पार्टी प्रमुख और बिहार के सीएम नीतीश को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाने के लिए जोर लगा रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शनिवार को कहा था कि अगले 10 से 15 दिनों में इंडिया गठबंधन के संयोजक का नाम तय हो जाएगा। उन्होंने कहा था कि इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के साथ बैठक कर इसका फ़ैसला लिया जाएगा। सवाल पर उन्होंने कहा कि संयोजक का सवाल कौन बनेगा करोड़पति जैसा है।
इसके साथ ही खड़गे ने कहा था, "हमने 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' से जुड़ने के लिए इंडिया गठबंधन के नेताओं, विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के मित्र दलों और सिविल सोसाइटी को आमंत्रित किया है। यात्रा के दौरान उन सभी लोगों से भेंट होगी और विचार-विमर्श किया जाएगा।"
खड़गे के बयान के बाद ही जेडीयू के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी ने द इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि कांग्रेस प्रमुख का बयान निराशाजनक था। उन्होंने दावा किया कि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से आगे निकलने के लिए इंडिया गठबंधन के पास समय ख़त्म होता जा रहा है। उन्होंने कहा, 'जिस तरह से कांग्रेस प्रमुख ने शनिवार को इस पर मीडिया के सवालों का जवाब दिया, वह हमें अच्छा नहीं लगा। हमारे पास समय और विचार ख़त्म होते जा रहे हैं। हमारे पास अभी भी संभलने का समय है। लेकिन यह कांग्रेस ही है जिसे एक जीवंत इंडिया गठबंधन के लिए तत्परता दिखानी होगी।'
त्यागी ने पूछा कि कांग्रेस 14 जनवरी से शुरू होने वाली भारत जोड़ो न्याय यात्रा का जिक्र करते हुए इसे इंडिया गठबंधन यात्रा में बदलने के बजाय अपनी खुद की यात्रा क्यों आयोजित कर रही है। उन्होंने कहा, 'ऐसे समय में जब भाजपा राम मंदिर उद्घाटन के लिए एक शानदार तैयारी कर रही है, इंडिया ब्लॉक के लिए राष्ट्रव्यापी जाति सर्वेक्षण और अन्य राष्ट्रीय मुद्दों की मांग के साथ एक ठोस जवाबी बयान पेश करना अनिवार्य है। कांग्रेस अपनी यात्रा पर निकल पड़ी है। बल्कि, यह एक 'इंडिया' यात्रा होनी चाहिए थी जिसमें गठबंधन के सभी शीर्ष नेता भाग ले सकते थे। कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू करने से पहले अपने किसी भी सहयोगी दल से सलाह नहीं ली। हम उनकी यात्रा का स्वागत करते हैं लेकिन इसे शुरू करने का यह अच्छा समय नहीं था।' उन्होंने आगे कहा,
“
इंडिया अभी भी असमंजस की स्थिति में है। यदि राम मंदिर के उद्घाटन के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई तो क्या होगा? हमारे पास अभी भी सीट-बंटवारे, एजेंडे और नेतृत्व की भूमिकाओं पर स्पष्टता नहीं है। कांग्रेस को अपना बड़ा भाई वाला रवैया छोड़कर बड़ा दिल दिखाना चाहिए।
केसी त्यागी, जेडीयू
अंग्रेजी अख़बार से जदयू नेता ने कहा कि जिस तरह से सहयोगी दल अलग-अलग दिशाओं में जा रहे हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, 'जहां पश्चिम बंगाल कांग्रेस प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने ईडी टीम पर हमले के बाद राष्ट्रपति शासन की मांग की, वहीं सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम ने वायनाड से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने के औचित्य पर सवाल उठाया। तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस के बीच भी खींचतान जारी है। कांग्रेस को इंडिया गुट को दूर जाने से रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।'
सीट-बंटवारे की बातचीत के बारे में पूछे जाने पर त्यागी ने कहा, 'हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस को अपने सहयोगियों को समायोजित करने का प्रयास करना चाहिए। हम एक मजबूत कांग्रेस के साथ-साथ एक मजबूत इंडिया गठबंधन भी चाहते हैं। कांग्रेस को कथित तौर पर बसपा के भी संपर्क में रहकर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के मन में भ्रम पैदा नहीं करना चाहिए।'
जेडीयू का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस की ओर से सीट बँटवारे को लेकर सकारात्मक संदेश आ रहा था। दो दिन पहले ही मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि खड़गे ने दिन में एआईसीसी महासचिवों और राज्य प्रभारियों, राज्य कांग्रेस अध्यक्षों और कांग्रेस विधायक दल के नेताओं की बैठक में कहा कि पार्टी 255 सीटों पर ध्यान केंद्रित करेगी। बैठक में राहुल गांधी भी शामिल हुए। समझा जाता है कि पार्टी का यह फ़ैसला गठबंधन के दलों के लिए सीटें छोड़ने के लिए लिया गया है।
2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 421 सीटों पर चुनाव लड़ा और 52 सीटें जीतीं। तब उसने गठबंधन के चलते बिहार की 40 सीटों में से केवल नौ सीटों पर, झारखंड की 14 सीटों में से सात सीटों पर, कर्नाटक की 28 सीटों में से 21 सीटों पर, महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 25 सीटों पर और तमिलनाडु की 39 सीटों में से नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था। उत्तर प्रदेश में उसने 80 में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। बहरहाल, सवाल वही है कि, कांग्रेस जो कर रही है, क्या यह वक़्त पर नहीं हो तो क्या इसका कुछ भी फायदा मिल पाएगा?