इंडिया गठबंधन की बैठक खास क्यों
- संसद बहिष्कार को लेकर क्या रुख रहेगा, क्या सामूहिक इस्तीफे पर चर्चा होगी
- कितने दल मंगलवार की बैठक में पहुंचेंगे
- क्या सीट बंटवारे का फैसला होगा
- क्या यूपी, पंजाब, दिल्ली में सीट बंटवारे पर तालमेल हो पाएगा
- केजरीवाल-ममता बनर्जी ने बैठक की पूर्व संध्या पर क्या तय किया
- लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर सपा प्रमुख अखिलेश यादव का रुख
सीट-बंटवारे, संयुक्त अभियान की रुपरेखा और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबला करने की रणनीति तैयार करने सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विपक्षी इंडिया गठबंधन मंगलवार को दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक कर रहा है। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हाल के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद एक कार्ययोजना पर चर्चा होने की उम्मीद है। इस बैठक में संसद के पूरी तरह बहिष्कार या फिर सामूहिक इस्तीफे पर भी निर्णय लिया जा सकता है।
यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संसद के शीतकालीन सत्र के बीच में हो रही है, जिसके दौरान विभिन्न विपक्षी दलों के कुल 92 सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया। अब तक किसी एक सत्र के दौरान इतने अधिक सांसद निलंबित नहीं हुए थे। सोमवार को, 78 विपक्षी सांसदों - लोकसभा से 33 और राज्यसभा से 45 - को निलंबित कर दिया गया।
अशोक होटल में होने वाली बैठक से एक दिन पहले, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कहा कि इंडिया ब्लॉक के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार का फैसला 2024 के आम चुनाव के बाद किया जाएगा। उन्होंने विश्वास जताया कि गठबंधन भाजपा को हराने के लिए सीट-बंटवारे सहित सभी मुद्दों को सुलझा लेगा।
ममता बनर्जी ने आप प्रमुख अरविन्द केजरीवाल से बैठक की पूर्व संध्या पर मुलाकात की। यह बैठक 45 मिनट तक चली। दोनों ने इंडिया गठबंधन को लेकर क्या खिचड़ी पकाई, इस बारे में कोई जानकारी बयानों के जरिए बाहर नहीं आई है। न ही केजरीवाल ने बयान दिया और न ही ममता ने। केजरीवाल के मंगलवार की बैठक में आने पर संशय बना हुआ है। ममता ने केजरीवाल से मिलने के बाद शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे और संजय राउत से भी मुलाकात की। हालांकि डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन भी सोमवार रात दिल्ली पहुंच गए थे लेकिन उनकी किसी भी विपक्षी नेता से मुलाकात नहीं हुई।
इंडिया गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है सीटों का बंटवारा। अभी तक किसी भी पार्टी ने एक सर्वमान्य सीट शेयरिंग फॉर्मूला पेश नहीं किया है। सबसे ज्यादा मामला यूपी, पंजाब और दिल्ली की लोकसभा सीटों पर फंसने वाला है। यूपी से ही अगली केंद्र सरकार का फैसला होना है। यूपी में अभी सपा सबसे महत्वूर्ण और बड़ा विपक्षी दल है। सपा और कांग्रेस में तालमेल अखिलेश के रुख पर निर्भर करेगा, क्योंकि एमपी विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे पर दोनों दलों की कटुता सामने आ चुकी है। एमपी में सपा की सभी 72 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। लेकिन उस चुनाव के बाद सपा प्रमुख अखिलेश ने पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) का राग अलापना शुरू कर दिया। यानी वो इंडिया के बजाय पीडीए की बात कर रहे हैं।
कांग्रेस की रणनीति बहुत साफ है। वो एक बड़े दल का रुतबा बनाए रखना चाहती है। हालांकि हाल ही में तीन हिन्दी राज्यों (एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में वो बुरी तरह चुनाव हार गई लेकिन राष्ट्रीय पार्टी की वजह से वो सभी दलों के मुकाबले भारी मानती है। यूपी को लेकर कांग्रेस भी गंभीर है। बैठक की पूर्व संध्या पर सोमवार को यूपी कांग्रेस के कुछ चुनिंदा नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और केसी वेणुगोपाल के साथ एक महत्वूर्ण बैठक की। यूपी कांग्रेस के नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को सलाह दी है कि यूपी में सपा के साथ-साथ बसपा को भी गठबंधन में लाना जरूरी है। अन्यथा दिक्कत आएगी। हालांकि बसपा प्रमुख मायावती स्पष्ट कर चुकी हैं कि वो इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं होंगी। लेकिन राज्य विशेष में तालमेल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
इंडिया गठबंधन में अब संयोजक पद को लेकर भी मंसूबे फूट रहे हैं। जेडीयू की तरफ से बार-बार मांग उठ रही है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक चुना जाए। ऐसी ही मांग टीएमसी की तरफ से आई है कि ममता बनर्जी को संयोजक बनाया जाए। कुछ इसी तरह की हसरत आम आदमी पार्टी की ओर से केजरीवाल के लिए जताई गई है। समझा जाता है कि मंगलवार की बैठक में संयोजक के मुद्दे पर तस्वीर साफ हो।
इंडिया गठबंधन की पहली बैठक 23 जून को पटना में, दूसरी 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में और तीसरी 31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच मुंबई में हुई थी।