मुस्लिम वोटों के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान के बाद अचानक बीएसपी प्रमुख मायावती का बयान आया है। अभी तक ओवैसी ही मुस्लिम वोटों की पैरोकारी करते घूम रहे थे। लेकिन असल सवाल ये है कि अमित शाह, मायावती और ओवैसी की इस रणनीति का निहितार्थ क्या है। बीजेपी को देश के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण राज्य यूपी में कड़ी चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पिछले तीन चुनावों (2014, 2017, 2019) ने यूपी में मुस्लिम वोटों को हाशिए पर कर दिया था। यह स्थिति बीजेपी ने पैदा की थी। मुस्लिम वोट पाने के बावजूद न तो समाजवादी पार्टी और न ही बीएसपी बीजेपी के मुकाबले तीनों चुनावों में कहीं ठहर पाईं। इससे पहले के चुनावों में मुस्लिम वोटों के लिए बहुत मारामारी होती थी, लेकिन चौथा चरण आते-आते इस चुनाव में भी पहले जैसी मारामारी मच गई है।
बीएसपी प्रमुख मायावती ने आज लगभग दावा करते हुए कहा कि मुसलमान सपा से बहुत नाराज हैं, इसलिए वे सपा को वोट नहीं दे रहे हैं। मुसलमानों का वोट बीएसपी को मिल रहा है। गौर कीजिए मायावती का यह बयान तीन चरण बीतने के बाद चौथे चरण में मतदान वाले दिन आया है। मायावती से जब अमित शाह के उस बयान के बारे में पूछा गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुसलमान बीएसपी को वोट दे रहे हैं, मायावती ने आज कहा: यह उनका (अमित शाह) बड़प्पन है कि उन्होंने सच्चाई को स्वीकार किया है। लेकिन मैं उन्हें यह भी बताना चाहती हूं कि -
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यूपी में तीन चरणों में, बीएसपी को न सिर्फ दलित और मुस्लिम वोट मिले हैं, बल्कि हमें उच्च जाति और पिछड़ी जाति के वोट भी मिल रहे हैं।
-मायावती, बीएसपी प्रमुख
मायावती ने 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में बीजेपी के 300 सीटों को पार करने के दावे पर गोलमोल प्रतिक्रिया दी। बीएसपी सुप्रीमो ने कहा, केवल समय ही बताएगा। कौन जानता है, बीजेपी और सपा की बजाय बीएसपी विजेता बने। मायावती ने कहा, "यूपी के मतदाताओं ने पहले ही सपा को खारिज कर दिया है, क्योंकि वे जानते हैं कि जब भी सपा सत्ता में आई है, यूपी में गुंडा राज आया है। आप लोगों को याद होगा, अमित शाह ने मंगलवार को, एक इंटरव्यू में कहा था कि यूपी की राजनीति में मायावती की प्रासंगिकता "कम नहीं" हुई है। अमित शाह से पूछा गया था कि क्या बीएसपी के कुछ दलित और मुस्लिम वोट छीन लेने से यूपी में उनकी पार्टी को फायदा होगा। अमित शाह ने कहा, मुझे नहीं पता कि इससे बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान। यह सीट पर निर्भर करता है। लेकिन यह सच नहीं है कि मायावती की प्रासंगिकता खत्म हो गई है। शाह ने कहा-
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मायावती के कम प्रचार अभियान का मतलब यह नहीं है कि उनका अपने मतदाताओं में आधार पूरी तरह से खत्म हो गया है।
-अमित शाह, गृह मंत्री, एक इंटरव्यू में
जबरदस्त रणनीतिमायावती ने अमित शाह के बयान को आगे बढ़ाकर राजनीतिक चतुराई से काम लिया है। मुस्लिम वोटों को लेकर दोनों के बयान को एक तरह की जुगलबंदी के तौर पर देखा गया।इस रणनीति को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। बल्कि उससे पता चलता है कि बीजेपी यूपी में अभी तक हुए मतदान को लेकर भरोसा नहीं कर पा रही है। बीजेपी को यह अच्छी तरह मालूम है कि हर चुनाव में मुस्लिम रणनीतिक वोट डालते हैं। वे आमतौर पर सपा, बीएसपी और कहीं-कहीं कांग्रेस को समर्थन देते रहे हैं। उनका वोट कम ही बंट पाता है। इस बार के रुझान ये हैं कि मुस्लिम सपा को एकमुश्त वोट कर रहे हैं और दूसरे नंबर उनके कुछ वोट कांग्रेस को भी गए हैं। इस चुनाव से पहले ही बीएसपी का रुख बीजेपी के प्रति नरम रहा है। चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपना चुनावी अभियान शुरू किया, जो अभी भी बहुत धीमी गति से चल रहा है। एक तरह से इस चुनाव में बीएसपी वो आक्रामक रुख नहीं दिखा पाई, जिसके लिए वो जानी जाती है। उनके मुकाबले सपा ने छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करके एक सशक्त विकल्प पेश कर दिया। इसमें ओबीसी मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। सपा के विकल्प को मुसलमानों ने मजबूत माना और उसे समर्थन दे दिया।
हालांकि सपा ने इस बार मुस्लिम वोटों के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की लेकिन इसके बावजूद उसे मुस्लिम वोट मिलेंगे। क्योंकि मुसलमानों के सामने बीजेपी को हराने में सिर्फ सपा और छोटे क्षेत्रीय दल ही ज्यादा असरदार हैं।
इस चुनाव में एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी भी मुस्लिम वोटों के लिए जीजान से जुटे। कई सफल रैलियां कीं लेकिन मुसलमानों का रेस्पांस उत्साहजनक होने के बावजूद उन्होंने ओवैसी को वोट देने का भरोसा नहीं। बीजेपी को उम्मीद थी कि ओवैसी मुस्लिम वोटों की फसल काट ले जाएंगे लेकिन बीजेपी का अनुमान ओवैसी को लेकर बंगाल के बाद यूपी में भी गलत साबित होने जा रहा है। यही वजह है कि बीजेपी अब मुस्लिम वोटों का विभाजन चाहती है। जो काम ओवैसी नहीं कर पा रहे हैं, वो काम बीजेपी मायावती से कराना चाहती है। अन्यथा बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी का इतना महत्वपूर्ण नेता अमित शाह को मायावती और बीएसपी की तारीफ करने की जरूरत क्या थी। जाहिर है कि यह बयान मायावती की बजाय मुसलमानों को गुमराह करने के लिए दिया गया बयान था। नतीजे आने पर ही पता चलेगा कि अमित शाह ने मुसलमानों का वोट बीएसपी को जाने की बात कह कर कितने फीसदी मुसलमानों को गुमराह किया।
मुस्लिम वोटों के लिए कई रणनीति बनाना ही दरअसल बीजेपी, बीएसपी और ओवैसी को भारी पड़ा। मुस्लिम मतदाता इस चाल को समझ गए कि क्यों इस बार बीएसपी ने सबसे ज्यादा मुसलमान प्रत्याशी उतारे, क्यों इतने सारे पैसे खर्च कर ओवैसी यूपी में रैलियां कर रहे हैं। मुस्लिम वोटों का विभाजन इस चुनाव में बहुत मुश्किल लग रहा है।
हर चरण का मतदान पूरा होने के साथ ही यह स्थिति स्पष्ट होती जा रही है। यूपी में अब तीन चरणों का चुनाव और बाकी है और बीजेपी की मुश्किलें बढ़तीं जा रही हैं। यूपी में अब तीन चरणों का चुनाव और बाकी है और बीजेपी की मुश्किलें बढ़तीं जा रही हैं।