अब तक क्षेत्रीय दलों की ओर से विपक्षी एकता की कोशिशें होने की रिपोर्टें आती रही थीं, लेकिन अब लगता है कि कांग्रेस ने इसकी योजना बनाई है। रिपोर्ट है कि पार्टी क्षेत्रीय दलों के नेताओं को फोन कर एकजुट करने का प्रयास कर रही है। इसने एक तरह के सोच-विचार वाले दलों के लिए एक बैठक प्रस्तावित की है जिसमें मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा करने और रणनीति बनाने की योजना है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने फोन पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन से संपर्क किया है और उन्हें प्रस्तावित बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि कांग्रेस की एक प्रमुख सहयोगी डीएमके ने विपक्ष की बैठक के लिए कांग्रेस की योजना को अपना समर्थन दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालाँकि, बैठक की कोई तारीख और स्थान अभी तक तय नहीं किया गया है, क्योंकि कांग्रेस अन्य विपक्षी दलों- जैसे तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और वाम दलों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही है।
बता दें कि कांग्रेस का यह प्रयास तब आया है जब अभी हाल ही में ख़त्म हुए बजट सत्र के दौरान आम तौर पर बिखरी विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकार के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाया गया है। कांग्रेस इस एकता को आगे बढ़ाने और 2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी दलों का एक व्यापक गठबंधन बनाने की उम्मीद में है।
रायपुर में हाल ही में समाप्त हुए अपने पूर्ण अधिवेशन में कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह गठबंधन में नेतृत्व की भूमिका की मांग किए बिना समान विचारधारा वाले दलों के साथ काम करने के लिए तैयार है। लेकिन एक दिक्कत यह है कि जिन दलों के साथ विपक्षी एकता की बात हो रही है उन दलों में अक्सर मतभेद रहे हैं।
टीएमसी और कांग्रेस के बीच में ऐसे ही मतभेद रहे हैं। विपक्षी एकता को लेकर ममता बनर्जी का रवैया अजीबोगरीब रहा है। वह कई बार ऐसी एकता की बात कर चुकी हैं, लेकिन कई बार वह तीसरा मोर्चा के प्रयास करने वालों के साथ भी नज़र आई हैं।
ममता ने पिछली बार तब विपक्षी एकता को धता बता दिया था जब हाल में उन्होंने कहा था कि वह 2024 का चुनाव अकेले लड़ेंगी। वह जब नवंबर 2021 में दिल्ली पहुँची थीं तब भी विपक्षी एकता को क़रारा झटका लगा था।
दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाली ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाक़ात को लेकर एक सवाल के जवाब में पहले तो कहा था कि 'वे पंजाब चुनाव में व्यस्त हैं', लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि 'हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? क्या यह संवैधानिक बाध्यता है?' ममता बनर्जी के इस बयान में तल्खी तो दिखी ही थी, इसके संकेत भी साफ़-साफ़ मिले थे।
उनके उस बयान को उस संदर्भ में देखा गया था जिसमें ममता अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का पूरे देश में विस्तार करने में जुटी थीं और उसमें कई नेता कांग्रेस छोड़कर शामिल हो चुके थे। तब ममता बनर्जी लगातार कांग्रेस के नेताओं को तोड़ रही थीं। गोवा से लेकर दिल्ली, हरियाणा और यूपी में जिन नेताओं को तृणमूल अपने खेमे में ला रही थीं उनमें सबसे ज़्यादा नुक़सान कांग्रेस का ही हो रहा था। तब दिल्ली में कीर्ति आज़ाद टीएमसी में शामिल हुए थे। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरो के अलावा महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे ललितेश पति त्रिपाठी और राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी अशोक तंवर भी कांग्रेस से टीएमसी में शामिल हो गए थे।
बता दें कि 2014 में पीएम मोदी ने सत्ता में आने के बाद से भारतीय राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा है और लगातार दो आम चुनावों में विपक्ष को पटखनी दी है। लेकिन अगर बीजेपी एकजुट विपक्ष के खिलाफ आती है तो वह मुश्किल में पड़ सकती है।
14 मुख्य विपक्षी दलों का 2019 में पिछले चुनाव में 39 प्रतिशत हिस्सा था और उन्होंने 542 सदस्यीय संसद में 160 सीटें जीतीं। अकेले बीजेपी को 38 फीसदी वोट मिले लेकिन उसने फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में 303 सीटें जीतीं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पिछले महीने मानहानि के आरोप में दोषी ठहराए जाने और संसद से उनकी अयोग्यता के बाद खंडित विपक्ष के एकजुट होने के ताजा संकेत सामने आए हैं। राहुल की सजा के एक दिन बाद 14 राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि संघीय जाँच एजेंसियों द्वारा विपक्षी समूहों को चुनिंदा रूप से निशाना बनाया जा रहा है। अदालत ने, हालांकि, यह कहते हुए याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया कि यह बहुत व्यापक और अस्पष्ट है।