कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सोमवार को कहा कि यदि उनकी पार्टी 2019 का आम चुनाव जीती और उसकी सरकार बनी तो हर ग़रीब के खाते में एक न्यूनतम रकम डाल दी जाएगी। राहुल ने कहा कि सरकार न्यूनतम आमदनी योजना पेश करेगी, जिसके तहत हर ग़रीब को एक न्यूनतम रकम दी जाएगी। राहुल ने यह साफ़ नहीं किया कि वह रकम क्या होगी, पर यह ज़ोर देकर कहा कि हर ग़रीब के खाते में कुछ पैसे ज़रूर डाले जाएँगे।
मोदी पर राहुल का ब्रह्मास्त्र
राहुल का यह एलान दरअसल मोदी सरकार के ख़िलाफ़ उनका ब्रह्मास्त्र साबित हो सकता है, क्योंकि एक तरह से राहुल ने मोदी का एक बड़ा मारक हथियार उनसे छीन लिया है। ऐसी काफ़ी चर्चा थी कि मोदी सरकार इस बजट में ऐसी किसी योजना की घोषणा कर सकती है। वैसे इस तरह की योजना पर विचार तो क़रीब छह साल से चल रहा था। 2013 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने भी इस पर गंभीरता से विचार किया था, लेकिन कोई अंतिम निर्णय लेने से हिचक गई थी।मोदी सरकार में भी पिछले दो साल से यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना पर बहुत गंभीर विचार चल रहा था। इस योजना के तहत हर ग़रीब आदमी को एक निश्चित रकम दिए जाने का प्रस्ताव था। लेकिन इस योजना को लागू करने से पड़ने वाले भारी आर्थिक दबाव के कारण यूपीए सरकार की तरह ही मोदी सरकार भी अब तक यह तय नहीं कर पा रही थी कि इसे वह लागू करे या न करे।दो साल पहले: क्या बजट 2017 में ग़रीबों को नक़द पैसा बाँटेगी सरकार?
लेकिन पिछले एक साल से मोदी सरकार की लगातार गिरती लोकप्रियता और ख़ास तौर पर हाल के पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद सरकार बिल्कुल बैकफ़ुट पर आ गई थी। चुनाव में हार का एक बड़ा कारण किसानों की आर्थिक दुर्दशा को भी बताया गया था।
नोटबंदी के कारण रोज़गारों में हुई कटौती से ग़रीब तबके के लोग पहले से ही परेशान थे। सरकार इसी ऊहापोह में थी कि ग़रीबों के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम लाए या केवल कृषि क्षेत्र की हालत सुधारने के लिए तेलंगाना जैसे राज्योें में चल रही 'रैयत बंधु' योजना के आधार पर कोई स्कीम ले कर आ जाए। आशा की जा रही थी कि बजट में सरकार ऐसी किसी ज़बरदस्त लोकलुभावन योजना की घोषणा कर सकती है।
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मोदी से छीना चुनावी लड्डू
लेकिन मोदी सरकार बजट में ऐसी कोई घोषणा कर पाती, उसके चार दिन पहले ही राहुल गाँधी ने सरकार के हाथ से चुनावी लड्डू छीन लिए और घोषणा कर दी कि 2019 में अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो हर ग़रीब को न्यूनतम आमदनी की गारंटी दी जाएगी।चुनावी लिहाज़ से मोदी जो दाँव चलना चाह रहे थे, उसे राहुल ने पहले ही चल कर मोदी सरकार की संभावित योजना की चमक कुछ हद तक फीकी करने की कोशिश की है।
चुनावी नज़रिए से यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना या न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना भले ही एक बड़ा तुरुप का इक्का हो, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसी किसी योजना पर लाखों करोड़ों रुपये का ख़र्च आएगा, यह पैसा अख़िर आएगा कहाँ से? बर्कले के अर्थशास्त्री प्रणब बर्द्धन का अनुमान है कि भारतीयों की आमदनी 10,000 रुपये प्रति व्यक्ति पहुँचाने के लिए अगर किसी यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना को लागू किया जाएगा तो उस पर हर साल 14 लाख करोड़ रुपये ख़र्च होंगे, जो देश की जीडीपी का क़रीब 10 प्रतिशत है।
अभी देश में क़रीब साढ़े नौ सौ कल्याणकारी योजनाएँ चल रही हैं, जिन पर सालाना क़रीब 7 लाख करोड़ रुपये ख़र्च होते हैं। मोदी सरकार के भीतर चल रही चर्चा में एक प्रस्ताव यह भी था कि मनरेगा जैसी बहुत सी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर पैसा बचाया जाए और इन योजनाओं के बदले में एक यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना घोषित की जाए, जिसके तहत गाँव से लेकर शहर तक हर ग़रीब को एक निश्चित रकम मिलती रहे। अब राहुल गाँधी ने अपनी सभा में न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना की घोषणा तो कर दी है, लेकिन फ़िलहाल उन्होंने यह नहीं बताया कि अगर उनकी सरकार बनी तो वह इसके लिए पैसा कहाँ से लाएगी और क्या मौजूदा समय में चल रही बहुत सी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर उनकी जगह ऐसी योजना लाएगी।
बहरहाल, अब जबकि कांग्रेस ने इसकी घोषणा कर ही दी है और चूँकि मोदी सरकार बजट में इसे लाने पर गंभीरता से विचार कर ही रही थी तो यह तो तय है कि अब यह योजना तो लागू होकर ही रहेगी। आइए, हम मोटे तौर पर समझें कि ऐसी किसी योजना के तहत किस आधार पर सरकार पैसे देती है।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना?
यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना का एक रूप निगेटिव इनकम टैक्स योजना भी है। आम तौर पर इसका अर्थ यह है कि इनकम टैक्स से मुक्त आय की सीमा के नीचे जिसकी आमदनी है, उसे ग़रीब माना जाए और करमुक्त आय से उसकी आमदनी जितनी कम हो, उसे उतना टैक्स सरकार चुकाए।जैसे मिसाल के तौर पर भारत में 2.50 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी पर इनकम टैक्स नहीं लगता है। निगेटिव इनकम टैक्स की अवधारणा में माना यह जाता है कि करमुक्त आय की सीमा से जिस व्यक्ति की कमाई जितनी कम होगी, वह उसी सीमा तक ग़रीब होगा, जैसे भारत के उदाहरण में किसी व्यक्ति की सालाना आमदनी दो लाख रुपये है तो उसकी आमदनी करमुक्त आय से 50,000 रुपये कम है। इसलिए इस अवधारणा के तहत सरकार को उसे हर साल 50,000 रुपये पर 'ग़रीबी टैक्स' चुकाना चाहिए। चूंकि न्यूनतम टैक्स दर 10 प्रतिशत है तो इस उदाहरण में सरकार 10 प्रतिशत की दर से 5,000 रुपये सालाना चुकाएगी। इसी तरह यदि किसी व्यक्ति की सालाना आय मात्र एक लाख रुपये ही है तो उसकी आय 2.50 लाख रुपये की करमुक्त आय की सीमा से 1.50 लाख रुपये कम हुई। इसलिए वह 1.50 लाख के 10 प्रतिशत यानी 15 हज़ार रुपये के निगेटिव इनकम टैक्स का हक़दार होगा। यही निगेटिव इनकम टैक्स हुआ। यानी ग़रीब होने के कारण एक तरह से सरकार उसे 'ग़रीबी टैक्स' देती है।लेकिन ज़रूरी नहीं कि राहुल गाँधी जिस न्यूनतम आमदनी की गारंटी की बात कर रहे हैं या मोदी सरकार जिस संभावित योजना पर विचार कर रही है उसमें ऊपर दिए गए निगेटिव इनकम टैक्स के फ़ार्मूले को आधार बनाया जाए। सरकार चाहे किसी की बने उसे उपलब्ध संसाधनों और संभावित खर्चों की स्थिति को देख कर ही ग़रीबों को पैसा बाँटने का कोई फ़ॉर्मूला ढूंढना पड़ेगा।
संभवत: इसी तरह की किसी योजना के लिए पैसा जुटाने के लिए मोदी सरकार लगातार रिज़र्व बैंक पर उसके सरप्लस रिज़र्व में से पैसे लेने के लिए काफ़ी दबाव डाल रही थी। इसी तनातनी में रिज़र्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफ़े की नौबत तक आ गई। अब संकेत हैं कि शायद आने वाले दिनों में रिज़र्व बैंक सरकार को पैसे देने के लिए तैयार हो जाए।