केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के हाल के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण के दायरे से क्रीमी लेयर को बाहर करने का आदेश दिया गया था। केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को इसे इस दलील के साथ खारिज किया कि "बी आर अम्बेडकर के संविधान एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है।"
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यहां यह बताना जरूरी है कि सरकार क्रीम लेयर को आरक्षण जारी रखने पर झुक तो गई है। लेकिन बतौर पार्टी यानी भाजपा ने अभी तक साफ नहीं किया है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करती है। बीजेपी ने 1 अगस्त के फैसले पर अभी तक आधिकारिक तौर पर अपना रुख नहीं बताया है। एनडीए के सहयोगी दल एलजेपी (रामविलास) ने इस फैसले पर खुलकर असहमति जताई थी और कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समीक्षा याचिका दायर करेगी।
यह घटनाक्रम शुक्रवार को तब सामने आया जब भाजपा के लोकसभा और राज्यसभा के एससी, एसटी सांसदों ने पीएम मोदी से मुलाकात की और सुप्रीम फैसले पर आपत्ति जताई। तब उन्हें आश्वासन दिया गया कि क्रीमी लेयर को बाहर करने की सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। इस तरह शुक्रवार को सरकार के झुकने का दूसरा दिन था। इससे पहले गुरुवार को वो वक्फ बिल पर झुक गई थी, जब सरकार को समर्थन दे रहे टीडीपी और एलजेपी (रामविलास पासवान) ने इस बिल का विरोध कर दिया था। यह बिल अब संसदीय समिति को भेज दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 1 अगस्त को 6-1 के बहुमत के फैसले में कहा कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से सजातीय वर्ग नहीं हैं और उन्हें आरक्षण देने के मकसद से राज्य उन्हें उप-जातियों में वर्गीकृत कर सकते हैं। जो दलित जातियां हाशिए पर हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। चार जजों ने एससी/एसटी कोटे से क्रीमी लेयर को बाहर करने का समर्थन किया। यानी दलितों की वो जातियां जो आरक्षण का लाभ लेकर बेहतर स्थिति में आ चुकी हैं, उन्हें आरक्षण से बाहर किया जा सकता है।
भाजपा के एससी-एसटी सांसदों के एतराज पर मोदी सरकार फौरन झुक गई। शुक्रवार रात को ही कैबिनेट बैठक बुलाकर इस पर फैसला लिया गया। उसके फौरन बाद शुक्रवार रात को ही पत्रकारों को जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें एससी, एसटी के लिए आरक्षण पर कुछ सुझाव दिए गए थे। उन्होंने कहा कि कैबिनेट का विचार है कि एनडीए सरकार संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है। वैष्णव ने कहा, "बी आर अंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान के अनुसार, एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है।" उन्होंने कहा कि सरकार का मानना है कि एससी/एसटी आरक्षण का प्रावधान संविधान के हिसाब से ही होना चाहिए। कुल मिलाकर सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था में छेड़छाड़ का उसका कोई इरादा नहीं है। जैसा है, चलता रहेगा।
इससे पहले, भाजपा के एससी, एसटी सांसदों के प्रधानमंत्री से मिलने के बाद, बुलंदशहर के सांसद भोला सिंह ने कहा: “हमने उन्हें एससी/एसटी समुदायों के बीच क्रीमी लेयर के बारे में माननीय सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा की गई टिप्पणियों के बारे में अपनी चिंताओं से अवगत कराया। पीएम मोदी ने आश्वासन दिया कि सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी और दोहराया कि वह एससी और एसटी समुदायों के कल्याण के लिए खड़ी है।
मोदी ने एक्स पर कहा: “आज एससी/एसटी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। एससी/एसटी समुदायों के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए हमारी प्रतिबद्धता और संकल्प दोहराया।''
हिमाचल प्रदेश से बीजेपी सांसद सुरेश कुमार कश्यप ने कहा कि पीएम के साथ हमारी बैठक का यही एकमात्र एजेंडा था। सांसद सुरेश ने कहा- “हम केवल ज्ञापन देने के लिए प्रधान मंत्री से मिले, लेकिन उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाएगी। प्रधानमंत्री ने हमसे कहा कि अदालत ने जो कहा केवल एक टिप्पणी है और सरकार पर बाध्यकारी नहीं है। यानी सरकार उसे मानने के लिए मजबूर नहीं है।
दिल्ली से भाजपा सांसद योगेन्द्र चंदोलिया ने कहा, ''यह टिप्पणी फैसले का हिस्सा नहीं थी, लेकिन हमारे विरोधी अफवाह फैला रहे हैं कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार क्रीमी लेयर को बाहर करना चाहती है। इसलिए, हमने औपचारिक रूप से प्रधान मंत्री से मुलाकात की, जिन्होंने हमें आश्वासन दिया कि एससी/एसटी से क्रीमी लेयर को बाहर करने का कोई सवाल ही नहीं है। भाजपा, हमारे पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री सभी इस मुद्दे पर एकमत हैं।''
एससी-एसटी कोटे पर सरकार का झुकना महत्वपूर्ण है। क्योंकि आरएसएस और भाजपा का कई बार यह रुख आया है कि वो आरक्षण पर अलग राय रखते हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कम से कम दो मौकों पर कहा कि आरक्षण की समीक्षा होना चाहिए। इसका जब जबरदस्त विरोध हुआ और चुनाव समीकरण के कारण आरएसएस को यह बयान वापस लेना पड़ा। लेकिन संघ के मुखपत्र में भागवत का वो इंटरव्यू आज भी मौजूद है। भारत की सवर्ण जातियों की लंबे समय से यह मांग है कि आरक्षण खत्म किया जाए और योग्यता के आधार पर लोगों को नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश मिले। दलित समुदाय इस मांग के खिलाफ है। चूंकि भाजपा के पास सवर्ण जातियों का सबसे बड़ा वोट बैंक है, इसलिए अन्य राजनीतिक दल उसे हमेशा आरक्षण विरोधी नजर से देखते हैं।