कांग्रेस से एक के बाद एक नेता छोड़कर क्यों जा रहे हैं? वह भी राहुल के सबसे क़रीबी रहे नेता तक? खासकर वैसे नेता जो बेहद कम उम्र में मंत्री बन गए थे और जिनका परिवार कट्टर कांग्रेस समर्थक रहा था? और इसमें भी कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की भाषा एक जैसी। राहुल गांधी की आलोचना और पीएम मोदी की जमकर तारीफ़। एकनाथ शिंदे की पार्टी में शामिल होने वाले मिलिंद देवड़ा तक की भाषा भी ऐसी है! क्या जानबूझकर ऐसा कराया जा रहा है और राहुल व कांग्रेस को निशाना बनाया जा रहा है?
कम से कम बीजेपी की एक रणनीति से तो कुछ ऐसा ही लगता है! दरअसल, बीजेपी ने विपक्षी दलों के नेताओं को लेकर एक ऐसी योजना बनाई है। इसमें खासकर कांग्रेस के नेताओं को बीजेपी में शामिल कराने की रणनीति तय की गई है। इसका मक़सद क्या है और इससे बीजेपी को कैसे फायदा होगा, इसको जानने से पहले यह जान लें कि बीजेपी की कैसी तैयारियाँ हैं।
आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सत्तारूढ़ भाजपा विभिन्न राजनीतिक दलों, विशेषकर कांग्रेस से कई नेताओं को शामिल करने की योजना बनाई है। रिपोर्ट के अनुसार भाजपा ने संभावित विपक्षी उम्मीदवारों को शामिल करने से पहले उनकी पड़ताल और चयन करने के लिए भूपिंदर यादव, हिमंत बिस्वा सरमा, विनोद तावड़े और बी एल संतोष का एक पैनल गठित किया है।
द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि जहां इन नए लोगों को शामिल करने के पीछे पार्टी को मजबूत करना मुख्य उद्देश्य होगा, वहीं बीजेपी अपने पाले में आने के लिए नेताओं का चयन करते समय विपक्ष को कमजोर करना भी चाहेगी।
एक भाजपा नेता ने अंग्रेजी अख़बार से कहा, 'भाजपा उन क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करने के लिए नए शामिल लोगों का स्वागत कर रही है जहां यह चुनावी और वैचारिक रूप से कमजोर है। चुनावों से पहले, इस तरह के शामिल होने के कार्यक्रम पूरे चुनावी माहौल को और बेहतर बना देंगे। लेकिन इस बार, मुख्य लक्ष्य कांग्रेस होगी और प्रमुख प्रभावशाली नेताओं के बाहर जाने से वह पार्टी एक विशेष क्षेत्र में कमजोर हो जाएगी।'
राहुल गांधी भी निशाने पर
बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी हैं। राहुल खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों के प्रमुख आलोचक के रूप में पेश कर रहे हैं। वह मोदी के खिलाफ एक प्रमुख विपक्षी चेहरे के रूप में उभर रहे हैं। भाजपा की रणनीति भी राहुल को राजनीतिक रूप से कमजोर करने और उनकी पार्टी में उनके प्रभाव को कमजोर करने की रही है।
हाल के वर्षों में भाजपा ने पहले ही राहुल की टीम से कई युवा नेताओं को शामिल किया है और उन्हें प्रमुख पद दिए हैं। इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेता शामिल हैं।
हालाँकि भाजपा की ओर से सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा को भी शामिल करने की कुछ कोशिशें की गईं, लेकिन बात नहीं बनी। हालांकि देवड़ा आख़िरकार पिछले रविवार को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए। वह महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी है। कांग्रेस नेतृत्व पायलट को बनाए रखने में कामयाब रहा, और उन्हें एआईसीसी के महासचिव के पद पर पदोन्नत किया गया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के एक नेता ने कहा, 'किसी भी नेता के कांग्रेस से बाहर निकलने का अब राहुल गांधी पर बुरा असर पड़ेगा... यह उनकी विफलताओं को उजागर करेगा।'
विपक्षी दल भले ही अब तक गठबंधन की सीटें तक तय नहीं कर पाए हों, लेकिन बीजेपी एक साथ कई रणनीतियों पर काम कर रही है। चाहे वह ध्रुवीकरण की राजनीति हो या फिर विपक्षी दलों के नेताओं को पार्टी में मिलाने की रणनीति। कैडर स्तर पर रणनीतिक तैयारी हो या फिर संगठन को चुस्त-दुरुस्त रखने की तैयारी। राम मंदिर को लेकर कई रणनीतियाँ तो बनाई ही गई हैं, इसके साथ ही दक्षिण भारत के लिए भी इसने अलग तैयारी की है।
लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिणी राज्यों और बिहार व पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए 'तमिल संगमम' की तर्ज पर विशेष योजनाएं तैयार की हैं। पहले भाजपा ने जहाँ 160 लोकसभा सीटों को कमजोर के रूप में पहचाना था, जिसे अब संशोधित कर 240 सीटें कर दिया गया है। इन सीटों के लिए बीजेपी ने काफी तैयारी की है। इनको कलस्टर में बाँटकर कई वरिष्ठ नेताओं को इसकी ज़िम्मेदारी दी गई है।
दरअसल, बीजेपी ने सभी 543 लोकसभा सीटों को 146 समूहों में बाँटा है। यानी हर कलस्टर में 3-4 सीटें होंगी। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक क्लस्टर के प्रभारी के रूप में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को जिम्मेदारी दी गई है। मंगलवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और वरिष्ठ बीजेपी नेता अमित शाह की हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। बैठक में इन समूहों के प्रभारी और लगभग 300 पार्टी नेता शामिल हुए।
बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए भाजपा महासचिव विनोद तावड़े ने कहा कि शाह और नड्डा ने सभी क्लस्टर प्रभारियों के साथ विचार-विमर्श किया और महिलाओं और पहली बार मतदाताओं तक कैसे पहुंचा जाए, इस पर भी चर्चा हुई। बैठक का फोकस इस बात पर था कि बूथ स्तर पर संगठन को कैसे मजबूत किया जाए, उन बूथों पर विशेष जोर दिया जाए जहां भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर है। तावड़े ने कहा कि तमिल संगमम की तरह, भाजपा ने दक्षिणी राज्यों, पश्चिम बंगाल और बिहार में मतदाताओं और लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए विशेष योजनाएं और कार्यक्रम तैयार किए हैं।