ओबीसी नेताओं की भगदड़ को रोकने के लिए बीजेपी अब क्या करेगी? उसके पास अवसर बहुत सीमित हैं। या तो वो अपने पाले के ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य, अनुप्रिया पटेल आदि को आगे करके मैदान में मोर्चा संभाले या फिर वो आक्रामक तरीके से हिन्दू-मुसलमान ध्रुवीकरण पर उतरे। फिलहाल, वो अपने ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य को आगे रखकर चुनाव मैदान में कूदेगी।
बीजेपी के पास अब केशव पर आश्रित होने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। दिल्ली में बीजेपी कोर कमेटी की बैठक के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मीडिया को ब्रीफ करना था लेकिन उनकी जगह केशव प्रसाद मौर्य को भेजा गया। यह संकेत है कि बीजेपी किस तरह अपनी रणनीति बदलती है।
हालांकि बीजेपी केशव प्रसाद मौर्य को अब मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित कर सकती, क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह पहले ही योगी आदित्यनाथ का नाम ले चुके हैं। लेकिन बीजेपी ऐसा कुछ जरूर करेगी, जिससे यह संदेश दिया जा सके कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।
यूपी में मौर्य मतदाताओं की आबादी करीब 5 फीसदी है। करीब सौ सीटों पर मौर्य और इसकी उपजातियां राजनीति को प्रभावित करती हैं। 2017 में बीजेपी टिकट पर 101 ओबीसी विधायक चुने गए थे। बीजेपी में एकसाथ दो मौर्य नेताओं की मौजूदगी पार्टी के आधार को मजबूत करने के लिए काफी थी। इसके अलावा अन्य पिछड़ी उपजातियों के नेता भी बीजेपी में थे। इसलिए इन सभी के जाने से फर्क साफ नजर आ रहा है। इसलिए सारा दारोमदार पर अब केशव प्रसाद मौर्य पर आ गया है।
2017 में जब बीजेपी यूपी विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत लेकर आई थी तो केशव प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें ही सीएम बनाया जाएगा। लेकिन आरएसएस ने ऐसा नहीं होने दिया। उसके निर्देश पर योगी को सीएम बना दिया गया। अभी चुनाव से पहले जब मोदी और शाह ने कई राज्यों में सीएम बदले तो योगी का भी नंबर आया।
संघ योगी के लिए ढाल बनकर खड़ा हो गया और योगी की कुर्सी बच गई। लेकिन राजनीति आरएसएस के हिसाब से नहीं चल सकती। कम से कम यूपी की राजनीति तो नहीं चल सकती।
यूपी की राजनीति जाति के हिसाब से ही चलती आई है और आगे भी चलेगी। इसमें कभी-कभार लहर भी घुसती है लेकिन राजनीति घूम फिरकर फिर जातियों पर पहुंच जाती है। मौजूदा हालात में बीजेपी के पास केशव देव मौर्य से बेहतर कोई नहीं है। इसलिए मौर्य को स्वाभाविक रूप से भी आगे बढ़ाया जाएगा। अगर अगली बार बीजेपी जीतती है और उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो यह केशव मौर्य की बदकिस्मती ही होगी।