मणिपुर जेडीयू में बवाल क्यों, क्या बिहार एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं?
एनडीए में क्या सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? बिहार में एनडीए के सहयोगी दल के मंत्री कभी इस्तीफे की धमकी दे रहे हैं तो कभी किसी राज्य में एनडीए से अलग होने की घोषणा तक कर रहे हैं। हालाँकि, इन दोनों मामले में ऊहोपोह की स्थिति बन गई। ताज़ा मामला जेडीयू का है। मणिपुर में जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को पत्र लिखकर कह दिया कि पार्टी राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का समर्थन नहीं करती है। लेकिन थोड़ी देर बाद ही पार्टी हाईकमान ने कह दिया कि जेडीयू एनडीए का हिस्सा है और ख़त लिखने वाले प्रदेश अध्यक्ष को हटा दिया गया है। इससे पहले जीतन राम मांझी के कैबिनेट पद को लेकर ऐसी ही ऊहापोह की स्थिति बनी थी। तो सवाल है कि आख़िर एनडीए में क्या सबकुछ ठीक नहीं है?
इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि आख़िर ये घटनाक्रम क्या चले हैं और किन हालात में ये सब हो रहा है। दरअसल, बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। छन-छन कर ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि एनडीए में घटक दल ज़्यादा से ज़्यादा सीटों के लिए जोर लगा रहे हैं। जेडीयू और बीजेपी तो ज़्यादा सीटें पाने की कोशिश में हैं ही, चिराग पासवान की पार्टी और जीतन राम मांझी की पार्टी भी इसी प्रयास में लगी हैं।
मणिपुर में जेडीयू के इस मामले ने बिहार की राजनीति में भी बवाल मचा दिया। दरअसल हुआ यह कि जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष क्षेत्रमयुम बीरेन सिंह ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को पत्र लिखकर कह दिया कि पार्टी राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का समर्थन नहीं करती है। जब इस पर बवाल मचा तो जेडीयू ने क्षेत्रीमयूम बीरेन सिंह को बर्खास्त कर दिया। अनुशासनहीनता को उनके निष्कासन का कारण बताया गया और कहा गया कि राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर भाजपा के साथ उसका गठबंधन बना हुआ है।
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने पत्र को भ्रामक बताते हुए कहा कि राज्य इकाई ने केंद्रीय नेतृत्व से कोई संवाद नहीं किया और स्वतंत्र रूप से काम किया। प्रसाद ने कहा, 'पार्टी ने इसका संज्ञान लिया है और पार्टी की मणिपुर इकाई के अध्यक्ष को उनके पद से मुक्त कर दिया गया है। हमने एनडीए का समर्थन किया है और मणिपुर में एनडीए सरकार को हमारा समर्थन भविष्य में भी जारी रहेगा। मणिपुर इकाई ने केंद्रीय नेतृत्व से कोई संवाद नहीं किया, उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। उन्होंने खुद ही पत्र लिखा था।'
मणिपुर में हुए इस घटनाक्रम को बिहार में विपक्षी दलों ने मुद्दा बना दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, 'नीतीश कुमार के जेडीयू ने मणिपुर में बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया है। इससे पहले संगमा की पार्टी ने भी ऐसा किया था। एक जलते हुए राज्य को उसके हाल पर छोड़ने का पाप किया है नरेंद्र मोदी ने।'
आरजेडी से जुड़े प्रतीक पटेल ने कहा है, 'मुझे तो यह सिर्फ़ बिहार में सीट बँटवारे को लेकर किया गया प्रेशर पॉलिटिक्स लगता है। नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स के माहिर खिलाड़ी हैं। भाजपा को तो झटका तब लगेगा जब यह एनडीए से खुद को अलग करेंगे, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है नीतीश जी के पास अब यह शक्ति बची है। बाक़ी यह मणिपुर का फ़ैसला चौंकाने वाला तो है। क्योंकि इसके कारण को बीते काफ़ी समय हो चुका था।'
तो सवाल है कि क्या यह सीट बँटवारे का खेल है? हालाँकि, बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी हाल ही में कहा था कि एनडीए में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय हो चुका है, लेकिन इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है।
मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि 2020 की तरह इस बार भी बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वे अपने-अपने हिस्से से लोजपा, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एडजस्ट करेंगे। लेकिन ऐसी ख़बरें आईं कि जीतन राम मांझी सीट बँटवारे से नाराज़ हैं।
क्या मांझी भी एनडीए से नाराज़, बवाल क्यों?
केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के एक बयान पर बिहार की राजनीति में हंगामा मचा हुआ है। पहले ऐसी ख़बर आई थी कि मांझी एनडीए में नाराज हैं और उन्होंने कैबिनेट में अपना पद छोड़ने की धमकी दे दी है। कहा गया कि उनकी नाराजगी की वजह बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए माहौल बनाना है। 2020 के विधानसभा चुनाव में मांझी की पार्टी को एनडीए ने 243 में से 7 सीटें दी थीं और उन्होंने 4 पर जीत दर्ज की थी। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने पहले आरोप लगा दिया था कि इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में उनके हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को उचित डील नहीं मिल रही है। उन्होंने मंगलवार को मुंगेर जिले में एक जनसभा में यह बयान दिया था।
जब मामले ने तूल पकड़ा तो मांझी ने इस तरह की अटकलों को खारिज किया और एनडीए के साथ एकजुटता दिखाते हुए साफ़ कहा कि मरते दम तक प्रधानमंत्री मोदी का साथ नहीं छोड़ूंगा। मांझी ने आज तक से कहा कि 'हमारे कार्यकर्ता ये चाहते हैं कि बिहार में 40 सीटें हमें मिलें। हम भी यही कहते हैं कि 40 सीट मिलने के बाद अगर 20 सीट जीत जाते हैं तो बिहार में बहुत सी समस्याओं को हल करवा देंगे।'
जीतनराम मांझी ने कैबिनेट छोड़ने वाली बात को लेकर सवाल का जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि 'हम अपने लोगों से बार-बार यह कह रहे थे कि हमारी फ्लाइट है और अगले ही दिन कैबिनेट की मीटिंग भी है। ज्यादा देर कीजिएगा तो हमारी कैबिनेट छूट जाएगी। हमने कैबिनेट मीटिंग के संदर्भ में ये बात कही थी, कैबिनेट छोड़ने की नहीं।'
जीतनराम मांझी चाहे जितनी भी सफ़ाई दें, लेकिन उनकी बात का सीधा संदेश यह गया है कि सीट बँटवारे को लेकर सबकुछ ठीक नहीं है। कुछ लोग मणिपुर में हुए जेडीयू के घटनाक्रम को भी बिहार में सीट बँटवारे के लिए दबाव की राजनीति से जोड़ रहे हैं।