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क्या केजरीवाल दलित और आरक्षण विरोधी हैं, जानिये वर्तमान और अतीत

क्या केजरीवाल दलित और आरक्षण विरोधी हैं, जानिये वर्तमान और अतीत

आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल आरक्षण और दलितों के मुद्दे पर फंस गये। उनका अतीत पीछा कर रहा है और उनके अतीत को वर्तमान से जोड़ा जा रहा है। आप की दिल्ली और पंजाब दो जगह सरकार है लेकिन दलितों के मामले में केजरीवाल कोई आदर्श स्थापित नहीं कर पाये। चाहे वो दिल्ली हो या पंजाब, केजरीवाल की कथनी और करनी में फर्क साफ है। केजरीवाल के अतीत और वर्तमान को खंगालती यह रिपोर्टः

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आप प्रमुख अरविन्द केजरीवाल की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। राहुल ने कहा कि केजरीवाल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से आगे ले जाने और जाति जनगणना पर क्यों चुप हैं। राहुल के आरोप के बाद इस तथ्य की पड़ताल करने की जरूरत पड़ी कि क्या केजरीवाल वाकई दलित विरोधी हैं। दिल्ली और पंजाब में आप की सरकार है। दोनों राज्यों में दलितों को लेकर केजरीवाल का विवादित रवैया बार-बार सामने आया। केजरीवाल न सिर्फ दिल्ली में 17 फीसदी दलित वोटरों के बीच बल्कि पंजाब के 32 फीसदी दलित आबादी के बीच अपनी नीतियों की वजह से बदनाम हो रहे हैं।  

केजरीवाल और आप हालांकि अब अंबेडकर-अंबेडकर कर रहे हैं लेकिन हकीकत कुछ और है। एक वायरल वीडियो देखिये जिसमें केजरीवाल आरक्षण पर अपनी राय दे रहे हैं। वो कह रहे हैं अगर परिवार के किसी सदस्य को आरक्षण का लाभ मिल गया है तो परिवार के बाकी लोगों को आरक्षण पर लाभ नहीं मिलना चाहिए। आरक्षण पर केजरीवाल के ऐसे विचार कम से कम किसी और राजनीतिक दल के नेता के नहीं हैं।  

आरक्षण पर केजरीवाल के विचार दरअसल चुप रहने वाले ज्यादा हैं यानी अगर कोई आरक्षण का समर्थन नहीं कर सकता तो चुप रहने से उसकी इज्जत बची रहती है। लेकिन जब इतिहास खंगाला जाता है तो सच सामने आ जाता है। 2017 में केजरीवाल का ऐसा ही चेहरा सामने आया था। आप के मंच पर तत्कालीन पार्टी नेता कुमार विश्वास ने कहा था कि आरक्षण को अब खत्म किया जाना चाहिए तभी हमारे युवकों से न्याय हो सकता है। लेकिन आप की ओर से संजय सिंह ने फौरन इसका खंडन किया कि यह कुमार विश्वास के अपने विचार हैं। आप के नहीं हैं। लेकिन केजरीवाल ने बतौर आप संयोजक इसका खंडन करने की जरूरत नहीं समझी। वो चुप रहे।  

दो दलित नेताओं ने साथ क्यों छोड़ा

केजरीवाल का साथ दो प्रमुख दलित नेताओं राजेंद्र पाल गौतम और राजकुमार आनंद ने छोड़ा। लेकिन आप छोड़ते समय इन लोगों ने केजरीवाल की दलित और मुस्लिम विरोधी राजनीति को बेनकाब कर दिया। दरअसल, गौतम ने केजरीवाल कैबिनेट में मंत्री रहते धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म अपना लिया। इस धर्म परिवर्तन से बीजेपी के अलावा केजरीवाल भी नाराज हुए। गौतम ने पार्टी छोड़ते समय कहा था कि आम आदमी पार्टी दरअसल बीजेपी के प्रभाव में है।

गौतम के गंभीर आरोपः पार्टी छोड़ने के बाद राजेंद्र पाल गौतम ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी में दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। सीमापुरी के विधायक गौतम ने कहा कि आप अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अल्पसंख्यकों को विशेष प्रतिनिधित्व नहीं दे रही है। गौतम नवंबर 2014 में AAP में शामिल हुए। इसके बाद वह केजरीवाल सरकार में मंत्री बने और समाज कल्याण सहित विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला। हिंदू देवी-देवताओं के बारे में उनकी कथित टिप्पणियों पर राजनीतिक विवाद पैदा होने के बाद अक्टूबर 2022 में गौतम को समाज कल्याण मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा।

गौतम ने कहा कि पार्टी ऊंची जाति के विधायकों या मंत्रियों पर कोई आरोप लगने पर उनका समर्थन करती है लेकिन मुस्लिम या दलित पर आरोप झूठे होने पर भी तुरंत उनका साथ छोड़ देती है। एक तरह से मुसलमानों और दलितों को पार्टी से आंतरिक रूप से 'ब्लैकलिस्ट' कर दिया गया है और पार्टी के व्यवहार में बदलाव दुखद है।

राजेंद्र पाल गौतम आम आदमी पार्टी छोड़ने वाले पहले दलित नेता नहीं थे। इससे पहले दिल्ली मंत्रिपरिषद में उनकी जगह लेने वाले राज कुमार आनंद भी बाद में आप छोड़ गये। लेकिन पार्टी छोड़ते समय राजकुमार आनंद ने भी यही आरोप लगाया था कि आप और केजरीवाल दलित नेताओं, उनके मुद्दों को नजरन्दाज कर रहे हैं।

दिल्ली सरकार के ओबीसी आयोग के पूर्व अध्यक्ष छत्तर सिंह का कहना है कि केजरीवाल दरअसल आरक्षण विरोधी हैं। उन्होंने कहा कि केजरीवाल आज जाट आरक्षण का हव्वा खड़ा कर रहे हैं लेकिन 2013 में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की पहल पर, तत्कालीन केंद्र सरकार ने 04.04.2013 को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से दिल्ली के जाटों को राष्ट्रीय ओबीसी सूची में शामिल किया था। 2014 में जब सरकार बदली तो बीजेपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई और जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने का मामला खारिज करा दिया। आप और भाजपा दोनों ही जाट विरोधी हैं।

यूथ फॉर इक्वेलिटी से क्या संबंध है

केजरीवाल का संबंध यूथ फॉर इक्वेलिटी (समानता की मांग करने वाले युवा) से भी बताया गया है। लेकिन इसका खंडन या पुष्टि कभी केजरीवाल ने नहीं की। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले का एक ट्वीट में इसका जिक्र सीधे आया है। अक्टूबर 2020 में किये गये इस ट्वीट में गोखले ने एक्स पर लिखा था-  अरविंद केजरीवाल "यूथ फॉर इक्वेलिटी" नामक समूह के पहले संस्थापकों और संरक्षकों में से एक थे, जिसका एकमात्र उद्देश्य जाति-आधारित आरक्षण को हटाना है। आशा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अब तक सीख चुके होंगे और स्पष्ट रूप से हाथरस मामले को दलितों के खिलाफ अपराध कहेंगे।

मार्च 2014 की इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद उदितराज के हवाले से भी इसका जिक्र आया है। हालांकि उस समय उदितराज खुद बीजेपी में थे और बीजेपी के ओर से आरोप लगाये थे। इंडियन एक्सप्रेस ने उदितराज का कोट उस रिपोर्ट में डाला था। जिसमें उदितराज कह रहे हैं-  यह आरोप लगाते हुए कि केजरीवाल ने जेएनयू में यूथ फॉर इक्वेलिटी फोरम द्वारा आयोजित एक चर्चा में भाग लिया था, उदितराज ने कहा, “हर कोई जानता है कि यूथ फॉर इक्वेलिटी की शुरुआत आरक्षण का विरोध करने के लिए हुई थी। हम चाहते हैं कि केजरीवाल इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करें।

  • यह भी जान लीजिए कि यूथ फॉर इक्लेलिटी ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र संघ चुनाव भी लड़ा है। उसने सुप्रीम कोर्ट में तमाम आरक्षण को चुनौती भी दी है। उसने मराठा आरक्षण को भी चुनौती दी थी। उसने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जातियों में उपजातियों के वर्गीकरण के आदेश का भी विरोध किया है। तमाम आरक्षण विरोधी गतिविधियां बताती हैं कि यह संगठन बहुत तरीके से आरक्षण विरोधी अभियान चला रहा है। इससे जुड़े कई लोग अब देश के नामी पत्रकार बन चुके हैं और विभिन्न मशहूर मीडिया आउटलेट में काम कर रहे हैं। 

आतिशी भी आरक्षण विरोधी

मुख्यमंत्री आतिशी भी आरक्षण विरोधी आरोपों से घिरी हैं। इस समय उनका 2014 का ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें आतिशी ने फरमाया है - जिन्हें आरक्षण का लाभ मिल चुका है, उन्हें अगली पीढ़ी के लिए उसे छोड़ देना चाहिए। लोगों ने इस पर सोशल मीडिया पर सवाल भी पूछा है कि क्या एक बार आरक्षण मिलने से जाति भी बदल जाती है। लोगों ने सोशल मीडिया पर आतिशी, केजरीवाल और आप को आरक्षण विरोधी बताया है।

यहां बताना जरूरी है कि केजरीवाल और आतिशी के अतीत पर दो दिनों से सोशल मीडिया पर लोग पुराने बयान और ट्वीट निकाल कर अपनी बात कह रहे हैं लेकिन अभी तक न तो पार्टी ने और न ही केजरीवाल या आतिशी ने अपनी सफाई में कुछ कहा है। हालांकि अब तो कांग्रेस ने भी अधिकृत रूप से केजरीवाल, आतिशी और आप को दलित व आरक्षण विरोधी बताया है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के उस आरोप का खंडन नहीं किया गया। जाहिर सी बात है कि केजरीवाल और आतिशी इस मुद्दे में फंसना नहीं चाहते, क्योंकि सबूत और तथ्य मौजूद हैं।

दिल्ली में इस समय विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। अगर दलितों का मुद्दा जोर पकड़ गया तो आप को परेशानी हो सकती है। क्योंकि बीजेपी पहले ही लोकजनशक्ति पार्टी (पासवान) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की सेवाएं लेने जा रही है। बसपा ने पहले ही दिल्ली की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।


पंजाब में कैसे धोखा दिया केजरीवाल ने

दिल्ली में तो खैर दलित मतदाता 17 फीसदी हैं जबकि पंजाब में दलित आबादी 32 से 37 फीसदी है और वे राजनीति को पूरी तरह प्रभावित करते हैं। केजरीवाल ने पंजाब में पार्टी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया लेकिन उसके पीछे उनके वादे थे। पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वादा किया कि अगर वोट दिया गया तो अनुसूचित जाति का उप मुख्यमंत्री पंजाब में नियुक्त किया जाएगा। 2017 का पंजाब चुनाव आप जीत नहीं पाई। लेकिन 2022 का चुनाव आप ने जीता और अपने दम पर सरकार बनाई। केजरीवाल के वादे की वजह से कांग्रेस ने पंजाब में दलित को सीएम (चरणजीत सिंह चन्नी) बनाया लेकिन कांग्रेस हार गई। लेकिन सरकार बनने के बावजूद केजरीवाल ने पंजाब में वादा पूरा नहीं किया। 

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा केजरीवाल और उनकी आप को “दलित विरोधी” कहते हैं। उन्होंने उदाहरण देकर अपनी बात कही। बाजवा ने कहा कि अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए केंद्र प्रायोजित छात्रवृत्ति योजना के तहत आवेदनों को मंजूरी देने में जानबूझ कर देरी की गई। उन्होंने कहा कि 2024-25 के लिए आप सरकार ने फंड ही जारी नहीं किया। राज्य सरकार के पास 18,243 आवेदन लंबित हैं। आखिर दलितों के लिए फंड क्यों रोके जा रहे हैं। 

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