भारत में कोरोना के जिस डेल्टा वैरिएंट ने दूसरी लहर में तबाही मचाई उस पर मौजूदा वैक्सीन की दो खुराक काफ़ी ज़्यादा कारगर है। ऐसा पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड यानी पीएचई ने ही शोध के आधार पर कहा है। हालाँकि यह शोध इंग्लैंड में और सिर्फ़ फाइजर बायो-एन-टेक और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन की खुराकों को लेकर ही हुआ है। भारत में फाइजर की वैक्सीन तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका से क़रार कर सीरम इंस्टीट्यूट जो कोविशील्ड वैक्सीन बना रहा है वह उपलब्ध है। दूसरी वैक्सीन की दो खुराकें भी शायद डेल्टा के ख़िलाफ़ कारगर हों, लेकिन इस संबंध में ज़्यादा शोध नहीं हुआ है।
ब्रिटेन में यह शोध इसलिए किया गया है कि हाल में वहाँ कुल नए संक्रमण के जो मामले आ रहे हैं उसमें से 90 फ़ीसदी से ज़्यादा डेल्टा वैरिएंट के ही हैं। अब जाहिर है कि ब्रिटेन कोरोना से अपनी लड़ाई के लिए यह देखना चाह रहा है कि मौजूदा टीके डेल्टा वैरिएंट पर कितने कारगर हैं।
सवाल है कि डेल्टा वैरिएंट क्या है और यह कितना ख़तरनाक है? पिछले साल कोरोना की पहली लहर के धीमा पड़ने के दौरान ही कोरोना के जो नये-नये स्ट्रेन सामने आ रहे थे उसमें से एक बी.1.617 था। इसे ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट कहा गया क्योंकि यह फिर से तीन अलग-अलग रूप में- बी.1.617.1, बी.1.617.2 और बी.1.617.3 फैला। इसी में से बी.1.617.2 को डब्ल्यूएचओ ने डेल्टा नाम दिया है। यह सबसे पहले भारत में फैला था और दूसरी लहर के लिए इस म्यूटेंट को ही ज़िम्मेदार माना गया।
डेल्टा वैरिएंट ही भारत में दूसरी लहर में भयंकर तबाही लेकर आया था। भारत में जब दूसरी लहर अपने शिखर पर थी तो हर रोज़ 4 लाख से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले रिकॉर्ड किए जा रहे थे।
देश में 6 मई को सबसे ज़्यादा 4 लाख 14 हज़ार केस आए थे। यह वह समय था जब देश में अस्तपाल बेड, दवाइयाँ और ऑक्सीजन जैसी सुविधाएँ भी कम पड़ गई थीं। ऑक्सीजन समय पर नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुईं। अस्पतालों में तो लाइनें लगी ही थीं, श्मशानों में भी ऐसे ही हालात थे। इस बीच गंगा नदी में तैरते सैकड़ों शव मिलने की ख़बरें आईं और रेत में दफनाए गए शवों की तसवीरें भी आईं।
अब तक कई देशों में इस डेल्टा वैरिएंट के मामले सामने आ चुके हैं।
अब ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने जो शोध किया है उसमें कहा गया है कि फाइजर बायो-एन-टेक की दोनों खुराक लेने वालों के 96 फ़ीसदी मामले में कोरोना संक्रमण होने पर भी मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की दोनों खुराक लेने पर 92 फ़ीसदी ऐसे मरीज़ों को अस्पताल भर्ती होने की ज़रूरत नहीं पड़ी। ब्रिटेन में शोध के इस नतीजे को जारी किया गया है। 14 हज़ार से ज़्यादा लोगों पर वैक्सीन की दोनों खुराकों के असर का विश्लेषण किया गया है।
बता दें कि ब्रिटेन में सबसे पहले अल्फा वैरिएंट मिला था और वहाँ दूसरी लहर के लिए इसे ही ज़िम्मेदार माना गया था। उसके बारे में कहा गया था कि वह वैरिएंट 70 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैल रहा था। लेकिन अब डेल्टा वैरिएंट के बारे में दो रिपोर्टें कहती हैं कि यह अल्फा वैरिएंट से भी 40-60 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलता है।
ब्रिटेन में फिर से कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं। वहाँ अप्रैल-मई महीने में घटकर हर रोज़ डेढ़ हज़ार केस आने लगे थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर क़रीब 8 हज़ार हो गई है। इससे एक बार फिर से इस पर चिंता होने लगी है कि क्या देश में कोरोना तेज़ी से फैलेगा। देश में सोशल डिस्टेंसिंग की पाबंदी के नियम को 21 जून से हटाया जाना था, लेकिन अब इसे टाला जा सकता है। देश में जनवरी से ही पाबंदियाँ लगाई गई थीं।